Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text ________________
सूक्ति
नम्बर
सूक्ति
1
227. एसा भगवती अहिंसा भीयाणं विव सरणं । 229. एसा सा भगवइ अहिंसा जा सा भीयाणं विव सरणं, पक्खीणं पिव गमणं, तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं, समुद्दमज्झे व पोत वहणं चउप्पयाणं व आसपयं दुहट्टिहियाणं च ओसहिबलं अडवि मज्झे वि सत्थ गमणं एत्तो विसितरिका अहिंसा । 242. एतं खुणाणिणो सारं जं न हिंसति किंचणं । अहिंसा समयं चेव, इत्ता वंतं विजाणिया || औ 34. औचित्याद् वृत्तमुक्तस्य वचनात् तत्त्व- चिन्तनम् । मैत्र्यादि सारमत्यन्त-मध्यात्मकतद् विदो विदुः ॥ 1 अं
108. अंधो अंध पहंणितो, दूरमद्धाण गच्छती ।
क
75. कल्लोल चपला लक्ष्मी:, सङ्गमाः स्वप्नसंनिभाः । वात्याव्यतिकरोत्क्षिप्त - तुलतुल्यं च यौवनम् ॥ 139. कसाय सहितो न संजओ होइ ।
92. केषां न कल्पनादव, शास्त्र क्षीराऽवगाहिनी । विरलातद्रसास्वाद विदोऽनुभव जिह्वया ॥
को
अभिधान राजेन्द्र कोष
भाग:
पृष्ठ
33. कोहं च माणं च तहेव मायं ।
लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा ॥
85. को कल्लाणं नेच्छइ ।
1
1
का
53. कामं परितावो, असायहेतु जिणेहिं पणतो । आत- परहित करो पुण, इच्छिज्जइ दुस्सले खलुउ ॥ 1 के
1
1
1
1
1
1
873
किं
231. किं तीए पढियाए पय कोडिए पलाल भूयाए । थेत्ति नायं परस्स पीडा न कायव्वा ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/131
1
873
878-879
227
492
331
574
297
393
227
353
873
Loading... Page Navigation 1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202