Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 875]
- प्रश्न व्याकरण -2/6/23 जैसे गाड़ी की धुरी में तेल देना, घाव पर मरहम लगाने के समान है, उसीप्रकार केवल संयम-यात्रा को निभाने के लिए, संयम भार को वहन करने के लिए तथा प्राणों को धारण करने के उद्देश्य से साधक को यतनापूर्वक भोजन करना चाहिए। 238. निर्ग्रन्थ साधक
मणं परिजाणइ से णिग्गंथे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 875]
- आचारांग 2/3/15/778 जो अपने मन को अच्छी तरह परखना जानता है, वही सच्चा निर्ग्रन्थ साधक है। 239. दुश्चिन्तन . न कया वि मणेण पावतेणं पावगं किंचिवि झायव्वं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 875]
- प्रश्न व्याकरण 2/6/23 मन से कभी भी बुरा नहीं सोचना चाहिए । 240. दुर्वचन
न कया वि (वइए) तीए पावियाते पावकं किंचिवि भासियव्वं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 875]
- प्रश्न व्याकरण 2/6/23 वचन से कभी भी बुरा नहीं बोलना चाहिए । 241. सुसाधु
अहिंसए संजए सुसाहू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 875] - प्रश्न व्याकरण 2/6/23
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/119