Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora

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Page 146
________________ अभिधान राजेन्द्र काष भाग पृष्ठ | नम्बर सूक्ति 203 '280 27. मलवातयोर्विगन्धो, विड्भेदो गात्रगौरवमरूच्यम् । अविशुद्धश्चोद्गारः, पड जीर्ण व्यक्त लिङ्गानि ॥ 1 45. मणोहरं चित्तहरं, मल्ल धूवेण वासियं । सकवाडं पंडुरूल्लोयं, मणसा वि न पत्थए । 1 70. मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियं ठाणवए पहेणं। 1 180. महतामपि दानानां, कालेन क्षीयते फलम् । भीता भय प्रदानस्य, क्षय एव न विद्यते ।। 238. मणं परिजाणइ से णिग्गंथे। 327 706 875 274 322. 1. मा पडिबंध करेह। 1 41. मायी विउव्वति, नो अमायी विउव्वति । 57. माणुस्सं खु सुदुल्लहं। 209. मायाशीलः पुरुषो यद्यपि न करोति किंचिदपराधम् । सर्प इवाविश्वास्यो, भवति तथाप्यात्मदोषहतः ॥ 1 मि 9. मिच्छत्तं वेयन्तो, जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा, सा अकहा देसिआ समए ।। 1 835 124 274 170. मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू । 679 203 28. मूर्छा प्रलापो वमथुः, प्रसेकः सदनं भ्रमः । उपद्रवा भवन्त्येते, मरणं वाऽप्य जीर्णतः ।। 1 105. मूर्खत्वं हि सखे ! ममापि रुचितं तस्मिन् यदष्टौ गुणाः। निश्चिन्तौ। बहुभोजनो- ऽत्रपमाना' नक्तं दिवा शायकैः ।। कार्याकार्य विचारणान्धबधिरो मानापमाने समः । प्रायेणामय वर्जितो' दृढ वपु मूर्खः सुखं जीवति ।। 1 488 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/138

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