Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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देहधारी आत्मा का अग्नि की ज्वाला में कूदना श्रेष्ठ है, परन्तु मिथ्यात्व युक्त जीवन जीना कभी भी श्रेयस्कर नहीं है ।
214. पाप - हेतु
हिंसाऽनृतादयः पञ्च तत्त्वा श्रद्धानमेव च । क्रोधादयश्च चत्वारः इति पापस्य हेतवः ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 840] धर्मसंग्रह 1 अधिकार
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 840 ] धर्मबिन्दु 2/63
हिंसा, मृषा, चोरी, मैथुन व परिग्रह - ये पाँच तत्त्व में अश्रद्धा, तथा क्रोध-मान-माया और लोभ (ये चार कषाय) ये कारण हैं ।
कुल दस पाप के
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215. कौन शरण ?
इन्द्रोपेन्द्रादयोऽप्येते, यन्मृत्योर्यान्ति गोचरम् । अहो तदन्तकातङ्के कःशरण्य शरीरिणाम् ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 844] योगशास्त्र 4/61
अरे ! जब इन्द्र, उपेन्द्र वासुदेव आदि भी मृत्यु के अधीन हैं; तो मृत्यु-भय के आने पर दीन-हीन, सामान्य मनुष्यों को कौन शरण दे सकता है ?
216. अशरण - चिन्तन
पितुर्मातु: स्वसुर्भातु स्तनयानां च पश्यताम् । अत्राणो नीयते जन्तुः कर्मभिर्यमसद्मनि ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 844] धर्मसंग्रह सटीक 3 अधिकार योगशास्त्र 4/62
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1 /112