Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जो कषाय को शान्त करता है, वही आराधक है । जो कषाय को उपशान्त नहीं करता, उसकी आराधना, आराधना नहीं होती। 250. हितकारी-अहितकारी आहार
अहिताशनसम्पर्का - त्सर्वरोगोद्भवो यतः । तस्मात्तदहितं त्याज्यं, न्याय्यं पथ्यनिवेषणम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 887]
एवं [भाग 2 पृ. 549]
- पिण्ड नियुक्ति वृत्ति अहितकारी आहार करने से सारे रोग उत्पन्न होते हैं । इसलिए अहितकारी आहार का त्याग करना चाहिए और हितकारी (पथ्यकारक) आहार का सेवन करना ही उचित है। 251. व्यर्थ प्रयत्न
क्षान्तं न क्षमया गृहोचित सुखं त्यक्तं न सन्तोषतः, सोढा दुःसह तापशीतपवनाः क्लेशान्न तप्तं तपः । ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमितं द्वन्द्वै न तत्त्वं परं, यद्यत् कर्म कृतं सुखाथिभिरहो ! तैस्तैः फलैर्वञ्चितः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 887]
एवं [भाग 7 पृ. 647] - सूत्रकृतांग सूत्र सटीक 1/2/1
एवं सुभाषित श्लोक संग्रह 695 आश्चर्य है, हे मानव ! गृहस्थाश्रम के सुखों को तूने क्षमा द्वारा कभी क्षान्त या दमित नहीं किया और न उनमें सन्तोष किया । गृहस्थ सुखों की पिपासा में दु:सह शीत-गर्मी और वायु-कष्ट तो सहन कर लिए, परन्तु इन क्लेशों के उद्धार हेतु तपस्या नहीं की। तूने रातदिन वित्तेषणा का ध्यानचिन्तन तो किया, किन्तु द्वन्द्वों-विकल्पों से परे उस परम तत्त्व परमात्मा का नियमित ध्यान नहीं किया। हे भव्य ! सुखैषणा में तूने जिन - जिन भौतिक सुखों के लिए प्रयत्न किया उन - उन से तू वञ्चित ही होता रहा ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/122