Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- वेद पुरुष सूक्त 10/90/2 वे सब ब्रह्म हैं, जो उत्पन्न हैं अथवा भविष्य में उत्पन्न होंगे। 198. मिथ्याशयी मानव कैसे ? ।
अलिया हिंसंति संनिविट्ठा असंत गुणुदीरकाय संतगुण नासकाय ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 781]
- प्रश्न व्याकरण 1/216 मिथ्या आशयवाले असत्यभाषी लोग गुण हीन के लिए गुणों का वखाण करते हैं और गुणी के वास्तविक गुणों का अपलाप करते हैं। 199. असत्य विपाक
अलिय वयणं........अयसकर वेरकरगं........मण संकिलेस वियरणं । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 784]
- प्रश्न व्याकरण 1/2/5 असत्य वचन बोलने से बदनामी होती है, परस्पर वैर बढ़ता है और मन में संक्लेश की वृद्धि होती है। 200. षट्-दुर्वचन
इमाई छ अवतणाइं । तंजहा - अलिय वयणे, हीलिय वयणे, खिसित वयणे, फस्स वयणे, गारत्थिय वयणे, विउ सवितं वा पुणो उदीरित्ते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 795] .
- स्थानांग 6/6/527 छह तरह के वचन नहीं बोलना चाहिए - असत्य वचन, तिरस्कार युक्त वचन, झिड़कते हुए वचन, कठोर वचन, साधारण मनुष्यों की तरह अविचारपूर्ण वचन और शान्त हुए कलह को फिर से भड़कानेवाले वचन । 201. धिग् ! धनम्
धिग् द्रव्यं दुःखवर्धनम् । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/108