Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जगति विदितमेतद्दीयते विद्यमानं । न ददतु शशविषाणं ये महात्यागिनोऽपि ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 131] उत्तराध्ययन सटीक 2 अ०
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आपके पास अपशब्द (गाली) का धन है, दीजिए, दीजिये हमारे पास ऐसा धन न होने से हम देने में असमर्थ हैं । संसार में ऐसा स्पष्ट प्रतीत है कि जिसके पास जो होगा वही देगा । यथा शशविषाण ( खरगोश श्रृंग ) ही नहीं तो वह प्राप्त भी नहीं होगा ।
14.
13. भिक्षु सहिष्णु रहे
अक्कोसेज्जपरो भिक्खुं न तेसिं पडिसंजले ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 131 ]
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उत्तराध्ययन 2/26
यदि कोई भिक्षु को गाली दे तो वह उसके प्रति क्रोध न करे ।
सच्चा भिक्षु
सम सुह दुक्ख सहे य जे, स भिक्खू ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 132] दशवैकालिक 10/11
जो सुख तथा दुःख में एक रूप रहता है अर्थात् अनुकूल वस्तु की प्राप्ति में प्रसन्न न हो और प्रतिकूल की प्राप्ति में खिन्न न हो; वही सच्चा
भिक्षु है ।
15. अज्ञानी में अविश्वास
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अगीयत्थरस वयणेणं, अमियं पि न घोट्टए ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 162] महानिशीथ सूत्र 6/144
अगीतार्थ - अज्ञानी के कहने से अमृत भी नहीं पीना चाहिए ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1 /58