Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- आचारांग 1/3/3/123 ज्ञानी मुनि अनन्य परम [सर्वोच्च परम सत्य, संयम] के प्रति कभी भी प्रमाद का सेवन न करे । 157. आत्मगुप्त साधक
आत गुत्ते सदा वीरे जाता माताए जावए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 598]
- आचारांग 1/3/3/123 साधक सदा आत्मगुप्त वीर अर्थात् पराक्रमी रहे । वह अपनी संयम-यात्रा का निर्वाह परिमित आहार से करे । 158. रोगी सेवा
गिलाणस्स अगिलाते वेयावच्चं करणताए अब्भुट्टेयव्वं भवइ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 598]
- स्थानांग 8/8/649 रोगी की सेवा के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए। 159. अश्रुत धर्म श्रवण
असुताणं धम्माणं सम्मं सुणणताते अब्भुटुंतव्वं भवति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 598]
- स्थानांग 8/8/649 अभी तक नहीं सुने हुए धर्म को सुनने के लिए तत्पर रहना चाहिए । 160. .अप्रमाद
अलं कुसलस्स पमादेन ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 598]
- आचारांग !/2/4/85 बुद्धिमान् साधक को अपनी साधना में प्रमाद नहीं करना चाहिए ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/97