Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 440]
- सन्मति तर्क 3/63 मात्र आगम की भक्ति के बल पर ही कोई सिद्धान्त का ज्ञाता नहीं हो सकता और हर कोई सिद्धान्त का ज्ञाता भी निश्चित रूप से प्ररूपणा करने के योग्य प्रवक्ता नहीं हो सकता । 100. स्यावाद - नित्यानित्य
इच्चेय गणि पिडगं, निच्चं दव्वट्ठियाए नायव्वं । पज्जाएण अणिच्चं, निच्चानिच्चं च सियवादो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 441]
- तित्थुगाली पयन्ना मूल 870 यह गणिपिटक द्रव्य या तत्त्व की अपेक्षा से नित्य है और पर्याय अर्थात् शब्द की अपेक्षा से अनित्य है । इसप्रकार वस्तु की नित्यानित्यता का जो प्रतिपादक है, वह 'स्याद्वाद' है । 101. स्याद्वाद - महिमा
जो सियवायं भासति, पमाण-नयपेसलं गुणाधारं । भावेइ सेण सेयं, सो हि पमाणं पवयणस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 441]
- तित्थुगाली पयन्नामूल 871 जो प्रमाण और नय के विशिष्ट गुणों के धारक स्याद्वाद का व्याख्यान करता है अर्थात् स्यावाद की अपेक्षा से वस्तु स्वरूप का विवेचन करता है वह गणिपिटक भाव की अपेक्षा से नष्ट नहीं होता है और वही जिनप्रवचन की प्रामाणिकता का आधार है । 102. स्याद्वाद - निंदक
जो सियवायं निंदति, पमाण नय पेसल गुणाधारं । भावेण दुट्ठभावो, न सो पमाण पवयणस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 441]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/82