Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 106
________________ C CC दिग भावधर्म पञ्चाशकचूर्णिः । ॥८२॥ RECAAAAAAA किर केणावि पुवपच्छिमदिसासु पत्तेयं जोयणसयं गमणपरिमाणं कयं, सो पुण उप्पणपओयणे एगाए दिसाए नउई जोयणाई ठवेउ अण्णाए दिसाए दसोत्तर जोयणसयं करेइ, एवंपि किर पुत्वावरेण जोयणसतदुगरूवं परिमाणं संभव इत्ति, एवं एगदिसाए व्रतस्य खेत्तं वद्धारेतस्स वयसावेक्खत्ताओ अइयारो ४, तहा कहिंचि सइअंतरद्धं चत्ति कहिंचि-केणचि पगारेण अईववाउलत्तणेण 5 अतीचारा अइपमाइत्तयोण मंदमइत्ताइणा वा सईए-सुमरणस्स जोयणसयाइरूवदिसिपरिमाणविसयस्स अंतरद्धा-परिभंसो सइअंतरद्धा । किर केणवि पुवाए दिसाए जोयणसयरूवं परिमाणं कयं आसि, पच्छा गमणकाले फुडं न सरइ, किं सयं परिमाणं कयं उयाहु पन्नासा? तस्स य एवं संसए वट्टमाणस्स पन्नासं अइकमंतस्स अइयारो सावेकखत्ताओ, सयमइक्कमंतस्स भंगो निरवेक्खत्ताओ ५। एत्थ य आवस्सयचुन्निभणिओ इमो विही-" उ8 जं परिमाणं गहियं [ तत्थ जयावि लग्गो भवइ जह] तस्स उवरि पवयसिहरे वा रुकखे वा मक्कडो पक्खी वा वत्थं आभरणं वा गहेउं बच्चेजा तत्थ तस्स न कप्पए गंतुं, जया पुण तं पडियं अन्नेण वा आणीयं तया कप्पइ गिव्हिडं। एयं पुण अट्ठावय[मिहमक्कड]संमेयसुपइट्ठउज्जेंतचित्तकूडअंजणगमंदराईसु पवएसु संभवइ । एवं अहेवि कूवाइसु भाणियत्वं । तहा तिरियं जं परिमाणं गहियं तं तिविहेण करणेण नाइकमियई, खेत्तवुड्डी य न कायबा, कहं ? सो सावगो पुत्वेण भंडं गहेऊण गओ जाव तं परिमाण, तओ परेण भंडं अग्घइत्तिकाउं पच्छिमाए जाणि जोयणाणि ताणि पुवदिसिपरिमाणे पक्खिवेइत्ति । जइ अणाभोगेण परिमाण अइकंतो होजा तया नियत्तियत्वं, विनाए। वा न गंतवं, अन्नेवि न विसजियावा, अह अणाणाए कोऽवि गओ होजा, तया जं तेण लद्धं सयं अणाभोगगएण वा जलद्धं तं न घेप्पइति" ॥२०॥ अइयारभावणाएवि भंगो भाविओ। भावणा इमा-"चिंतेयत्वं च नमो साहूणं जे सया निरारंभा । ॥८२॥ GARVEALSRIGAREKASA Jain Education bolsa For Private & Personel Use Only ACC Alwww.jainelibrary.org

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