Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text ________________
सूक्ति
नम्बर
सूक्ति
213. वरं ज्वाला कुले क्षिप्तो, देहिनाऽत्मा हुताशने । मिथ्यात्व संयुक्तं, जीवितव्यं कदाचन ॥
न तु
वा
1
20. वापीकूपतडागानि देवतायतनानि च । अन्न प्रदानमेततु पूर्तं तत्त्व विदो विदुः ॥ 230. वाहत्तरिकलाकुसला, पंडिय पुरिसा अपंडिया चेव । सव्वकलाणं पवरं, जे धम्मकला न जाणंति ॥
1
66. विसं तु पीयं जह काल कूडं,
हणाइ सत्थं जह कुग्गिहीयं । एसेव धम्मो विसओ ववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवण्णो || 134. विणओ वि तवो ।
अभिधान राजेन्द्र कोष
भाग
पृष्ठ
वि
16. विसं खाएज्ज हालाहलं, तं किर मारेइ तक्खणं । ण करेऽगीयत्थसंसरिंग, विढवे लक्खंपिजं तहिं ॥
1
91.
व्या
व्यापारः सर्वशास्त्राणां दिक्प्रदर्शनमेव हि । पारंतु प्रापयत्येकोऽनुभवो भववारिधेः ॥
स
1
80.
94. सच्चे तत्थ करे हु वक्कमं ।
111. सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वरं ।
1
1
1
6. सव्वारंभ परिग्गह-णिक्खेवो सव्वभूत समया य । एक्कग्गमण समाही, - णया अह एत्तिओ मोक्खो || 1 11. सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू ण संजले । सम सुह दुक्ख सहे य जे, स भिक्खू । 48. समलेट्टु कंचणे भिक्खू ।
1
14.
1
1
7
सन्ना इह काम मुच्छिया, मोह जंति नरा असंवुडा । 1
1
जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया ||
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड - 1/140
1
"
840
180
873
162
326
545
392
87
131
132
281
281
332
421
493
Loading... Page Navigation 1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202