Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- सूत्रकृतांग 1/1/2/19 अंधा, अंधे का पथप्रदर्शक बनता है, तो वह अभीष्ट मार्ग से दूर भटक जाता है। 109. अनुशासन
अप्पणो य परं णालं कुतो अण्णेऽणु सासिउं ?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 492]
- सूत्रकृतांग 1/1/2/17 जो अपने पर अनुशासन नहीं रख सकता, वह दूसरों पर अनुशासन कैसे रख सकता है ? 110. पिंजरे का पक्षी
एवं तक्काए साहेंता धम्माऽधम्मे अकोविया । दुक्खं ते नाइ तुझंति, सउणी पंजरं जहा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 493]
- सूत्रकृतांग 1/1/2/22 जो धर्म और अधर्म से सवर्था अनजान व्यक्ति केवल कल्पित तर्कों के आधार पर ही अपने मंतव्य का प्रतिपादन करते हैं, वे अपने कर्म-बन्धन को तोड़ नहीं सकते जैसे कि पक्षी पिंजरे को नहीं तोड़ पाता है । 111. दुराग्रह-पाश
सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वइं ।
जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 493]
- सूत्रकृतांग 1/1/2/23 अपने - अपने मत की प्रशंसा करते हुए और दूसरे के वचन की निंदा करते हुए जो मतवादीजन उस विषय में अपना पाण्डित्य प्रकट करते हैं, वे जन्म - मरणादि रूप चातुर्गतिक संसार में दृढ़ता से बंधे - जकड़ें रहते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/85