Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जिस पदार्थ की स्थिति प्रात:काल में है, वह मध्याह्न के समय नहीं रहती और जो मध्याह्न में दिखाई देती है वह संध्या को नहीं दिखाई देती । इसप्रकार इस संसार में पदार्थों की अनित्यता दिखाई देती है। 74. विनश्वर शरीर
शरीरं देहिनां सर्व - पुरुषार्थ निबन्धनम् । प्रचण्डपवनोद्धृत, - घनाघनविनश्वरम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 331]
- योगशास्त्र 4/58 सभी पुरुषार्थों का कारणभूत मनुष्यों का यह शरीर प्रचण्ड वायु से बिखेरे गए बादल जैसा विनाशशील है । . 75. तीन आई - गई
कल्लोल चपला लक्ष्मीः, सङ्गमाः स्वप्नसंनिभाः । वात्याव्यतिकरोत्क्षिप्त - तुलतुल्यं च यौवनम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 331]
- योगशास्त्र 4/59 लक्ष्मी समुद्र की तरंगों के समान चपल है, स्वजनादि के संयोग स्वप्नवत् है और जवानी वायु के समूह से उड़ाई गई रुई जैसी है । 76. अनित्य-चिन्तन
इत्यनित्यं जगद्वृत्तं, स्थिर चित्तः प्रतिक्षणम् । तृष्णा कृष्णाहिमन्त्राय निर्ममत्वाय चिन्तयेत् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 332] - - योगशास्त्र 4/60
तृष्णा रूपी काली नागिन को वश करने वाले मंत्र के समान वीतराग-भाव की प्राप्ति के लिए जगत् के इस अनित्य स्वरूप का स्थिर चित्त से प्रतिक्षण चिंतन करना चाहिए।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/75