Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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आचार्य श्री की कलम से
. प्रस्तुत संस्करण आचार्य प्रवर श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा व्याख्यायित आचारांग का संशोधित और परिवर्द्धित रूप है। वर्तमान में प्राप्त आगमों में आचार्यश्री की व्याख्या सर्वाधिक सरल, सुबोध, सरस और विस्तृत है। आचार्यश्री ने आचारांग के शब्द-शब्द को अर्थ की सुबोध व्याख्या प्रदान की है तथा आगमकार के कथ्य को अत्यन्त सरल रूप में प्रस्तुत किया है। मैं समझता हूँ कि अज्ञ और विज्ञ, बालक और वृद्ध सभी स्तर के पाठक पूज्यश्री के आगमों को न केवल सरलता से पढ़ सकते हैं, अपितु समझ भी सकते हैं। पूज्यश्री की व्याख्या के इसी पक्ष ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया और मैंने निश्चय किया कि सर्वजनकल्याण के लिए आचार्यश्री के व्याख्या वाङ्मय को पुनः प्रकाशित कराकर समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
आचारांग के प्रस्तुत अभिनव संस्करण में श्रद्धास्पद आचार्य श्री आत्माराम जी म. के आशीवार्द एवं अनुग्रह के फलस्वरूप इस आगमरत्न का विशेषतः स्वाध्याय.. करते समय जिन-शासनमाता की महती कृपा से आगमों में निहित निगूढ़ रहस्य एवं
जैन साधना की विधियाँ प्राप्त हुईं, जिसे हमने अनुभूति के स्तर पर आत्मसात् . किया। साथ ही, सम्प्राप्त उन ज्ञान-रत्नों को शब्द रूप में 'अध्यात्मसार' शीर्षक से कतिपय उद्धेशकों के अन्त में प्रस्तुत किया है, जो मुमुक्षु एवं अध्यात्म साधकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगा। एतदर्थ प्रत्येक स्वाध्यायशील एवं जिज्ञासु साधक इस समग्र सामग्री से लाभान्वित हों, इसी भाव से यह द्वितीय संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है और व्यावहारिक साधनाविधि वास्तव में गुरुगम से ही प्राप्त की जा सकती है।
आचारांगसूत्र के साथ ही इस महनीय कार्य के लिए मेरे श्रद्धेय गुरुदेव श्री ज्ञानमुनि जी महाराज एवं पूज्यवर श्री रतनमुनि जी महाराज की सतत प्रेरणा भी मुझे इस कार्य में प्रवेश के लिए सम्प्रेरित करती रही।