Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 706] - धर्मरत्न प्रकरण 52 - विक्रमचरित्र सप्तम सर्ग 95
- एवं मार्केण्डय पुराण सचमुच इस दुनिया में जमीन, सोना, अन्न और गायों का दान करनेवाले तो आसानी से मिल सकते हैं, लेकिन भयभीत प्राणियों की प्राण-रक्षा करके उन्हें अभयदान देने वाले व्यक्ति विरले ही मिलते हैं। 183. एकल अशोभनीय
पद्मावती च समुवाच विना वधूटी, शोभा न काचन नरस्य भवत्यवश्यम् । नो केवलस्य पुरुषस्य करोति कोऽपि, विश्वासमेव विट एव भवेदभार्यः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 709]
- कल्प सुबोधिका टीका । क्षण वस्तुत: बिना स्त्री के पुरुष कभी शोभा नहीं पाता है और अकेले पुरुष पर न कोई विश्वास करता है । पत्नी रहित पुरुष विट ही हो जाता है । 184. अनुद्विग्न सुधी
अरई आउट्टे से मेधावी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 753]
- आचारांग 1/2/2/29 बुद्धिमान् पुरुष चित्त की व्याकुलता से निवृत्त होता है । 185. धर्मविहार
धम्मारामे निरारंभे उवसंते मुणी चरे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 754]
- उत्तराध्ययन 2/17 हिंसादि से विरत और उपशान्त होकर मुनि धर्मरूपी वाटिका में विचरण करे ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/104