Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 138
________________ * श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः । ॥११४॥ %%AASCIENCE भवइत्ति, अओ एएण कारणेण सव्वत्थ-सबसुत्तेसु बजइत्ति मणियं ॥ ३३ ॥ इयाणि जमिह पगरणे वित्थरभया संमत्त- सम्यक्त्ववयगोयरं न भणियं, तं आगमाउ नायवंति, तत्थ अतिदेसं भणह व्रतादीनासुत्ताउ(दु)वायरवणगहणपयत्तविसया मुणेयव्वा । कुंभारचकभामगदंडाहरणेण धीरेहिं ॥ ३४ ॥ मुपाय सुत्ताउ-आगमाउ उवायरक्खणगहणपयत्तविसया मुणयव्वा, तत्थ उवाओ-सम्मत्ताणुवयाइपडिवत्तीए अब्भु- रक्षणग्रहणट्ठाणाइलक्खणो हेऊ, जो भणिय-"अब्भुट्ठाणे विणए परक्कमे साहुसेवणाए य । सम्मइंसणलंभो विरयाविरईए विरईए ॥१॥" प्रयत्नएईए चुन्नी-अम्मुट्ठाण-आमणपरिच्चाओ, आमणत्थं वंदित्ता विणएण पुच्छइ ताहे विणीउत्ति साहू कहंति, विणओ नाम विषयाः अंजलिपग्गहपणिपातादि, परकमेण--कमायजएण, अथवा साधुसमीपगमनेन, अथवा पराक्रमः-उकालाहः पुरुषकार इत्यर्थः तेन साहुसेवणा जत्थ तत्थ ठिए खणविखणं सेवेइ, चग्गहणा सुयसामाइयलाहो, अहवा जाइसरणादितित्थगरवयण तदनवयणलक्खणो उवाओ, जो भणियं-" सहसंमुइयाए परवागरणेणं अन्नेसि वा सोचा" । अहवा पढमवीयकसायउवसमो उबाउत्ति ।" तहा रक्खणं-अंगीकयसंमत्तवयाणं परिवालणोवायसरूवं आययणसेवादी, जो भणियं-"आययणसेवणा निनिमित्तपरघरपवेमपरिहारो। किड्डापरिहरणं तह विक्कियवयणस्स परिहारो ॥१॥" तहा महणं-'तिविहं तिविहेण' एवमादिविगप्पेहि सम्मत्तवयाणं अंगीकरण, भणिय च-"मिच्छत्तपडिकमण तिविहं तिविहेण नायवं"। तहा "दुविहं तिविहेण पढमउ दुविहं दुविहेण चीयओ होइ । दुविहं एगविहेणं एगविह चेव तिविहेणं ॥१॥"ति एवमादि, तहा पयत्तो-संमत्तवयगहणुत्तरकाले तयणुसरणाइ उवरि भन्नमाणसरूवो, अहवा अपञ्चक्खा यस्सवि जहासत्ति परिहारुजमरूवा जयणा पयत्तो, जहा-in११४॥ CAR Jain Education For Private 3. Personal Use Only ww.jainelibrary.org

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