Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 11
________________ उत्तर और पूर्व भारत में संस्कृत भाषा का प्रभुत्व मध्य भारत और मालव देश में फैलने के बाद पिछले हजार वर्ष में गुजरात प्रदेश में भी खूब समृद्धि को बढ़ाता है। कलिकालसर्वज्ञ महान् जैनाचार्य श्री हेमचंद्राचार्यजी के समय से तो सागर में आनेवाले ज्वार की तरह संस्कृत के शिष्ट साहित्य की रचना में भी ज्वार आता है, उस समय सोलंकी का राज्यकाल था। सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन नाम के प्रसिद्ध व्याकरण की रचना भी उसी काल में गुजरेश्वर सिद्धराज जयसिंह की विनंति से गुजरात के प्राचीन पाटनगर । पाटण में हुई थी। संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पिशाची, अपभ्रंश इन छह: भाषाओं के नियमों से भरपूर अष्टाध्यायीमय तत्व प्रकाशिका प्रकाश महापर्व न्यास के साथ एक ही वर्ष में अकेले कलिकालसर्वज्ञ प्रभु ने वह महा व्याकरण तैयार किया था । विश्व वाङ्मय के अलंकारतुल्य उस महाव्याकरण को सिद्धराज जयसिंह महाराजा ने अपने पाटनगर पाटण (अणहिलपुर) में राज्य के ज्ञान कोशागार में बहुमानपूर्वक स्थापित किया था । चालू अभ्यासक्रम में उस महाव्याकरण को प्रवेश कराने के लिए उसकी अनेक नकलें तैयार कराई थीं और अन्य भी अनेक योजनाएँ प्रचार में रखी थीं । काकल और कायस्थ अध्यापक ने उसका अभ्यास कराने में अथक परिश्रम किया था । उस व्याकरण के अभ्यास से गुजरात और दूर दूर की भूमि गर्जना कर रही थी। काल के प्रवाह के साथ गुजरात ऊपर अनेक आक्रमण हुए । संस्कृतभाषा के अभ्यास में मंदता आने पर भी उसका प्रभाव प्रबल था । उसका वही

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