Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Silk
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ॥१२२॥
अष्टमीनवमीप्रतिमा
वर्णनम्
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सुम्मीसं, अन्नपि कंजिगाइपाणगाहारं वजेति, "दंतवणं तंबोलं हरेडगाई य साइमे सेसं । सेसपयसमाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुवं ॥१॥" सेसपयसमाउचोत्ति संमत्ताइपुच्चुत्तगुणजुत्तो ७1 आरंभत्ति सयमारंभवजणपडिमा, तस्सरूवमिमं-"वजह सयमारंभ सावजं कारवेति पेसेहिं । पुत्बप्पओगओ च्चिय वित्तिनिमित्तं सिढिलमावो ॥१॥" पेसेहिति-आएसकारीहि, पुत्वप्पओगओ चियत्ति-पयट्टवावारओ चेव, नापुबवावारनिओयणेणंति, सिढिलभावो-पेसपओगओऽवि आरंभेसु अतिवपरिणामो, "निग्घिणतेगंतेणं एवंवि हु होइ चेव परिचत्ता । एदहमेत्तोऽवि इमो वज्जेज्जतो हियकरो उ॥२॥" निग्घिणया-निद्दयया
एगतेण-सबहेव सयमारंभाणं करणओ परेहि य कारणओ जा निग्घिणया होइ सा एवंपि-सयमारंभवजणेवि परिचत्ता ला भवइ । नणु सयमारंभो थेवो अप्पणो एगत्तणओ, परारंभो बहुओ परेसिं बहुत्तणओ, तओ य बहुतमारंभायरणेण अप्पतरा
रंभवजणं के गुणं पोसेति ?, उच्चते, एद्दहमेनोवि-सयंकरणमेत्तयाए थोवो वि इमो सयमारंभो वजिजंतो हियकरो उ महारोगथोवोवसमदिट्ठतेणंति । एवं च पुबोइयगुणजुत्तो ता वजह अट्ठ जा मासा ८ । पेसेत्ति पेसारंभवञ्जणपडिमा, तस्सरूवमिमं"पेसेहि वि आरंभ सावज कारवेति नो गरुयं । अत्थी संतुट्ठो वा, एसो पुण होति विन्नेओ ॥१॥" गरुयंति-महंत किसिकम्माइयं, एएण आसणदावणाइलहुवावारे न वजेतित्ति भणियं होति । तथा “निक्खित्तभरो पायं पुत्ताइसु अहव सेसपरिवारे । थेवममत्तो य तहा सवत्थवि परिणओ णवरं ॥१॥" तहा सम्वत्थवि-धणधनाइपरिग्गहे, थेवममत्तो य, अयं चेवंभृत उत्तानबुद्धिरपि भवेत् , अत आह परिणउत्ति परिणयबुद्धी णवर-केवलं । “लोगववहारविरओ बहुसो संवेगमावियमई य । पुबोइयगुणजुत्तो नव मासा जाब विहिणा उ ॥१॥" ९ । उद्दिवजएत्ति उद्दिट्ठभत्तवज्जगपडिमा, सा पुणरेवंसरूवा
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॥ १२२ ॥
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