Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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सूक्ति
नम्बर
सूक्ति
द
12. ददतु ददतु गालीं गालिमंतो भवन्तः । वयमपि तदभावात् गालिदानेऽप्यशक्ताः । जगति विदितमेतद्दीयते विद्यमानं ।
न ददतु शशविषाणं ये महात्यागिनोऽपि ॥ 88. दविए दंसण सुद्धा, दंसण सुद्धस्स चरणं तु । 98. दव्वं खित्तं कालं, भाव पज्जाय देससंजोगे ।
भेदं च पमुच्च समा, भावाणं पणवण पज्जा ।। 165. दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं प्रादुर्भवति नाङ्कुरः I कर्म बीजे तथा दग्धे, न रोहति भवाङ्कुरः
179. दत्तमिष्टं तपस्तप्तं, तीर्थसेवा तथा श्रुतम् । सर्वाण्य भय दानस्य, कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
दु
191. दुग्गइ - विणिवाय विवडढणं ।
||
द्वि 212. द्विषद् विषतमो रोगै दुःखमेकत्र दीयते । मिथ्यात्वेन दुरन्तेन, जन्तो र्जन्मनि जन्मनि ॥
47.
अभिधान राजेन्द्र कोष
भागः
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ध
19. धर्मार्थं यस्य वित्तेहा, तस्या नीहा गरीयसी । प्रक्षालनाद्धिपङ्कस्य दूरादस्पर्शनं वरम् ॥
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117. धम्मो अत्थो कामो भिन्ने ते पिंडिया पडिसवत्ता । जिणवयण उत्तिन्ना, अवसत्ता होंति नायव्वा ॥
118. धम्मस्स फलं मोक्खो ।
174. धम्मस्स मूलं विणयं वयन्ति । 185. धम्मारामे निरारंभे उवसंते मुणी चरे ।
धि
201. धिग् द्रव्यं दुःखवर्धनम् ।
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1 777 एवं 784
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न रसट्ठाए भुंजेज्जा जवणट्ठाए महामुणी ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1 /135
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