Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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70. निर्ग्रन्थ-पथ
मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं,
महानियं ठाणवए पहेणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 327]
- उत्तराध्ययन 20/51 मेधावी को कुशील पुरुषों के मार्ग को छोड़कर महानिर्ग्रन्थों के मार्ग पर चलना चाहिए। 71. गृद्धात्मा कुररीवत्
कुररीविवा भोग रसाणु गिद्धा, निर? सोया परितावमेइ। __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 327]
- उत्तराध्ययन 20/50 काम-भोगों के रसों में गृद्ध आत्मा अन्त में निरर्थक शोक करनेवाली कुररी नामक पक्षी की तरह परिताप को प्राप्त होती है। 72. निर्ग्रन्थ निराश्रव
निरासवे संख वियाण कम्म, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 327]
- उत्तराध्ययन 20/52 निर्ग्रन्थ निराश्रव होकर कर्मों का सम्यक् प्रकार से क्षय करके विपुल, उत्तम और ध्रुव स्थान को प्राप्त होता है। 73. पदार्थ - अनित्यता
यत्प्रातस्तन्न मध्याह्ने, यन्न मध्याह्ने न तन्निशि । निरीक्ष्यते भवेऽस्मिन् हि, पदार्थानामनित्यता ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 331] - धर्मसंग्रह सटीक 3 अधिकार एवं योगशास्त्र4/57
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/74