Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 325]
- उत्तराध्ययन 20/39 जो साधु बनकर महाव्रतों का अच्छी तरह पालन नहीं करता, इन्द्रियों का निग्रह नहीं करता तथा रसों में आसक्त रहता है, वह मूल से कर्म बन्धनों का उच्छेद नहीं कर पाता । 64. कर्ता-भोक्ता-आत्मा
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 325] - एवं [भाग 2 पृ. 231]
- उत्तराध्ययन 20/37 आत्मा ही सुख-दुःख का कर्ता और भोक्ता है । 65. रत्नपारखी
राढामणी वेलियप्पकासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 326]
- उत्तराध्ययन 20/42 वैडूर्य रत्न के समान चमकनेवाले काँच के टुकड़े का, जानकार जौहरी के समक्ष कुछ भी मूल्य नहीं होता। 66. विषय वेष्टित धर्म
विसं तु पीयं जह काल कूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गिहीयं । एसेव धम्मो विसओ व वन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवण्णो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 326]
- उत्तराध्ययन 20/44 जैसे पिया हुआ कालकूट विष और विपरीत पकड़ा हुआ शस्त्र अपना ही घातक होता है, वैसे ही शब्दादि विषयों की पूर्ति के लिए किया हुआ धर्म भी अनियंत्रित वेताल के समान साधक का विनाश कर डालता
है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/72