Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 803]
- पञ्चतन्त्र 2/124 दु:ख की अभिवृद्धि करनेवाले ऐसे धन को धिक्कार है । 202. महासत्त्वशील मनीषी
अपाय बहुलं पापं, ये परित्यज्य संसृताः । तपोवनं महासत्त्वा - स्ते धन्यास्ते मनस्विनः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 803]
- दशवकालिक सटीक 1 अ. जो महासत्त्वशील पुरुष बहुत सारे पाप को दूरकर तपोवन में चले गए हैं, वे मनीषी हैं और धन्य हैं, कृतकृत्य हैं। 203. अध्ययन अयोग्य
चत्तारि अवातणिज्जा पन्नता, तंजहा - अविणीवीई पडिबद्धे, अविओ सवित पाहुडे मायी । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 804]
- स्थानांग 4/4/3/326 . चार व्यक्ति शास्त्राध्ययन के योग्य नहीं है - अविनीत, चटोरा, झगड़ालू और धूर्त । 204. अविनीत
अह चोद्दसहि ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सोउनिव्वाणं च गच्छई ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 806]
- उत्तराध्ययन 11/6 चौदह प्रकार से वर्तन करने वाला संयमी अविनीत कहलाता है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता। 205. अविनीत कौन ?
असंविभागी अचियत्ते अविणीए त्ति वुच्चई ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 806] - उत्तराध्ययन 11/9
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/109