Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत विद्या मंडल ग्रन्थांक-४ उ वा स ग द सा जैन-आगम-सप्तम-अङ्ग ओ प्राकृत विद्या मंडल ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद १९६८ - Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत विद्या मंडल ग्रन्थांक उ वा स ग द सा ओ जैन-आगम-सप्तम-अङ्ग प्राकृत विद्या मंडल मा. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक दलसुख मालवणिया वी. एम. शाह मन्त्री प्राकृत विद्या मण्डल अहमदाबाद-९ ई. स. १९६८ प्रति ५०० मूल्य ००-७५ मुद्रक वैद्यराज स्वामी श्री त्रिभुवनदासजी शास्त्री श्री रामानन्द प्रिन्टिङ्ग प्रेस कांकरिया रोड अहमदाबाद-२२ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय प्राकृत भाषा और साहित्य के विद्यार्थियों को पाठ्य-पुस्तके सुलभ कराने के उद्देश्य के पूर्तिरूप में यह चौथा ग्रन्थ 'उवासगदसाओ' जो कई विश्वविद्यालयों में निर्धारित है, प्रकाशित किया जा रहा है। छात्रों को अपने अध्ययन में यह ग्रन्थ सहायक होगा ऐसा हमारा विश्वास हैं। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री लालभाई चिमनलाल शाह के सद्प्रयत्नों से श्री शाहपुर मङ्गलपारेख खांचा जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, अहमदाबाद १ के ज्ञान फंड की ओर से रु. ५०१ की आर्थिक सहायता मिली है। एतदर्थ प्राकृत विद्या मण्डल उनका आभार मानता है। अन्य ट्रस्ट भी अपने ज्ञान-फंड का इस दिशा में उपयोग करेंगे ऐसी हमारी आशा है । इस ग्रन्थ का सम्पादन पं. बेघरदासजी दोशी ने किया है जो प्रा..वि. मण्डल के अध्यक्ष हैं। इसके लिए प्राकृत विद्या मण्डल उनका आभारी है। प्रफ संशोधन कार्य में डॉ. के. ऋषभ चन्द्र ने सहायता की है इसलिए उनका भी आभार मानते हैं । इस प्रथ का पहला फर्मा मङ्गल मुद्रणालय, रतन पोल और अन्य फर्मे रामानन्द प्रिन्टिङ्ग प्रेस ने छापे हैं इसके लिए उनके व्यवस्थापकों का भी आभार मानते हैं । मन्त्री ता. २६-१-६८ प्राकृत विद्या मण्डल Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका १-६२ प्रकाशकीय उवासगदसासु 'पढमे आणन्दे अज्झयणे 'बीये कामदेवे भज्झयणे तइये चुलणीपियज्झयणे चउत्थे सुरादेवे अज्झयणे पञ्चमे चुल्लसयए अज्झयणे छठे. कुण्डकोलिए.भज्झयणे “सत्तमे सद्दालपुत्ते भज्झयणे भट्ठमे महासयए अज्झयणे नवमे नन्दिणोपिया अज्झयणे दसमे सालिहीपिया भज्झयणे उवासगदसामओ सूत्रपरिचय और टिप्पणियाँ ६३-६५ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे आणन्दे अज्झयणे ॥ उक्लेवो ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नाम नयरी होत्था । वण्णओ । पुण्ण भद्दे चेइए । वण्णओ ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जम्बू पज्जुवासमाणे एवं वयासी-"जइ णं, भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छहस्स अङ्गस्स नायाघ. म्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं, भन्ते ! अङ्गस्स उवासगदसाणं समजेणं जाव संपत्तणं के अढे पण्णत्ते ?" एवं खलु, जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहाआणन्दे ।।१।। कामदेवे य ॥२॥ गाहावइ-चुलणीपिया ॥३॥ सुरादेवे ॥ ४ ॥ चुल्लसयए ।। ५ ।। गाहावा-कुण्डकोलिए ॥ ६ ॥ सद्दालपुते ॥ ७ ॥ महासयए।॥ ८ ॥ नन्दिणीपिया ॥ ९ ॥ सालिहीपिया ॥ १० ॥ "जइणं, भन्ते! समणेणं जाव संपत्तेण सत्तमस्स अगस्त उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं, भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णते?" ॥२॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था । वण्णओ। तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसाभाए दूइपलासए नाम चेहए। तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू नाम राया होत्था । चण्णो । तत्थ णं वाणियगामे आणन्दे नाम गाहावई परिबसा. अड्ढे जाव अपरिभूए ॥ ३ ॥ ___ तस्स णं आणन्दस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ लिहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुवासगदसासु चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि धया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ ४ ॥ से णं आणन्दे गाहावई बहूणं राईसर जाव सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मन्तेसु य कुडुम्सु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडुम्बस्स मेढी पमाणं आधारे आलम्बणं चक्खू , मेढीभूए जाव सव्वकज्जवडूढावए यावि होत्था ॥ ५ ॥ तस्स णं आणन्दस्स गाहावास्स सिवनन्दा नाम भारिया होत्था, अहोण जाव सुरुवा। आणन्दस्स गाहावइस्स इट्ठा, आणन्देणं गाहावइणा सचिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठा, सद्द जाव पञ्चविहे माणुस्सए कामभोए पञ्चणुभवमाणी विह तस्सणं वाणियगामस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए पत्थ णं कोल्लाए नाम संनिवेसे होत्था, रिद्धस्थिमिय जाव पासादिए ४ ॥ ७॥ तत्थ णं कोल्लाए संनिवेसे आणन्दस्स गाहावइस्ल बहुए मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणे परिवसइ, अइढे जाव अपरिभूए ॥ ८ ॥ . तेणं कालेणं तेणं समरणं भगवं महावीरे जाव समोसरिए । परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा तहा जियसत्तू निग्गच्छइ, २ त्ता जाव पज्जुवासह ॥ ९ ॥ तए णं से आणन्दे गाहावई इमीसे कहाए लद्धटे समाणे " एवं खलु समणे जाव विहरइ, तं महाफलं, गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि" एवं संपेहेह, २ त्ता पहाए सुद्धप्पावेसाई जाव अप्पमहग्यामरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे आणन्दे अज्झयणे णिक्खमइ, २ त्ता सकोरेण्टमल्लदामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पायविहारचारेणं वाणियगामं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छद, २ त्ता जेणामेव दूइपलासे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, २ त्ता वन्दइ नमसइ जाव पज्जुवालइ ॥ १० ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे आणन्दस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मकहा। परिसा पडिगया, राया य गए ॥ ११ ॥ . तपणं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव एवं वयासी--'सदहामि णं भन्ते! निग्गन्थं पावयणं, पत्तियामि णं भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं, रोपमि णं भन्ते ! निग्गन्यं पावयणं, एवमेयं भन्ते , तहमेयं भन्ते !, अवितहमेयं भन्ते !, इच्छियमेयं भन्ते !, पडिच्छियमेयं भन्ते !, इच्छियपडिच्छियमेयं भन्ते ! से जहेयं तुम्मे वयह त्ति कटु जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे राईसरतलवरमाडम्बियकोडुम्बियसेडिसत्थवाहप्पभिः इया मुण्डा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुण्डे जाव पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुपियाणं अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालस. विहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि।" अहासुह, देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेह ॥ १२ ॥ तपणं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावी. रस्स अन्तिए तप्पढमयाए थूलगं पाणाइवायं पच्चक्खाइ"जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा" ॥ १३ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगंदसासु तयाणन्तरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ-"जावज्जीवाए दुविहं तिविहेण न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायला" ॥ १४ ॥ तयाणन्तरं च णं थूलगं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ-"जाव. ज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा" ॥ १५ ॥ ___ तयाणन्तरं च णं सदारसन्तोसोए परिमाणं करेइ"नन्नत्थ पक्काए सिवनन्दाए भारियाए, अवसेसं सवं मेहुणविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ १६ ॥ (तयाणन्तर च णं इच्छाविहिपरिमाणं करेमाणे, हिरण्णसु. घण्णविहिपरिमाणं करेइ-" नन्नत्थ चरहिं हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहिं, चउहिं वढिपउत्ताहि, चउर्हि पवित्थरपउ. साहि, अवसेसं सवं हिरण्णसुवण्णविहिं पच्चक्खामि॥१७॥ तयाणन्तरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ चउहि वरहिं दसगोसाहस्सिपणं वएणं अवसेसं सव्व चउपपयविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ १८ ॥ तयाणन्तरं च णं खेत्तवत्थुविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ पञ्चहिं हलसरहिं नियत्तणसइपणं हलेणं, अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पञ्चक्खामि ३" ॥ १९ ॥ तयाणन्तरं च णं सगडविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ पञ्चहिं सगडसएहिं दिसायत्तिपहिं, पञ्चहि सगडसएहिं संवाहणिएहिं, अवसेसं सम्वं सगडविहिं पञ्चक्खामि ३'॥२०॥ ___ तयाणन्तरं च णं वाहणविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ चउहि बाहणेहिं दिसायत्तिपहिं, चउहिं वाहणेहिं संवाहणि. पहि, अवसेस सव्वं वाहणविहिं पञ्चक्खामि ३" ॥ २१ ॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे आणन्दे अज्झयणे तयाणम्तरं च णं उवभोगपरिभोगविहिं पञ्चक्खाएमाणे उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ एगाए गन्धकासा. ईए, अवसेसं सम्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खामि ३" ॥२२॥ तयाणन्तरं च णं दन्तवणविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ पगेणं अल्ललट्ठीमहुएण, अवसेसं दन्तवर्णावहिं पच्चक्खामि ३" ॥ २३ ॥ तयाणन्तरं च णं फलविहिपरिमाणं करेइ-" नन्नत्थ पगेण खीरामलपणं, अवसेसं फलविहिं पञ्चक्खामि ३"॥२४॥ तयाणन्तरं च णं अभङ्गणविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं, अवसेसं अब्भङ्गणविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ २५ ॥ तयाणन्तरं च णं उव्वट्टणविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ एगेणं सुरहिणा गन्धवट्टएणं, अवसेसं उचट्टणविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ २६ ॥ तयाणन्तरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइ-'नन्नत्थ अट्टहिं उट्टिएहि उदगस्स घडपहि, अवसेस मज्जणविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ २७ ॥ तयाणन्तरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ एगेणं खोमजुयलेणं, अवसेसं वत्थविहिं पच्चक्खामि३॥२८॥ तयाणन्तरं च णं विलेवणविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ गरुकुमचन्दामादिपहि, अवसेसं विलेवविहिं पच्चबखामि ३" ॥ २९ ॥ तयाणन्तरं च णं पुप्फविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नत्थ एग्रेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेणं वा, अवसेसं पुप्फविहि पच्चक्खामि ३" ॥ ३० ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु तयाणन्तरं व णं आभरण विहिपरिमाणं करे-" नन्नत्थ मट्ठकण्णेज्जपहिं नाममुद्दाय य अवसेसं आभरणविहिं पञ्चक्खामि ३" ।। ३१ ॥ तयाणन्तरं च णं धूवणविद्दिपरिमाणं करे - " ननस्थ अगरुतुरुक्कधूव मादिपहि, अवसेसं धूवणविहिं पश्चक्खामि ३” ॥ ३२ ॥ तयाणन्तरं च णं भोयण विहिपरिमाणं करेमाणे, पेज्जविहिपरिमाणं करेह - " नन्नत्थ पगाए कट्टपेज्जाप, अवसेसं पेज्जविहिं पच्चक्खामि ३" || ३३ ॥ तयाणन्तरं च णं भक्वविद्दिपरिमाणं करेइ - 'नम्नत्थ पगेहिं घयपुण्णेहिं, खण्डखज्जपछि वा अवसेसं भक्खविहि पच्चक्खामि ३" ॥ ३४ ॥ तयाणन्तरं च णं ओदणविहिपरिमाणं करे- "नन्नत्थ कलमसालिओदणेणं, अवसेसं ओदणविहिं पच्चकखामि ३” ।। ३५ ।। तयाणन्तरं च णं सूवविद्दिपरिमाणं करेइ - " नन्नत्थ कलायसूत्रेण वा मुग्गमास पूर्वेण वा, अवसेसं सूवविहि पञ्चकखामि ३" ।। ३६ ।। तयाणन्तरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ- "नन्नत्थसारइरणं गोघयमण्डेणं, अवसेसं घयविहिं पञ्चक्खामि ३” ।। ३७ ।। तयाणन्तरं च णं सागविद्दिपरिमाणं करेइ-" नश्नत्थवत्थुसारण वा सुत्थियसारण वा मण्डुक्कियसारण वा, अवसेसं सागविहिं पच्चक्खामि ३" ॥ ३८ ॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे आपने अज्झयणे तयाणन्तरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ-"नन्नस्थ एगेणं पालामाहुरएणं, अवसेसं माहुरयविहिं पच्चखामि ३" ॥ ३९ ॥ तयाणन्तरं च णं जेमण विहिपरिमाणं करेइ-" नन्नत्थ सेहंबदालियंबेहि, अवसेसं जेमगविहिं पच्चक्खामि ३" ॥४०॥ तयाणन्तरं च णं पाणियविहिपरिमाणं करेइ । “नन्नत्थ एगेणं अन्तलिक्खोदपणं, अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि ३" ।। ४१ ॥ तयाण-तरं च णं मुहवालविहिपरिमाणं करेइ-" नन्नत्थ पञ्चसोगन्धिरणं तम्बोलेणं, अवसेस मुहवासविहिं पञ्च क्खामि ३" ॥ ४२ ॥ तयाणन्तरं च णं चउविहं अणट्ठादण्डं पञ्चक्खाइ-तं जहा-अवज्झाणायरियं, पमायायरियं, हिंसप्पयाणं, पावकम्मोवएसे ॥ ४३ ॥ इह खलु " आणन्दा!" इ समणे भगवं महावीरे आणन्दं समणोवासगं एवं वयासी-" एवं खलु, आणन्दा! समणोवासरणं अभिगयजीवाजीवेणं जाव अणहक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पञ्च झ्यारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वातं जहा-सङ्का, कंखा, विइगिच्छा, परपासण्डपसंसा, पर. पासण्डसंथवे ॥४४॥ तयाणन्तरंचणं थूलगस्स पाणाहवायवेरमणस्स समणो. वासरणं पञ्च आयारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा-तं जहा-बन्धे, वहे, छविच्छेप, अइभारे, भत्तपाणवोच्छेए । १ ॥ ४५ ॥ - तपाणन्तरं च णं थूलगस्स मुसावायवेरमणस्स पथ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवामगासु मयारा आणियब्धा, न समायरियव्वा-तं महा-सहसाभक्खाणे, रहसाभक्खाणे, सदारमन्तभेए, मोसोवपसे, कूडलेहकरणे । २ ॥ ४६ ।। तयाणंतरंच णं थूलगस्त अदिण्णादाणवेरमणस्स पञ्च भइयारा जाणियव्या, न समायरियव्वा-तं जहा-तेणाहडे, तकरप्पओगे, विरुद्धरजाइक्कमे, कुडतुलकृडमाणे, सप्पडिरूवगववहारे । ३ ॥ ४७॥ तयाणन्तरं च णं सदारसन्तोसीए पञ्च अइयारा जाणिपव्वा, न समायरियन्बा-तं जहा-इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे, अणकीडा, परविवाहकरणे, कामभोगा तिव्वाभिलासे । ४ ।। ४८ ॥ तयाणन्तरं च णं इच्छापरिमाणस्ल समणोवासरणं पञ्च अइयारा जाणियबा, न समायरियव्वा-तं जहा-खेत्त. पत्थुपमाणाइकमे, हिरण्णसुवण्णपमाणाइक्कमे, दुपयव उप्पयपमाणाइक्कमे, धणधन्नपमाणाइक्कमे, कुवियपमाणाइक्कमे । ५ ॥४९॥ तयाणन्तरं च णं दिसिवयस्स पञ्च अहयारा जाणियम्वा न समायरियव्वा-तं जहा-उड्ढदिसिपमाणाइकमे, अहोदिसिपमाणाइक्कमे, तिरियदिसिपमाणाइकमे, खेत्तवुड्ढी, सहअन्तरद्धा । ६ ॥ ५० ॥ (तयाणन्तरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे पण्णत्ते-तं जहा-भोयणो य कम्मओ य । तत्थ णं भोयणओ समणोवासपणं पञ्च इयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वातं जहा-सचित्ताहारे, सचित्तपडिबद्धाहारे, अप्पउलिओसहिमक्खणया, दुप्पउलिओसहिभक्षणया, तुच्छोसहिभक्खणया । कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरस कम्मादाणाई Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे सामने अज्झयणे जाणियब्वाई, न समायरियञ्चाइ-तं जहा-बालकम्मे, घणकम्मे, साडीकम्मे, भाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दन्तवाणिज्जे, लक्खावाणिज्जे, रसवाणिज्जे, विसवाणिज्जे, केसवाणिज्जे, जन्तपीलणकम्मे, निल्लंछणकम्मे, दवग्गिदावणया, सरदहतलावसोसणया, असईजणपोसणया। ७ ॥ ५१ ॥) तयाणन्तरं च णं अणट्ठादण्डवेरमणस्स समणोवासरणं पञ्च अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा-तं जहाकन्दप्पे, कुक्कुप, मोहरिए, संजुत्ताहिगरणे, उवभोगपरिभो. गाइरिते । ८ ॥ ५२ ॥ - तयाणन्तरं च णं सामाइयस्त समणोवासपणं पञ्च अइयारा जाणियबा, न समायरियव्वा-तं जहा-मणदुप्पडिहाणे, वयदुप्पडिहाणे, कायदुप्पडिहाणे, सामाइयस्स सइअकरणया, सामाइयस्स अणवडियरस करणया। ९॥५३ ॥ तयाणन्तरंच णं देसावगासियरस समणोवासएणं पञ्च भइयारा जाणियव्या, न समायरियव्वा,-तं जहा-आणव. जप्पओगे, पेसवणपओगे, सहाणुवाए, रुवाणुवाए, बहिया पोग्गलपक्खेवे । १० ॥ ५४ ॥ तयाणन्तरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासपणं पञ्च अइयारा जाणियव्वा, न समायरियघा-तं जहा-अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे, अप्पमजियदुप्पमजियसिजासंथारे, अपडिलेहियदुप्पडिलेहिय उच्चारपासवणभूमी, अप्पमजियदुष्पमजियउच्चारपासवणभूमी, पोसहोववासस्स सम्मं अणणुपालणया । ११ ॥ ५५ । तयाणन्तरं च णं अहासंविभागस्स समणोवासपणं पञ्च दयारा जाणियम्चा, न समायरियव्वा-तं जहा-सचित्त. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० समदसासु निवखेवणया, सचित्त पिहणया, कालारक्कमे, परववदेसे, मच्छरिया | १२ ॥ ५६ ॥ तयाणन्तरं च णं अपच्छिममारणन्तियसंलेद्दणानूसणाSSराहणार पञ्च अध्यारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा-तं जहा - इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीचियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे । १३ ॥ ५७ ॥ तर णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावश्यं दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जर, रत्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २ न्ता एवं वयासी - " नो खलु मे, भन्ते ! कप्पद अज्ज - प्यभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा वन्दित्त वा नर्मसित्तर वा पुव्वि अणालत्तेणं आलवित्त वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउँ वा अणुष्पदाडं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकन्तारेणं । कप्पर में समणे निगन्थे फासूपणं एसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थकम्बलपडिग्गहपायपुञ्छणेणं पीढफलगसिज्जासंथारपणं भसहमे सज्जेणं च पडिलामेमाणस्स विहरित " | ति कट्टु इमं पयारूवं अभिग्गहं अभिगिर, २ तापसणाई पुच्छर, २ ता अट्ठाई आदिया, २ सा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वन्दइ, २ त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दूइपलासाओ चेहयाओ पडिणिक्खमह, २त्ता जेणेव वाणियगामे नयरे, जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छर, २ वा सिवनन्दं भारियं एवं वयासी-" एवं Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ पढमे भागन्दे अमायणे खलु, देवाणुप्पिया! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मे निसन्ते, से वि य धम्मे मे इच्छिप, पडिच्छिए, अभिरुइए; तं गच्छ णं तुमं, देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वन्दाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावश्यं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ॥ ५८ ॥ तए णं सा सिवनन्दा भारिया आणन्देणं समणोवासपणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा कोम्बियपुरिसे सहावेह, २ त्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव लहुकरण" जाव पज्जुवासह तए णं समणे भगवं महावीरे सिवनन्दाए तीसे य महा जाव धम्मं कहेइ ।। ६० ॥ तए णं सा सिवनन्दा समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट जाव गिहिधम्म पडिव. जइ, २त्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, त्ता जामेव दिसि पाउब्भूया, तामेव दिसि पडिगया ॥ ६१ ॥ "भन्ते !" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमंसह, २त्ता एवं वयासी-" पहू णं, भन्ते ! आणन्दे सम. पोवासए देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डे जाव पव्वइत्तए?" "नो इणढे समढे गोयमा!आणन्दे णं समणोवासप बहू घासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिइ, २ त्ता जाव सोहम्मे कप्पे अरुणामे विमाणे देवत्ताए उववजिहिइ”। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं आणन्दस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलि भोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६२ ॥ | Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकासपदसामु तप णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जाव विहरह ॥ ६३ ॥ तए णं से आणन्दे समणोवासए जाए अमिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे विहरह ॥ ६४ ॥ तए णं सा सिवनन्दा भारिया समणोवासिया जाया जाव पडिलामेमाणी विहरह ॥६५॥ तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स उच्चावहिं सीलव्धयगुणवेरमणपश्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइकन्ताइ । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेया. रूवे अज्झथिए चिन्तिए मणोगए सङ्कप्पे समुप्पजित्थाएवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूर्ण राईसर जाव सयस्स वि य णं कुडुम्बस्स जाव आधारे। तं एएणं विक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्ति उवसंपजित्ताणं विहरित्तए। तं सेयं खलु ममं कल्लं जाव जलन्ते विउलं असणं ४, जहा पूरणो, जाव जेट्टपुत्तं कुडुम्बे ठवेत्ता, तं मित्त जाव जेहपुत्तं च आपुच्छित्ता, कोलाए संनिवेसे नायकुलंसि पोसहसालं पडिलेहित्ता, समणस्स भगवओ अन्तियं धम्मपण्णत्ति उवसंपजित्ताणं विहरित्तए"। एवं संपेहेइ, २ त्ता कल्लं विउलं तहेव जिमियभुत्तुसरागए तं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ सकारेड संमाणेइ, २ त्ता तस्सेव मित्त जाव पुरमओ जेद्वपुत्तं सद्दाबेह, २ त्ता पवं वयासी-" एवं खलु, पुत्ता ! अहं वाणियगामे बहूण राईसर जहा चिन्तियं जाव विहरित्तए । तं सेयं Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ पढमे आणन्दे अशयणे मम इक्षणि तुमं सयस्स कुडुम्बस्स आलस्वणं ४ जाव विहरित्तर " ॥ ६६ ॥ तप णं जेपुते आणन्दस्स समणोवासगस्स " तह "" सि पयमहं विणपणं पडिसुणे ॥ ६७ ॥ तप णं से आणन्दे समणोवासर तस्सेव मित्त जाव पुरओ जेपुरतं कुडुम्बे ठवे २ ता एवं वयासी- " मा र्ण देवाणुपिया ! तुम्मे अजप्पभिर्इ केइ मम बहूसु कंज्जेसु जाव पुच्छह वा, पडिपुच्छह वा, ममं अट्ठार असणं: वा ४ उवक्खडेह उवकरेह वा " ॥ ६८ ॥ तपणं से आणन्दे समणोवासर जेट्ठपुत्तं मित्तनाई आपुच्छ २ ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खम, २ ता वाणि यगामं नयरं मज्जनं मज्झेणं निग्गच्छर २ ता जेणेव कोल्लाप संनिवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छा, २त्ता पोलहसालं पमजइ, २ ता उच्चारपासवण - भूमिं पडिलेहेइ, २ त्ता दभसंथारयं संथर, दब्भसंथारयं दुरुहर, २ ता पोलहसालाए पोसहिए दम्भसंधारोवगप संमणस्स भगवओ महावीरस्त अन्तियं धम्मपणत्ति उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ ६९ ॥ तर से आणन्दे समणोवासप उवासँग पडिमाओ उवसंपत्तिाणं विरह । पढमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकंप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ, पालेइ सोहेर, तीरेइ, कित्ते, आराहे ॥ ७० ॥ तप णं से आणन्दे समणोवास र दोच्चं उवासगपडिमं एवं तच्चं च उत्थं पञ्चमं, छड, सहमं, अट्टमं नवमं, दसमं पक्कारसमं जाव आराहे ॥ ७१ ॥ 1 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जासादसासु “तए णं से आणन्दे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं उरा लेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के जाव 'किसे धमणिसंतए जाए ॥ ७२ ॥ तएणं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ पुत्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ५-" एवं खलु अहं इमेणं जाव धमणिसंतए जाए । तं अस्थि ता मे उहाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकारपरकमे सद्धाधिहसंवेगे। तं जाव ता मे अस्थि उट्ठाणे सद्धाघिसंवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणेसु हत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कल्लं जाव जलन्ते अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझूसियस्त, भत्तपाणपडियाइक्खियस्ल, कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए"। एवं संपेहेइ, २ त्ता कल्लं पाउ जाव अपच्छिममारणन्तिय० जाव कालं अणवकंखमाणे विहरइ ॥ ७३॥ तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने । पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पञ्चजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ, एवं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं च । उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासधरपव्वयं जाणइ पालइ । उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ । अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीदवाससहस्सहिइयं जाणइ पासइ ।। ७४॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए । परिसा निग्गया जाव पडिगया ७५ ॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे भागन्ने भजमयणे तेणेकालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओमहावीरस्स जेढे अन्तेवासी इन्दभूई नामं अणगारे गोयमगोत्ते णं सत्तु. स्सेहे, समच उरंससंठाणसंठिए, वज्जरिसहनारायसंघयणे, कणगपुलगनिघसपम्हगोरे, उग्गतवे, दित्ततवे, घोरतवे, महातवे, उराले, घोरगुणे, घोरतवस्ती, घोरबम्भचेरवासी, उच्छूढसरीरे, संखित्तविउलतेउलेसे, छटुंछटेणं अणिक्खि. सेणं तपोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाण विहरह ॥ ७६ ॥ तए णं से भगवं गोयमे छक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, सध्याए पोरिसीए अतुरियं अचवलं असंभन्ते मुहपति पहिलेहेइ, २त्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ, २ त्ता भायणवस्थाई पमज्जइ, २त्ता भायणाई उग्गाहेइ, २ ताजेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छद, २ त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता एवं वयासी-" इच्छामि णं भन्ते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छट्टक्खमणस्स पारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाइ घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए"। " अहासुह, देवाणुप्पिया ! मा पडिबन्धं करेह" ॥ ७७ ॥ तए पं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अभ. गुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दूइपलासाओ चेहयाओ पडिणिक्खमइ, २ त्ता अतुरियमचबलमसंभन्ते जुगन्तरपरिलोयणाए विट्ठीए पुरओ इरियं सोहेमाणे, जेणेव वाणियगामे नयरे, तेणेव उवागच्छा, २त्ता वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडर ॥ ७८ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ उवासगदसासु तर णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे, जहा पण्णतीर तहा, जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजतं भत पाणं सम्मं पडिग्गाहेइ, २ ता वाणियगामाओ पडिणिग्गछ २त्ता कोल्लायस्स संनिवेसस्स अदूरसामन्तेणं वीईवयमाणे, बहुजणसद्दं निसामेइ । बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खर ४-'" एवं खलु, देवाणुपिया ! समणस्स भगवओ अन्तेवासी, आणन्दे नामं समणोवासए पोसहसालाप अपच्छिम जाव अणवखमाणे विहरइ ॥ ७९ ॥ तप णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अन्तिए एयं सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिर ४-" तं गच्छामि णं, आणन्दं समणोवासयं पासामि" । एवं संपेद्देइ, २ ता जेणेव कोल्लाए संनिवेसे, जेणेव आणन्दे समणोवासए, जेणेव पोलहसाला, तेणेव उवागच्छ ॥ ८० ॥ तपणं से आणन्दे समणोवासप भगवं गोयमं पज्जमाणं पासइ, २ त्ता हट्ठ जाब हियए भगवं गोयमं वन्दर नमसह, २ ता एवं वयाली - "एवं खलु, भन्ते ! अहं इमेणं उरालेणं जाव धर्माणिसंतर जाए, न संचापमि देवाणुप्पियस्स अन्तियं पाउ वित्ताणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवन्दित्तप । तुम्मे णं, भन्ते ! इच्छक्कारेणं अभिओएणं इओ चेव एह. जा णं देवाणुपियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पापसु वन्दामि नम॑सामि " ॥ ८१ ॥ तप णं से भगवं गोयमे, जेणेव आणन्दे समणोवासप, तेणेव उवागच्छ ॥ ८२ ॥ तप णं से आणन्दे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाप्सु वन्दद्द नर्मसह २ ता एवं वयासी'अस्थि णं, भन्ते गिहिणो गिद्दिमज्झावसन्तस्स ओहिनाणे णं समुत्पज्जइ ? Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमे आणन्दे अज्झयणे "हन्ता, अत्थि " । (( जर णं, भन्ते ! गिहिणो जाव समुप्पज्जइ, एवं खलु, भन्ते ! मम वि गिरिणो गिहिमज्झा वसन्तस्स ओहिनाणे समुप्पन्ने । पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे पञ्चजोयणसयाई जाव लोलुपच्चुयं नरयं जाणामि पासामि " ॥ ८३ ॥ ति णं से भगवं गोयमे आणन्दं समणोवासयं एवं वयासी - " अत्थि णं आणन्दा ! गिहिणो जाव समुप्पज्जइ नो चेव णं एमहालप । तं णं तुमं, आणन्दा ! ( पयस्स ठाणस्स आलोपछि जाव तवोकम्मं पडिवज्जाहि " ॥ ८४ ॥ तर णं से आणन्दे भगवं गोयमं एवं वयासी-" अस्थि छ, भन्ते ! जिणवयणे सन्ताणं तच्चाणं तहियाणं सम्भूयाण भावाणं आलोइज्जर जाव पडिवजिज्जर १ " 66 नो इट्टे सम "" 1 6< 'जह णं, भन्ते ! जिणवयणे सन्ताणं जाव भावाणं नो आलोइज्जर जाव तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं, भन्ते ! (तुब्भे चैव पयस्स ठाणस्स आलोएह जाव पडिबज्जह " ॥ ८५ ॥ ) १७ तप णं से भगवं गोयमे आणन्देणं समणोवासरणं पवं कुत्ते समाणे, संकिए कंखिए विगिच्छासमावन्ने आनन्दस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमइ, २ ता जेणेव दूइपलासे चेहए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छह, २ ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामन्ते गमणागमणाए पडिक्कम, २ ता एसणमणेसणं आलोपइ, २ ता भत्तपाण पडिलेड, २ ता समणं भगवं वन्दद्द नसर, २त्ता एवं बयासी - "एवं खलु, भन्ते ! अहं तुम्मेहिं अब्भणुण्णाए तं 1 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु चेव सव्वं कहेइ जाव । तए णं अहं संकिए ३ आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमामि, २त्ता जेणेव इहं तेणेव हब्वमागए । तं ण, भन्ते ! किं आणन्देणं समणोवासपणं तस्स ठाणस्स आलोएयब्वं जाव पडिवज्जेयवं, उदाहु मए ?" "गोयमा!" इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं पवं वयासी-"गोयमा !(तुमं चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि, आणन्दं च समणोवासयं एयमट्ट खामेहि" ॥८६॥ तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स “तह" त्ति एयमहूं विणएणं पडिसुणेइ, २त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवज्जइ, आणन्दं च समणोवासयं एयमढें खामेइ ॥८७॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥८॥ तए णं से आणन्दे समणोवासए बहूहिं सीलव्वरहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता, वीर्स वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एकारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अक्षाणं झूसित्ता, सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिकन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किश्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंलगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमेणं अरुणे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं आणन्दस्स वि देवस्स यत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥८९॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीये कामदेवे अज्झयणे "आणन्दे ण, भन्ते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ३ अणन्तरं चर्य चइत्ता, कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ?"। "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ" ॥९॥ ॥ निक्खेवो ॥ ॥ पढम आणन्दज्झयणं समत्तं ॥ बीये कामदेवे अज्झयणे ॥उक्खेवो॥ जइ णं, भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं, भन्ते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ॥९॥ __एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नाम नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया । कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरण्णकोडोओ निहाणपउत्ताओ, छ वढिपउत्ताओ, छ पवित्थरपउत्ताओ, छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । समोसरणं । जहा आणन्दे तहा निग्गए । तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ । सा चेव वत्तव्वया जाव जेहपुत्तं मित्तनाई आपुच्छित्ता, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता जहा आणन्दे जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥२२॥ तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुष्परताघरत्तकालसमयसि एगे देवे मायी मिच्छट्ठिी अन्तियं पाउन्भूए ॥९॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसानु तए णं से देवे एर्ग महं पिसायरूवं विउव्वद । तस्स णं देवस्स पिलायरुवस्स इमे एयारवे वण्णावासे पण्णत्तेसीसं से गोकिलजसंठाणसंठियं, सालिमसेल्लसरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, महल्लउट्टियाकभल्लर्सठाणसंठियं निडालं, मुंगुसपुंछ व तस्स भुमगाओ फुग्गफुग्गाओ विगयबीभच्छदं सणाओ, सीसघडिविणिग्गयाई अच्छीणि विगयबीभच्छदसणाई, कण्णा जहा सुप्पकत्तरं चेव विगयबीभच्छदसणिज्जा, उरभपुडसंनिभा से नासा, झुसिरा जमलचुल्लीसंठाणसंठिया दो वि तस्स नासापुडया, घोडयपुंछ व तस्स मंसूई कविलकविलाई विगयबीभच्छदसणाई, उहा उट्टस्स चेव लम्बा, फालसरिसा से दन्ता, जिम्मा जह सुप्पकत्तरं चेव विगयबीभच्छदसणिज्जा, हलकुडालसंठिया से हणुया, गल्लकडिल्लं च तस्स खड्डं फुट्ट कविळं फरुसं महल्लं, मुइङ्गाकारोवमे से स्वन्धे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोहियासंठाणसंठिया दो वितरस बाहा, निसापाहाणसंठाणसंठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, निसालोढसंठाणसंठियाओ हत्थेसु अङ्गुलीओ, सिप्पिपुडगसंठिया से नक्खा, पहावियपसेवओ व्व उरंसि लम्बन्ति दो वि तस्स थणया, पोटै अयकोढओ व्व वढें, पाणकलन्दसरिसा से नाही, सिक्कगसंठाणसं ठिए से नेत्ते, किण्णपुडसंठाणसंठिया दो वि तस्स वसणा, जमलकोहियासंठाणसंठिया दो वि तस्स ऊरू, अज्जुणगुटुं व तस्स जाणूई कुडिलकुडिलाई विगयबीभच्छदंसणाई, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहि उवचियाओ, अहरीसंठाणसंठिया दो वि तस्स पाया, अहरीलोढसंठाणसं ठियाओ पापसु अङ्गलीमो, सिप्पिपुडसंठिया से नक्खा ॥९॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीये कामदेवे अज्झयणे लडहमडहजाणुए विगयभग्गभुग्गभुमए अवदालियवयणविवरनिल्लालियागजीहे सरडकयमालियाए उन्दुरमालापरिणद्धसुकयचिंधे, न उलकयकण्णपूरे, सप्पकयवेगच्छे, अप्फोडन्ते, अभिगज्जन्ते, भीममुक्कट्टहासे, नाणाविहपचवण्णेहिं लोमेहिं उवचिए एग महं नीलुप्पलगवलगुलियअयसिकुसुमप्पगासं असिं खुरधारं गहाय, जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता आसुरत्ते रुढे कुविए चण्डिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासो-"हं भो ! कामदेवा! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरन्तपन्तलक्खणा ! हीणपुण्णवाउद्दसिया ! हिरिसिरिधिइकित्तिपरिवज्जिया ! धम्मपुण्णसग्गमोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! ५, धम्मपिवासिया ! ५, नो खलु कप्पइ तव, देवाणुप्पिया! जै सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए बा खोभित्तए वा खण्डित्तए वा भञ्जित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुम अज्ज सीलाई जाव पोसहोववासाइं न छड्डसि न भजेसि, तो ते अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डि करेमि, जहा णं तुमं, देवाणुपिया ! अट्टदुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ॥१५॥ ___ नए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेण पितायस्वेणं एवं वुत्ते समाणे, अभीए अतत्थे अणुब्बिग्गे अक्खु. भिए अचलिए असं भन्ते तुसिणोए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥१६॥ तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, २ त्ता Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु दोच्च पि तच्च पि कामदेवं एवं वयासी-"हं भो! कामदेवा ! समणोवासया ! अपस्थियपत्थिया ! जहणं तुमं अज्ज जाव ववरोविज्जसि" ॥२७॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे, अभीए जाव धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥९८॥ तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २ त्ता आसुरत्ते५ तिवलियं भिउडि निडाले सहटु, कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डि करेइ ॥९९।। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं सम्मं सहइ जाव अहियासेह ॥१०॥ तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २ त्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे सन्ते तन्ते परितन्ते सणिय सणियं पच्चोसक्कइ, २त्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, २त्ता दिव्वं पिसायरूवं विष्पजहइ, २त्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइटसत्तङ्गपइडियं सम्म संठियं सुजाय, पुरओ उदग्गं पिट्टओ वाराहं अयाकुच्छि अलम्बकुच्छि पलम्बलम्बोदराधरकरं अन्भुग्गयमउलमल्लियाविमलधवल दन्तं कञ्चणकोसीपविठ्ठदन्तं आणामियचावललियसंवल्लियग्गसोण्डं कुम्मपडिपुण्णचलणं वीसइनक्खं अल्लीणपमाणजुत्तपुच्छं ॥१०॥ मत्तं मेहमिव गुलगुलेन्तं मणपवणजइणवेगं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ, दत्ता जेणेव पोलहसाला जेणेव कामदेवे Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीये कामदेवे अज्झयणे समणावासए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-"ह भो! कामदेवा! समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भजेसि, तो ते अज्ज अहं सोण्डाए गिण्हामि, २त्ता पोसाहसालाओ नीणेमि, २त्ता उड्ढं वेहासं विहामि, २त्ता तिक्खेहिं दन्तमुसलेहिं पडिच्छामि, रत्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएमु लोलेमि, जहाणं तुम अट्टदुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीश्यिाओ ववरोविज्जसि"॥१०२॥ तए णं से कामदेवे समणोवासप तेणं देवेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे, अभीए जाव विहरइ ॥१०३।।। ___तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाप विहरमाण पासइ, २ त्ता दोच्चं पि तच्च पि कामदेवं समणोवासय एवं वायसी-"हं भो ! कामदेवा!" बहेव जाव सो वि विहरइ ॥१०४॥ तए ण से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २ त्ता आसुरते ४, कामदेवं समपोवासयं सोण्डाए गिण्हेइ, उड्ढे वेहासं उविहइ, २ त्ता तिक्खेहिं दन्तमुसलेहिं पडिच्छइ, २ ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ ॥१०५॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ ॥१०॥ तए णं से देवे हथिरूवे कामदेवं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ जाव सणियं सणियं पच्चोसक्कइ, २त्सा पोसहसालाओ पडिणिखमइ, २ सा दिध्व हत्थिरूवं विप्यजाहर, २ ता पगं महं दिव्वं सप्परूवं विजव्वइ, उग्गविसं चण्डविसं घोरविसं महाकायं मसीमूसाकालगं नयणविसरोसपुष्णं अञ्जणपुननिगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोषणं जमल Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RCH उवासगदसासु जुयलचञ्चलजीह धरणीयलवेणिभूयं उक्कडफुडकुडिलजडिलकक्कसवियफडाडोवकरणदच्छं । १०७ ।। लोहागरधम्ममाणधमधमेन्तघोस अणागलियातन्त्र चपियार चण्डरोसं सप्परुवं विउबइ, २ त्ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-"हं भो ! कामदेवा! समणोवासया ! जाव न भञ्जसि, तो ते अज्जेष अहं सरसरस्स काय दुरुहामि, २ ता पच्छिमेणं भाषणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, . २ ता. तिक्खाहिं विसपरिगयाहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुटेमि, जहा णं तुम अदृदुहवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि" ॥ १०८।। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं सप्परूवेणं एवं वुत्ते समाणे, अभीए जाव विहरइ । सो वि दोच्च पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ ॥ १०९॥ ... तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीये जाव पासइ, २त्ता आसुरत्ते ४ कामदेवस्स सरसरस्स कार्य दुरुहइ, २त्ता पच्छिमभारणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, २त्ता तिक्खाहिं विसपरिगयाहिं दाढाहि उरंसि चेव निकुट्टेद ॥११॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ ॥ १११ ।। तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, २ ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोचासयं निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे सन्ते ३ सणियं सणियं पच्चोसक्का, २ त्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, २त्ता दिव्धं सप्परूवं विप्पजहइ, २ ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M UM AM - बीये कामदेवे अज्झयणे २५ हारविराइयवच्छं जाव दसदिसाओ, उज्जोवेमाणं पभासे. माणं प्रासाईयं दरिसणिज्ज अभिरुवं पडिरूव ॥ ११२॥ दिव्वं देवरूवं विउव्वइ, २.त्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसालं अणुप्पैविसई, २ त्ता अन्तलिक्खपडिवन्ने सखिखिणियाई पञ्चषणाई वत्थाई पवरपरिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं क्यासी-"ह भो! कामदेवा ! समणोवासया ! धन्ने सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! संपुण्णे कयत्थे कर्यलक्खणे, सुलद्धे णं तव, देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स्,' तव निग्गन्थे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया । एवं खलु, देवाणुप्पिया ! सक्के देविन्दे देवराया जाव सक्कसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं जाव अन्नेसि च बहूणं देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ ४-"एवं खलु, देवा ! जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे चम्पाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोस. हिए बम्भचारी जाव दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरह । नो खलु से सक्का केणइ देवेण वा दाणवेण वा जाव गन्धव्वेण वा निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभितए वा विपरिणामित्तए वा"। तए णं अहं सक्कस्स देविन्दस्स देवरण्णो एयमढें असद्दहमुत्प३ इहं हव्वमागए । ते अहो! णं, देवाणुप्पिया! इड्दी६ लद्धा ३, तं दिवा णं, देवाणुप्पिया ! इड्ढी जाव अभिसमन्नागया । तं खामेमि णं देवाणुप्पिया!, खमन्तु मं, खन्तुमरहन्ति णं, देवाणुप्पिया, नाई भुज्जो करणयाए” त्ति कटु पायवडिए पञ्जलिउडे पयमढं भुज्जो भुज्जो खामेइ, २त्ता जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए ॥ ११३ ।। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ उवासगदसासु तप णं से कामदेवे समणोवासप 'निरुवसग्गं' इति कट्ट पडिमं पारे ।। ११४॥ तेणं कालेणं तेणं समपणं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ ||११५|| तपणं से कामदेवे समणोवासप इमीसे कहाए लडडे समाणे 'पवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरह, तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वन्दिता नमसित्ता तभ पडिणियतस्त पोसहं पारित' त्ति कट्टु एवं संपे हेइ, २ ता सुद्धपावेसाई वत्थाई जाव अप्पमहग्घ जाव मणुस्वग्गुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिणिक्खम, २ ता च चम्पं नयरिं मज्झमज्झेणं निगच्छ, २ ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जहा संखो जाव पॅज्जुवा सह ॥ ११६॥ तप णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स समणोवासयस्स तीसे य जाव धूमकहा सम्मत्ता ॥११७॥ "कामदेवा !" इ समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी- “से नूणं, कामदेवा ! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तिर पाउब्भूए । तर णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विव्वद २त्ता आसुरते ४ एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय तुम एवं वयासी- "हं भो ! कामदेवा ! जाव जीवियाओ ख़वरोविज्जसि" । तं तुमं तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि " । एवं वण्णगरहिया तिष्णि वि उवसग्गा तद्देव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ । " से नूणं, काम देवा ! अट्ठे समट्ठे" ? हन्ता अत्थि ॥११८॥ 66 " अज्जो !" इ समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गन्थे य निग्गन्थीओ य आमन्तेत्ता एवं वयासी - " जइ ताव, Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीये कामदेवे अज्झयणे अज्जो ! समणोधासगा गिहिणो गिहिमझा वसंता दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहन्ति जाव अहियासेन्ति, सक्का पुणाई, अज्जो)! सुमणेहिं निग्गन्थेहिं दुवालसङ्गं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहिं दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सहित्तए जाव अहियासित्तए"।११९॥ तओ ते बहवे समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स "तह" त्ति अयमढे विणएणं पडिसुणेन्ति ॥१२०॥ - तए णं से कामदेवे समणोवासए हट्ट जाव समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ, अट्ठमादियइ, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वन्दइ नमसइ, २त्ता जामेव दिसिंपाउभूए तामेव दिसिं पडिगए ॥१२॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ चम्पाओ पडिणिक्खमइ, २त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥१२२॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरह ॥१२३॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए बहहिं जाव भावेत्ता वीस वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासेत्ता, मासियाए संले'हणाए अप्पाणं झुसित्ता, सर्हि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिक्कन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरथिमेण अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगश्याणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। कामदेवस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमा ठिई पण्णत्ता ॥१२४॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ उवासगदसासु " से णं, भन्ते ! कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खपणं भवक्खणं क्खिपणं अणन्तरं चयं चत्ता, कहिं गमिहिर, कहि उववज्जिहिर ?" " गोयमा, महाविदेहे वासे सिज्झिहिह”, ।। १२५।। ॥ निक्खेवो ॥ ॥ बीयं कामदेवज्झयणं समत्तं ॥ तइये चुलणी पियज्झयणे ॥ उक्खेवो ॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेण समपर्ण वाणारसी नामं नयरी | कोट्टए चेइए । जियसत्तू राया ॥ १२६ ॥ | तत्थ णं वाणारसीए नयरीप चुलणीपिया नामं गाहावई परिवसह अड्ढे जाव अपरिभूए । सामा भारिया । अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ वड्ढि उत्ताओ, अट्ठ पवित्थर उत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्रिणं वरणं । जहा आनन्दो राईसर जाव सव्वकज्जवड्ढाव यावि होत्था । सामी समोसढे । परिसा निग्गया । चुलणीपिया वि जहा आणन्दो तहा निग्गओ । तहेव गिहिधम्मं पडिवज्जइ । गोयमपुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाप पोसहिए बम्भचारी समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ || १२७॥ तप णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुध्वरत्तावरतकालसमयसि एगे देवे अन्तियं पाउन्भूप ॥ १२८|| तपंण से देवे एगं नीलुप्पल जाव असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - "हं भो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भजेसि, तो ते Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइये चुलणीपियज्झयणे मह अज्ज जेह्र पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, २ त्ता तव अग्गओ घाएमि, २ त्ता तओ मंससोल्ले करेमि, २त्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अइहेमि, २त्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयश्चामि, जहा णं तुमं अदृदुहवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि" ॥१२९॥ तए ण से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ ॥१३०॥ तए णं से देवे चुलणीपियं समणोचासयं अभीयं जाव पासइ, २त्ता दोच्चं पि तच्चं पि चुलणीपियं समणोवासयं पंव वयासी-'हं भो ! चुलणीपिया ! समणोवासया " तं चेव भणइ, जाव विहरई ॥१३१॥ तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासंय अभीयं जाव पासित्ता आसुरत्ते ४ चुलणीपियस्स समणोवासयस्य जेटुं पुत्तं गिहाओ नीणेइ, २ त्ता अग्गओ घाएइ, २ त्ता तओ मंससोल्लए करेइ, २ ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेइ, २ त्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिपण य आयञ्च ॥१३२॥ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ ॥१३॥ तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, २ त्ता दोच्चं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-"हं भो! चुलणीपिया ! समणोवासया ! अपथियपत्थिया! जाव न भञ्जसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीमि, २त्ता तव अग्गो घारमि" जहा जेहूं पुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं तच्चं पि कणीयसं जाव अहियासेइ ॥१३४॥ तप णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, २त्ता चउत्थं पि चुलणीपियं समणोषालयं एवं Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु वयासो--"ह भो! चुलणीपिया! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया ! ४ जइ णं तुमं जाव न भञ्जसि, तओ अहं अज्ज जा इमा तव माया भद्दा सत्थवाही देवयगुरुजणणी दुक्करदुक्करकारिया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, २त्ता तव अग्गओ घाएमि, २त्ता तओ मसलोल्लए करेमि, २त्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहमि, २त्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयञ्चामि, जहा णं तुम अट्टदुहवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि" ॥१३५।। तए णं से चुलणीपिया समणोवासप तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ ।।१३६॥ तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २त्ता चुलणीपियं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हं भो ! चुलणीपिया! सम णोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि" ॥१३७॥ तए णे तस्स चुलणीपियस्स समणोवालयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ५--"अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माइं समायरइ, जेणं मम जेठं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, २त्ता मम अग्गओ घाएइ, २त्ता जहा कयं तहा चिन्तेइ जाव गायं आयञ्चइ, जेणं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ जाव सोणिएण य आयउचइ, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव आयञ्चइ, जा वि य णं इमा ममं माया भद्दा सत्थवाही देवयगुरुजणणी दुक्करदुक्करकारिया, तं पि य णं इच्छा साओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गो घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिहित्तए" ति कट्टु उद्धाइए, से बि य आगासे उत्पइए, तेणं च स्वम्मे आसाइप, महया महया सद्देणं कोलाहले कर ॥१३८॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइये चुलणीपियज्झयणे तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं कोलाहलसई सोच्चा मिसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोंवासप तेणेव उवागच्छद, २त्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-"किं णं, पुता ! तुमं महया महया सद्देणं कोलाहले कए ? ॥१३९॥ तपणं से चुलणीपिया समणोवासए अम्म भई सत्थवाहिं पवं वयासी-"एवं खलु, अम्मो ! न जाणामि, के वि पुरिसे मासुरत्ते ५ पगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय ममं एवं वयासी-"हं भो । चुलणीपिया! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया! हिरिसिरिधिइकित्तिवज्जिया ! जाणं तुम जाव चवरोविज्जसि"। अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्त समाणे अभीए भाव विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २त्ता ममं दोच्चं पितच्चं पि एवं वयासी"हं भो! चुलणीपिया! समणोवासया ! तहेव जाव गायं आयञ्चइ । तप णं अहं तं उज्जलं जाव अहियासेमि । एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आयञ्चइ । अहं तं उज्जलं जाव अहियासेमि । तए ण से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, २त्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी"हं भो! चुलणीपिया ! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! जाव न भञ्जसि, तो ते अज्ज जा इमा माया गुरु जाव ववरोविज्जसि" । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीप जाव विहरामि । तप णं से पुरिसे दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वयासी-"हं भो! चुलणीपिया ! समणोवासया! अज्ज जाव ववरोविज्जसि"। तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चपि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ५-"अहो ! णं इमे पुरिसे अणारिए जाव समायरइ, जेणं ममं जेटं पुतं साओ गिहाओ... तहेव जाव कणीयर्स जाव Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु मायञ्चर, तुम्मे वि य णं इच्छर सामओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गओ घाएराप, तं सेयं खलु ममं पयं पुरिसं गिबिहतप" ति कट्टु उद्धाइए । से वि य आगासे उप्पइप, मए वि य सम्मे आसाइए, महया महया सहेणं कोलाहले कए" ॥१०॥ तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-नो खलु केइ पुरिसे तव जाव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, २ त्ता तव अग्गओ घापह, एस न केइ षुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिटे। तं णं तुम इयाणि भग्गव्वर भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि। तं गं तुमं, पुत्ता! एयरस ठाणस्स आलोपहि जाव पडिवजाहि ॥१४१॥ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए भद्दाए सत्थवाहीए "तह" त्ति एयम विणएणं पडिसुणेइ, २ त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवज्जइ ॥१४२॥ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । पढमं उवासगपडिम अहासुत्तं जहा आणन्दो जाव एक्कारसमं पि ॥१४३॥ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमेणं अरुणप्पमे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । चत्तारि पलिओवमाईठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिर ५ ॥१४॥ ॥निक्खेवो॥ ॥ तइयं चुलणीपियज्झयण समत्तं ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थे सुरादेवे अजायणे। ॥उक्खेवो॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समपणं बाणारसी नामं नयरी। कोहए चेइए । जियसत्तू राया। सुरादेवे गाहाबई अड्ढे । छ हिरण्णकोडीओ जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । धन्ना भारिया। सामी समोसटे । जहा आणन्दो तहेव पडिवज्जइ गिहिधम्मं । जहा कामदेबो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विह तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तापरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउब्भवित्था ॥१४६॥ से देवे एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी- "हं भो! सुरादेवा! समणोपासया! अपत्थियपत्थिया ४, जइ णं तुमं सीलाई जाव न मजसि, तो ते जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, २त्ता तय मग्गओ घाएमि, २ त्ता पञ्च सोल्लए करेमि, आदाणभरिपंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, २ त्ता तव गायं मंसेण य सोणिपण य आयञ्चामि, जहा णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ पवरोविज्जसि" ॥ एवं मज्झिमय, कणीयसं, एक्केक्के पञ्च सोल्लया। तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं-एक्केक्के पञ्च सोल्लया ॥ १४७॥ तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं चउत्थं पि एवं पयासी-"हं भो! सुरादेवा! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया ! ४ जाव न परिचयसि, तो ते अज सरीरंसि जमगसमममेव सोलस रोगायङ्के पक्खिवामि, तं जहा सासे कासे प्राव कोढे, जहा ण तुमं अदुहट्ट जाव ववरोविज्जसि" ११४८॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाव विहरह ॥१४९॥ एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ-जाव "ववरोविज्जिसि" ॥१५०॥ तएणं तस्स सुरादेवस्ल समणोवासयस्स तेण देवेणं दोच्च पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४-"अहो! णं इमे पुरिसे अणारिए जाव समायरइ, जेणं ममंजेटुं पुत्तं जाव कणीयसं जाव आयञ्चइ, जे वि य इमे सोलस रोगायङ्का, ते वि य इच्छइ मम सरीरगंसि पक्खि-. वित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए" त्ति कटु उठाइए । से वि य आगासे उप्पइए । तेण य खम्मे आसाइप, महया महया सद्देणं कोलाहले कए ॥१५१॥ तए णं सा धन्ना भारिया कोलाहलं सोच्चा निसम्म, जेणेव सुरादेवे समणोवासए. तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता एवं वयासी-"किं णं, देवाणुप्पिया ! तुम्भेहिं महया महया सदेणं कोलाहले कर ?'॥१५२॥ . तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नं भारियं एवं वयासीक "एवं खलु, देवाणुप्पिए! के वि पुरिसे" तहेव कहेइ जहां चुलणीपिया । धन्ना वि पडिभणइ-जाव कणीयसं। “नो खलु, देवाणुप्पिया! तुम्भं के वि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगी सोलस रोगायङ्के पक्खिवइ, एस न के वि पुरिसे तुम्म उवसग्गं करेइ" । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भणइ ॥१५३१ एवं सेर्स जहा चुलणीपियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे कप्पे- अरुणकन्ते विमाणे उपवन्ने । चत्तारि पलिओषमा ठिई। महाविदेहे कासे सिज्झिहिइ ॥१५४॥ ॥निकलेको।' ॥ चउत्थं सुरादेवायणं समत्तः ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चमे चुल्लसयए अज्झयणे। ॥ उक्खेवो ॥ एव खलु, जम्बू ! तेण कालेण तेण समएणं आलभिया नाम नयरी। सङ्खवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया। चुल्लसयए गाहावई अढे जाव छ हिरण्णकोडोओ जावई वया दसगोसाहस्सिपणं वएणं । बहुला भारिया। सामी समोसढे। जहा आणन्दो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥१५५॥ तपणं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं जाव असिं गहाय एवं वयासी-"हं भो! चुल्ल सयगा! समणोवासया!जावन भासि, तो ते अज्ज जे पुतं साओ गिहाओ नीणेमि," एवं जहा चुलणीपियं, नवरं-एक्केक्के सत्त मंससोल्लया, जाव कणीयसं जाव आयञ्चामि ॥१५६। तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जाव विहरइ ॥१५॥ तए णं से देवे चुल्लसयग समणोवासयं चउत्थं पि एवं वयासी-"हं भो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव न भञ्जसि, तो ते अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वढिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ, ताओ साओ गिहाओ नीगेमि, २त्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडा जाव पहेसु सत्रओ समन्ता विप्पारामि, नहा णं तु, अदुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओं ववरोविज्जसि" ॥१५॥ तपणे से चुल्स यर समणोवासप तेणे देवेण एवं वुत्ते समाले अभीर जाव विहए ॥१५॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ उवासगदसासु तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाप पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तहेव भणइ जाव "ववरोविज्जसि" ॥१६०॥ तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए ४-" अहो !णं इमे, पुरिसे अणारिए जहा चुलणीपिया तहा चिन्तेइ जाव कणीयसं जाव आयञ्चइ, जाओ वि य णं इमाओ मम छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वढिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ, ताओ वि य गं इच्छइ मम साओ गिहाओ नीणेत्ता, आलभियाए नयरीए सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए" त्ति कटु उट्ठाइए जहा सुरादेवो। तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ ॥१६॥ सेसं जहा चुलणीपियस्स जाव सोहम्मे कप्पे अरुणसिद्ध विमाणे उववन्ने । चत्तारि पलिओषमाइं ठिई। सेसं तहेष जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥१६२॥ ॥ निक्खेवो ॥ ॥ पञ्चमं चुल्लसययऽज्झयणं समत्तं ॥ छठे कुण्डकोलिए अज्झयणे। ॥ उक्खेवो ॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कम्पिल्लपुरे नयरे । सहस्सम्बवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया । कुण्डको लिए गाहावई । पूसा भारिया। छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वड्ढिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ घया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । सामी समोसढे। जहा कामदेवो Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ छ8 कुण्डकोलिए अज्झयणे तहा सावयधम्म पडिबज्जइ। सम्वेव वत्तव्वया जाव पडिलामेमाणे विहरइ ॥१६३ ॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अन्नया कयाइ पुवावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, २त्ता समणस्स भगचओ महावीरस्त अन्तियं धम्मपण्णति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥१६४॥ तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स पगे देवे अन्तियं पाउभवित्था ॥१६५ ॥ तएणं से देवे नाममुदं च उत्तरिच पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, २त्ता सखिखिणि अन्तलिक्खपडिवन्ने कुण्ड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी ---"हं भो ! कुण्डकोलिया! समणोवासया ! सुन्दरी णं, देवाणुप्पिया, गोसालस्स मङ्खलिपुत्तल धम्मपण्णत्ती"-"नत्थि उहाणे ई वा, केम्मे इवा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा" । "मगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उहाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, अर्णिययो सबभावा" ॥ १६६ ॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासप तं देवं एवं वयासी"जइ ण, देवा! सुन्दरी गोसालस्स मवलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नस्थि उट्ठाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा; मगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्तीअस्थि उहाणे इ वा जाव अणियया सवभावा । तुमे णं, देवा! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी, दिव्वा देवज्जुइ, दिवे देवागुभावे किण्णा लद्धे किण्णा पत्ते किण्णा अभिसमन्नागए! me(61 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्यासगदलासु किं उहाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं, उदाहु अणुहम्मेणं अकम्मेणं जा अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ? " ॥१६७ ॥ तए णं से देवे कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी"एवं खलु, देवाणुप्पिया ! मए इमेयारूवा दिव्या देविड्ढी । अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया" ॥१६८॥ (तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-" जइ णं, देवा!तुमे इमा एयारूवा दिव्वा देविढी ३ अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, जेसिं णं जीवाणं नत्थि उहाणे इ वा जाव परकमे इ वा,ते किं न देवा ? अह णं, देवा! तुमे इमा पया रूवा दिव्वा देविड्ढी ३ उहाणेण जाव परक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, तो जं वदसि सुन्दरीणं गोसालस्स मालिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-तथि उहाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा-मङगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उहाणे इ वा जाव अणियया सव्वभावा, तं ते मिच्छा" ॥१६९३० (तए णं से देवे कुण्डकोलिएणं समणोवासपण एवं वुत्ते समाणे सङ्किए जाव कलुसमावन्ने नो संचाएइ कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स किंचि पामोक्खमाइक्खित्तए; नाममुद्दयं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, २त्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए ॥१७०) या तेण कालेण तेणं समएणं सामी समोसढे ॥१७॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए इमीसे कहाए लद्धढे हह जहा कामदेखो तहा निग्गच्छद जाव पज्जुवासह ।। धम्मकहा ॥१७॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठे कुण्डकोलिए अज्झयणे ३९ "कुण्डको लिया !" इ समणे भगवं महावीरे कुण्ड कोलियं एवं वयासी- " से नूणं कुण्डको लिया ! कलं तुग्भ पुव्वावरण्डकालसमयसि असोगवणियाप एगे देवे अन्तिय पाउन्भ वित्था । तर णं से देवे नाममुहं च तहेव जाव पडिगए । से नूणं, कुण्डकोलिया ! अट्ठे समट्ठे " ? " हन्ता, अस्थि" । "त घन्ने सिणं तुम, कुण्डकोलिया !" जहा कामदेवो ॥१७३॥ ! 2 अज्जो ! इ समणे भगवं महावीरे समणे निग्गन्थे य निग्गन्थीओय आमन्तित्ता एवं वयासी जइ ताव, अज्जो ग्रिहिणो गिहिमज्या 14 वसन्ताणं अन्नप्रत्थि अट्ठेहि य ऊँहि पसिहि ये कारणेहि य वागरणेहिं य निष्पट्टपक्षिणवागरणे करेन्ति, सेक्का पुणाई, अज्जो ! समणेहिं निग्गन्थेहि दुबालसङ्गं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहिं अन्नउत्थिया अहि य जाव निष्पट्टपसिणा करितर ॥ १७४॥ तर णं समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्त्र भगवओ महावीरस्स "तह" ति एयमहं विणपणं पडिसुशेन्ति ॥ १७५ ॥ तर णं से कुण्डको लिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २ त्ता पसिणाई पुच्छर, २ ता अट्ठमादियह, २ ता जामेव दिसिं पाउन्भूप तामेव दिसिं पडि गए । १७६ ।। सामी बहिया जणवयविहारं विहरह ॥ १७७॥ तणं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील जाव भावमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइकन्ताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाप जाव Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० उवासगदसासु धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताण विहरह ॥ एवं पक्कारस उवासगपडिमाओ॥१७८॥ __ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अन्तं काहिइ ॥१७॥ " ॥निक्खेवो ॥ ॥ छटुं कुण्डकोलियऽज्झयणं समत्तं ।। सत्तमे सदालपुत्ते अज्झयणे । ॥ उक्खेवो ॥ पोलासपुरे नाम नयरे। सहस्सम्बवणे उज्जाणे । जियसत्त राया ॥१८॥ तत्थ ण पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नाम कुम्भकारे आजीविओवासए परिवसइ । (आजीवियसमयंसि लद्धडे गहियढे पुच्छियढे विणिच्छियहे अभिगयढे अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ते य) अयमाउसो ! आजीवियसमए अढे अयं परमढे सेसे अणद्वे" त्ति आजीवियसमएण अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥१८१॥ तस्स णं सहालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी निहाणप उत्ता एका वढिपउत्ता एक्का पवित्थरपउत्ता एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं ॥१८२॥ .. तस्स णं सहालपुत्तस्स आजीविओवासगस्से अग्गिमित्ता नाम भारिया होत्था ॥१८॥ तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पञ्च कुम्भकारावणसेया होत्था। तत्थ ण बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकलिं बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिञ्जरए य जम्बूलए य उट्टियाओ य करेन्ति । अन्ने य से Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमे सद्दालपुत्ते अज्झयणे बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकलि तेहिं बहूहिं करपहि य जाव उट्टियाहि य रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरन्ति ॥१८४॥) . तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ पुवावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ २त्ता गोसालस्स मङ्खलिपुत्तस्स अन्तियं धम्मपत्ति उव संपज्जित्ताणं विहरइ ॥१८५।। तए ण तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगे देवे अन्तियं पाउन्भवित्था ।।१८६।। - (तए ण से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने सखिखिणियाई जाव परिहिए सदालपुत्तं आजीविओवासय एवं वयासी"एहिइ णं, देवाणुप्पिया ! कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्नणाणदसणधरे तीयपडपन्नमणागयजाणए अरहा जिणे केवली सवण्णू सम्वदरिसी तेलोकवहियमहियपूइए सदेवमगुआसुरैस्स लोगस्स अच्चणिज्जे वन्दणिज्जेसकारणिज्जे संमाणणिज्जे कल्लाणं मङ्गलं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासणिज्जे तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते । तं णं तुमं वन्देज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढफलगसिज्जासंथारपणं उवनिमन्तेज्जाहि" दोच्च पि तच्चं पि एवं वयइ २ त्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥१८७॥ ) तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्त तेण वेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४ समुपन्ने-"एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले लिपुत्ते, से णं महामाहणे उप्पन्नणाणदसणधरे जाव चकम्मसंपयासंपउत्ते, से णं कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सह । एणं तं अहं वन्दिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि, पाडिहापणं जाव उवनिमन्तिस्सामि" ॥१८८॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु तप णं कल्लं ज्ञाव जलन्ते समणे भगवं महावीरें. समोसरिए । परिसा बिग्गया जाव पज्जुवासह ॥ १८९॥ तप णं से सद्दालपुत्ते आजीविभोवासए इमीले कहाए लट्ठे समाणे, “एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरण, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वन्दामि अब पज्जुवासामि", एव संप्रेहेइ, २ त्ता पहाए जाव पायच्छि सुखपावेसाई जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे मणुस्तबगुरापरिगए साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, २ ता पोला ४२ सपुरं नयरं मज्झमज्झेणं निग्मच्छर, त्ता जेणेव सहस्त्रस्वणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह, २त्ता तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, २ चा. वन्दइ नमसइ, २ ता जाव पज्जुवासइ ॥ १९० ॥ 66 तपणं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य महइ जाव धम्मक्रहा समता ॥ १९२॥ 'सद्दालपुत्ता !" इ समणे भगवं महावीरे सहालपु आजीविओवासयं एवं वयासी- "से नूणं, सद्दालपुत्ता ! कल्लं तुमं पुव्वावरण्यकालसमर्थसि जेणेव असोगवणिया जाव विहरसि । तप णं तुब्भं एगे देवे अन्तियं पाउब्भबित्था । तए णं से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने एवं वयासी"हं भो ! सद्दालपुत्ता !" तं चैव सव्वं जाव "पज्जुवासि स्लामि” । से नूणं. सहालपुत्ता ! अट्ठे समट्ठे ? ॥ "हंता, अत्थि " , "नो खलु सद्दालपुत्ता ! तेण देवेणं गोसालं मंखलिपुचं पणिहाय एवं बुत्ते" ॥१९२॥ तपणं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स सम पेण भगवया महावीरेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमे थारूवे अज्झत्थिप ४ " एस णं समणे भगवं महावीरे महा माद्दणे उप्पन्नणाणदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपयासं पडते Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमे सद्दालपुते अज्झायणे .. त सेयं खलु ममं समण भगवं महावीरं वन्दिामा ममंसित्ता पाडिहारिएणं पीढफलग जाव उवनिमन्तित्तए" एवं संपेहेर, २ चा उहाए उठेइ, २.त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दा नमंसइ, २ ता एवं वयासी-"एवं खलु, भन्ते ! ममं पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पञ्च कुम्भकारावणसया । तत्थ लं तुब्भे पाडिहारियं पीढ जाव संथारयं ओपिण्हित्साणं विहरह" ॥१९३॥ तए णं समणे भगवं महावीरे सदालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पयमट्ठं पडिसुणेइ, २ त्ता सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासमस्स पञ्च कुम्भकारावणसएसु फासुएसणिज्जं पाडिहारियं पीढफलग जाव संथारयं ओगिण्हित्ताणं विहरइ ॥१९४॥ तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ वायाहययं कोलालभण्डं अन्तो सालाहिंतो बहिया नीणेइ, २त्ता आयवंसि दलयइ ।।१९५॥ तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी-"सदालपुत्ता! एस णं कोलालभण्डे कओ?" ॥१९६॥ तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-“एस णं, भन्ते ! पुटिव मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं निमिज्जइ, २त्ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, २त्ता चक्के आरोहिज्जइ, तओ बहवे करगा य जाव उट्टियाओ य कज्जन्ति" ॥१९७॥ तए णं समणे भगवं महावीरे सदालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी- "सदालपुत्ता ! एस णं कोलालभण्डे किं उहाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जति, उदाहु अणुहाणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जति ?" । १९८॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ उवासगदसासु _तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी- "भन्ते ! अगुहाणेणं जाव अपुरिस कारपरक्कमेणं, नत्थि उहाणे इ वा जाव परक्कमे इवा, नियया सवभावा" ॥१९९॥ । तए णं समणे भगवं महावीरे! सद्दालपुत्तं आजीविओ. वासयं एवं वयासी- "सद्दालपुत्ता ! जइ णं तुभं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलालभण्डं अवहरेज्जा वा विक्खिरेज्जा वा भिन्देज्जा वा अच्छिन्देज्जा वा परिद्ववेज्जा वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुञ्जमाणे विहरेज्जा, (तस्ल णं तुम पुरिसस्स किं दण्डं पत्तेज्जासि ?'') ___ "भन्ते ! अहं णं तं पुरिसं आओसेज्जा वा हणेज्जा वा बन्धेज्जावामहेज्जावा तज्जेज्जा वा तालेज्जावानिच्छोडेज्जा वा निभच्छेज्जा वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जा" ॥ सद्दालपुत्ता ! नो खलु तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलालभण्डं अवहरइ वा जाव परिहवेइ वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ । नो वा तुमं तं पुरिसं आओसेज्जसि वा हणे ज्जसि वा जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जसि । जइ नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इवा, नियया सव्वभावा। अह णं, तुभं केइ पुरिसे वायाहयं जाव परिवेइ वा अगि मित्ताए वा जाव विहरइ, तुम वा तं पुरिसं आओसेसि वा जाव ववरोवेसि । तो जं वदसि तत्थि उहाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा, तं ते मिच्छा" ॥२००।) एत्थणं से सद्दालपुत्त आजीविओवासप संबुद्धे ॥२०१॥ तए णं से सदालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमे सहालपुत्ते अज्झयणे ४५ महावीरं वन्दइ नमसइ, २ त्ता एवं घयासी- " इच्छामि णं, भन्ते, तुम्भं अन्तिर धम्मं निसामेत्तर " ॥ २०२ ॥ तपणं समणं भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीषिओवासगस्स तीसे य जाव धम्मं परिकहेइ || २०३॥ तपणं से सद्दालपुत्त आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिम धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हियए जहा आणन्दो तहा गिरिधम्मं पडिवज्जइ । नवरंपगा हिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगा हिरण्णकोडी वढिपउत्ता एगा हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वर दसगोसाहस्सिरणं वरणं जाव समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २ त्ता जेणेव पोलासपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता अग्गिमित्त भारियं एवं वयासी- “एवं खलु, देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छाहि णं तुमं, समणं भगवं महावीरं वन्दाद्दि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जाहि " ॥ २०४ ॥ " तर णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणो वासगस्स 'तह' त्ति एयमहं विणएण पडिसुणेइ || २०५ || तपणं से सद्दालपुत्ते समणोवासप कोडम्बियपुरि से सद्दावर २ ता एवं वयासी - "खिप्पामेव, भो ! देवाणुपिया ! लहुकरणजुत्तजोइयं समखुरवालिहाणसमलिहियसिङ्गपर्हि जम्बूणयामयकलावजोत्तपइविसिट्टपछि रययामयघण्टसुत्तरज्जुगवरकञ्चणखइयनत्थापग्ग होग्गाहियएहि नीलप्पलकया मेल्ल पहिं पवरगोणजुवाणपछि नाणामणिकणग घण्टियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त उज्जुग पसत्थसुविरइय Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासंगदलासु निम्मियं पवरलक्षणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणष्पवर्क उवहवेह, २ त्ता मम एयमाणत्तिय पञ्चपिणह ॥ २०६ ॥ तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा जाब पच्चप्पिणन्ति ॥२०७॥ - तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया ण्हाया जाव पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडियाचकवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, २ त्ता पोलासपुरं नगरं मन्झंमज्झेणं निग्गच्छा, २त्ता जेणेव सहस्सम्बवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता धम्मियाओ जाणाओ पच्चोरुहइ, २ त्ता चेडियाचकवालपरिवुडा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद; २ त्ता तिक्खुत्तो जाव वन्दइ नमसइ, २त्ता नच्चासन्ने नाइदूरे जाव पञ्जलि. उडा ठिइया चेव पज्जुवासइ ॥२०॥ तए णं समणे भगवं महवीरे अग्गिमित्ताए तीसे य जाव धम्म कहेइ ॥२०९॥ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हहतुहा समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता एवं वयासी-"सहहामि णं, भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं जाव से जहेयं तुब्मे वयह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे उग्गा भोगा जाव पव्वइया, नो खलु अहूं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा भवित्ता जाव । अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पश्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुई, देवाणुपिया ! मा पडि बन्धं करेह" ॥२१०॥ तपण सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवो महावीरस्त मन्तिए पम्बाब्वायं सत्तसित्ताव दुधालसचिर साबणयामं पविचमा २ता समण भगवं महावीर Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ सत्तमे सहालपुत्ते अज्झयणे बन्दा नमंसहं, २त्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहद, २त्ता जामेक दिसिं पाउम्भूया-तामेव दिसिं पडिगया॥२११ तए णं समणे भगवं महवीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओ सहस्सम्बवणाओ पडिनिग्गच्छइ, २त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२१२॥ तपणं से सहालयुत्ते समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ॥२१॥ तए णं से गोसाले मक्खलिपुत्ते इमीसे कहाए लढे समाणे, "एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गन्थाणं दिहिं पडिवन्ने । तं गच्छामि णं सहालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गन्थाणं दिद्धि वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिठिं गेण्हावित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, २त्ता आजीवियसंघपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीवियसभा, तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता आजीवियसभाए भण्डगनिक्खेवं करेइ, २ त्ता कइवपहिं आजीविपहिं सद्धि जेणेव सदालपुत्ते समणोवालए तेणेव उवागच्छह ॥२१४॥ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोंसालं मङ्खलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, २त्ता नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीष संचिट्ठइ ॥२१५॥ तए ण से गोसाले मङ्खलिपुत्ते सदालपुत्तेणं समणोवास. एणं अणाढाइज्जमाणे अपरिजाणिज्जमाणे पीढफलगसिज्जासंथारट्ठाए समणस्स भगवओ महावीरस्सगुणकित्तणं करेमागे सदालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी- “मामय णं, देवाणुस्पिया! हं महामाहणे"! ॥२१॥ पण से सहालपुते समपोवासप मोसा मस्खलिपुस एवं वयाती:-'के ण, बागुप्पिया! महामारणे." ॥२७ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवसागदसासु तपणं से गोसाले मङ्गलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं पवं वयासी- " समणे भगवं महावीरे महामाहणे " ॥ " से केणट्टेणं, देवाणुप्पिया ! एवं बुच्चद्द- समणे भगवं महावीरे महामाहणे ? " કેટ "" एवं खल, सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उत्पन्नणाणदंसणधरे जाव महियपूए जाव तच्च - कम्मसंपया संपत्ते । से तेणद्वेणं, देवाणुप्पिया ! एवं बुच्चइसमणे भगवं महावीरे महामाहणे । " "आगए णं, देवाणुपिया ! इहं महागोवे " ! ॥ " के णं, देवाणुपिया ! महागोवे ? ” " समणे भगवं महावीरे महागोवे ॥" 64 221 से केणट्टेणं, देवाणुप्पिया ! जाव महागोवे ? ” " एवं खलु, देवाणुपिया समणे भगवं महावीरे संसा'usaly बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्नमाणे छिज्जमाणे भिज्जेमाणे, लुप्पमाणे विलुप्पमाणे धम्ममपणं दण्डणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे, निव्वाणम हावाडं साहस्थि' संपावेइ । से तेणट्टेणं, सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चई - समणे भगवं महावीरे महागोवे ।” श आगप णं, देवाणुप्पिया ! इदं महासत्थवाहे " ! ॥ " के णं, देवाणुपिया ! महासःथवाहे ? " "सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे मद्दा सत्थवाहे " ॥ " से केणट्टेणं ? " 6L एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे संसाराडवीप बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे नाव विलुप्पमाणे धम्ममपणं पन्थेण सारखखमाणे निव्वाणमद्दापणा" भिमुहे साहत्थि संपावे । से तेणद्वेणं, सद्दालपुत्ता ! पर्व Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमे सद्दालपुत्ते अज्झयणे । ४९ दुच्चर - समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे । आगए णं, देवागुप्पिया ! इदं महाधम्मकही " ॥ <" "" के णं, देवाणुप्पिया ! महाधम्मकही १ " समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ॥ " से केणद्वेणं समणे भगवं महावीरे महाधम्मकदी ?" ' एवं खलु, देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जोवे नस्समाणे विणस्समाणे उम्म पडिवन्ने सप्पदविप्पणट्टे मिच्छत्तबलाभिभूए अट्ठविकम्मतम पडलपडोच्छन्ने बहूहिं अट्ठेहि य जाव वागरजेहि य चाउरन्ताओ संसारकन्तोरोओ साहस्थि नित्थारे । से तेणट्टेणं, देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ- समणे भगवं महावीरे महाधम्मकडी ।" "" " आगप णं, देवाणुविया, इहं महानिजामए !" “के णं, देवाणुपिया ! महानिज्जामए ? "समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए " || "से केणट्टेणं "एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे वुड्डमाणे निबुइडमा उपियमाणे धम्ममइए नावाए निव्वाणतीराभिमुद्दे साहस्थि संपावेह से तेणद्वेणं, देवाणुपिया ! एवं वुच्चर - समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए" ॥२१८॥ "" ४ "" तप णं से सद्दालपुत्ते समणोवालए गोसालं मलिपुत्तं एवं वयासी- " तुभेणं, देवाणुपिया ! इयच्छेया जाव इयनिउणा इयनेयवादी इयंउवपसलेद्वा इयविण्णाणपत्ता, पभू णं तुम्भे मम धम्मायरिपणं धम्मोवएसपणं भगवया महावीरेण सद्धि विवादं करेशर ?” Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JMM . . T AL T उवासगदसासु "नो इन्टे सम" से केणटेणं, देवाणुपिया! एवं बुच्चइ-नो खलु पभू तुज्य मम धम्मायरिपणं जाध महावारण सचि विवाद करेत्तए?"॥ "सदालपुत्ता ! से जहानामुए केइ पुरिसे तरुणे जुंगर्ष नाव, निडणसिप्पोवगए पगं महं अयं वा पलयं वा सूयरं घा कुक्कुड वा तित्तिर वा वयं वा लवियं वा कवाय वा कविञ्जले वा वायस वा सेणय वा हत्थूसि वा पायसि वा खुरसि वा पुच्छसि वा पिच्छसि वा सिङ्गसि वा विसाणसि चारोमसि वा जहिं जहिं गिण्हई, तहिं तहिं निच्चलं निष्फंदं घरेडू । एवामेव समणे भगवं महावीरे ममं बहूहिं अटेहि य हेहि य जाव वागणेहि य जहिं जहिं गिहई, तहिं तहिं निप्पट्टपसिणवागरणं करेई । से तेणटेणं, सद्दालपुत्ता ! एवं पुच्चइ-नो खलु पभू अहं तव धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं सद्धिं विवाद करेत्तर" ॥२१९॥ तए णं से सदालपुत्ते समणोवासए गोसालं मडलिपुत्तं एवं वयासी-" जम्हों णं, देवाणुप्पिया, तुम्भे मम,धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स सन्तेहिं तच्चेहि तहिहिं सभूपहिं भावहिं गुणकित्तर्ण करह, तम्ही णं अहं तुब्भे पाङि हारिषणं पीढ जाव संथारएणं उवनिमन्तेमि । नो चेव णं धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा । तं गुच्छह णं तुन्मे मम कुम्भा. विगे पाडिहरियं पीढफैलंग जाव ओगिरिहत्तीण विहरह" ॥२२०।। तए णं से गोसाले मङ्गुलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवा. सयस्स एयमé पडिसुणेइ, २. ता कुम्भारावणेसु पाडिहारियं पीढ जाव ओमिछिहत्ताणं बिहरह ॥२२॥ तपण से गोसाले मलिपुते सद्दालपुत्तं समणोवासमं जानोसंचाएइ बहूहि आघषणाहिय पण्णवणाहि य सण्णव 12sino Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमे सहालपुत्ते अन्झयणे हि बविण्णवणाहि य निगमस्थाओ पावयणाओ चालित्तए खोभित्तए वा विपरिणामिसप वा, ताहे सैन्ते तन्ते परिवे पोलालपुराओ नयराओ पडिणिक्ख इ. २ त्ता बहिया अपवयविहारं विहरइ ॥२२२॥ तप णं तस्स सदालपुत्तुस्स समणोवासयस्स बहू हिं मील जाव भावेमाणसे चोइस संवच्छरा वीइकन्ता । अण्णरसमस्त संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाषरस पुष्वरत्ताभरतकाले जाव पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिय धम्मपण्णति उवसंपजिजत्ताण विहरइ ।।२२३॥ तए ण तस्स सहालपुत्तस्स समणोवासयस्त पुव्वरत्तावरचकाले एगे देवे अन्तियं पाउब्भवित्था ॥२२५।। तए ण से देवे एगं महं नीलप्पले जाव असिं गहाय सदालपुतं समणोवासयं एवं क्यासी-जहा..धुलणीपियरस तहेव देवो उवसग्गू करेइ । नवरं-पक्केके पुत्ते नव मंसोल्लए करेह । जाव कणीयसं घाएइ,२ त्ता जाव आयोचा ॥२२५॥ तए णं से सद्दालयुत्ते समणोवासर अभीए जीव विहरह ॥२२॥ तए णं से देवे सहालपुत्ते समणोवासयं अभीयं जाव पासित्ता चउत्थं पि सदालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी "हं भो ! सद्दालपुत्ता! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! नाव व भञ्जसि, तओ ते जाइमा अगिमित्ता भारियों धम्मसहाइया धम्मबिइन्जियों धम्माणुरागरत्तो'समंसुहदुखसहाइया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, २ त्ता तव अम्मी पापमि, २ तानब मसलोल्लए करेमि, २ आदा. णभरियसि कडाइयंसि अहमि, २ चा तब गाय मंसेणब सोणिपणे च ओपबामि, जहाणं तुम अदुह जाब ववरोपिजसि WRRIGAR Rાન્યાવચ્ચે Ani20141101 CAba M Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ उवासगदसामु तए, ण से सहालपुत्ते समणोवासप तेण देघेणं पर्व वृत्त समाणे अभाप' जाव विहरइ ॥२२८॥ तर णं से देवे सहालपुत्तं समणोवासयं दोधं पि तश्चं पि. एवं व्यासी-"हं भो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया!' तं चेव भणा ।।२२९॥ तए ण तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स तेणं देवेण दोच्च पि तच्च पि एवं बुत्तस्स समाणस्स अयं अजनथिए ४ समुप्पन्ने-एवं जहा चुलणीपिया तहेव चिन्तेइ । “जेणं मम जेहें पुतं, जेणं मम मज्झिमय पुत्तं, जेणं मम कणीयसं पुत्तं जाव आयञ्चई जा वि य णं मम इमा अग्गिमित्ता भारिया समसुहदुक्खसहाइया, तुं पि य इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता ममं अग्गओ घापत्तए । तं सेंयं खलु मम एयं पुरिसे गिण्हित्तए" त्ति कटु उट्टाइए जहा चुलणीपिया तहेव सव्वं भाणिय। नवर-अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चुलणीपियावत्तव्वया, नवरअरुणच्चए विमाणे उववन्ने जाव महाविदेहे वासे सिज्झिाहिड्॥२३०॥ ॥निक्खेवो॥ ॥सत्तमं सद्दालपुत्तऽज्झयणं समस्त। अट्ठमे महासयये अज्झयणे ॥ उक्खेवो ।। एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समपण रायगिहे नयरे । गुणसिले चेइए । सेणिप राया ॥२३॥ तत्थ णं रायगिहे महासयए नाम गाहावई परिवसाह अइढे जहा आणन्दो। नवरं -अट्ठ हिरण्णकोडीमो सक Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमे महासयये अज्झयणे साओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ वड्ढि उत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सर्कसाओ पवित्थरपत्ताओ, अट्ट वया दसगोसाहस्सिपणं वपणं ॥ २३२ ॥ तस्स णं महासययस्स रेवईपामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था, अहीण जाव सुरूवाओ || २३३ || तस्स णं महासययस्स रेवईए भारियाप कोलघरयाओ अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ट वया दसगोसाहस्रिणं वरणं होत्था | अवसेसाणं दुवालसण्डं भारियाणं कोलघरिया पगमेगा हिरण्णकोडी, पगमेगे य वर दसगोसाहस्सिपणं वरणं होत्था || २३४|| तेणं कालेणं तेणं समपणं सामी समोसढे । परिसा निग्गया । जहा आणन्दो तहा निग्गच्छइ । तदेव सावयधम्मं पडिवज्जइ । नवरं अड्ड हिरण्णकोडीओ सकंसाओ उच्चारेह, अट्ठ वया, रेवईपामोक्खाहि तेरसहि भारियाहि अवसेस मेहुणविहिं पच्चक्खाइ । सेसं सव्वं तदेव । इमं चणं पयारूवं अभिग्गहूं अभिगिण्es - "कल्ला कल्लि कप्पर में वेदोणियार कंसपाईए हिरण्णभरियार संववहरित्तए” ||२३५|| तए णं से महासयए समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ॥ २३६ ॥ तप णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरह ||२३७|| तप णं तीसे रेवईए गाहावरणीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्ब जाव इमेयारूवे अज्झस्थिर ४- एवं खलु अहं इमासि दुवालसण्द्दं सवत्तीणं विघापणं नो संचामि महासयपणं समणोवासपणं सद्धि उरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुञ्जमाणी विहरितप । तं Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु सेयं खलु ममं एयाओ दुवालस वि सवत्तियाभो अग्गिपओगेण वा सत्यापओगेण वा विसप्पओगेण वा जीवियाओ धवरोवित्ता, पयासि एगमेगं हिरण्णकोर्डि एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ताण महासयएणं समणोवासपणं सद्धि उरालाई जाव विहरित्तए' एवं संपेहेइ, २ ता तासिं दुघालसहं सवत्तोण अन्तराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरह ॥२३८ ।। तए णं सा रेवई गाहावाणी अन्नया कयाइ सालि दुवालसण्ह सवत्तीणं अन्तरं जाणित्ता छ सवत्तीओ सत्थप्पओगेणं उद्दवेइ, २त्ता छ सवत्तीओ विसप्पभोगेणं उद्दवेइ, २त्ता तासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं कोलधरियं एगमेगं हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव पडिवज्जइ, २त्ता महासयपणं समणोवासपणं सद्धि उरालाई भोगमोगाई भुजमाणी विहरइ ॥२३९।।। तप णं सा रेवई गाहावणी मसलोलुया, मंसेसु मुच्छिया, जाव अज्झोववन्ना बहुविहेहिं मंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भन्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च मज्ज च सोधुं च पसन्नं च आसाएमाणी ४ विहरइ ॥२४०॥ तए णं रायगिहे नयरे अन्नया कयाइ अमाघाए घुडे यावि होत्था ॥२४१।। तए णं सा रेवई गाहावइणी मंसलोलुया, मंसेसु मुच्छिया ४ कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ, २ ता एवं वयासी"तुम्मे, देवाणुप्पिया ! मम कोलघरियहितो वएहितो कल्लाकल्लि दुवे दुवे गोणपोयए उद्दवेह, २त्ता ममं उवणेह"||२५२।। तपणे ते कोलरिया पुरिसा रेवईए गाहावरणीए 'लह' त्ति एपमार्ट विणपणं पडिसुणन्ति, २ला रेवईप गाहावरणीय कोळपरिपदितो वहितो कल्लाकर्षिल दुवे दुवे Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमे महासयये अज्झयणे बोणपोयर बहेन्सि, २ सा रेवईए गाहावाणीए उषणेन्ति ॥२४३॥ तप णं सा रेवई गाहावाणी तेहिं गोणमंसेहिं सोफ्लेहि य ४ सुरं च ६ आसापमाणी ४ विहरइ ॥२४॥ तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स महर्षि सील जाव भावेमाणस्स चोइस संवच्छरा वीइकन्ता। पर्व तहेव जेठं पुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥२४॥ तए णं सा रेवई गाहावाणी मत्ता, लुलिया, घिण्णकेसी, उत्तरिज्जयं विकढमाणी २ जेणेव पोसहसाला जेणेघ महासयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता मोहुम्मा. यजणणाई सिङ्गारियाई इस्थिभावाइं उवदंसेमाणी २ महासययं समणोवासयं एवं वयासी-"हं ! भो ! महासयया! समणोवासया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकलिया ! ४ धम्मपिवासिया ! ४, किं णं तुम्भ, देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सम्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धिं उरालाई जाव भुञ्जमाणे नो विहरसि ?" ॥२४६।। तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहाघहजीए एयमनो आढाइ, नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥२४७।। तप सा रेबई गाहावाणी महासयययं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-"हं ! भो!" तं चेव भणइ, सो बि तहेव जाव अणाढायमाणे अपरियाणमाणे विहरह १२४८ तए णं सा रेवई गाहावाणी महासयएणं समणोचासपण अणादाइज्जमाणी अपरियाणिज्जमाणी जामेव दिसिं पाउम्भूया तामेव दिसि पडिमया ॥२४॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु तए णं से महासयप समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । पढमं अहासुत्तं जाव एक्कारस वि ॥२५०। तए णं से महासयए समणोवासप तेणं उरालेणं जाप किसे धमणिसंतए जाए ॥२५१॥ तए णं तस्स महासययस्स समणोवासयस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ४-"एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं" जहा आणन्दो तहेव अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाए झूसियसरीरे भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं अणवकङ्खमाणे विहरइ ॥२५२॥ तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स सुमेणं अज्झवसाणेणं जाव खओवसमेणं ओहिणाणे समुप्पन्ने । पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणा पासइ, एवं दक्खिणेणं, पञ्चत्थिमेण । उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासहरपव्वयं जाणइ पासइ, अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सट्टिइयं जाणइ पासइ ।२५३॥ तए ण सा रेवई गाहावइणी अन्नया कयाइ मत्ता जाव उत्तरिज्जयं विकढमाणी २ जेणेव महालयए समणोपासए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छद, २त्ता महासययं तहेव भणइ जाव दोच्च पि तच्चं पि एवं वयासी"हं! भो!" तहेव ॥२५४॥ तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते ४ ओहि पउञ्जइ, २त्ता ओहिणा आभोएइ, २त्ता रेवई गाहाघडणि एवं वयासी-"हं ! भो! रेवई ! अपत्थियपत्थिए ! ४ पवं खलु तुम अन्तो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमे महासयये अज्झयणे अभिभूया समाणी अट्टदुहवसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवोए लोलुयच्चुए नरए चउरासोश्वाससहस्सहिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववजिहिसि" ॥२५५।। तए णं सा रेवई गाहावाणी महासयएणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी एवं वयासी-"रुडे णं ममं महासयए समणोवासए, हीणे णं मम महासयप, अवज्झाया णं अहं महालयपणं समणोवासपण, न नज्जइ णं अहं केण वि कुमारेणं मारिजिस्सामि' त्ति कटु भोया तत्था तसिया उबिग्गा संजायभया सणियं २ पच्चोसकइ, २त्ता जेणेव सर गिहे तेणेव उवागच्छद, २ त्ता ओहय जाव झियाइ ॥२५॥ तए णं सा रेवई गाहावइणो अन्तो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया अदृदुहवसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउ. रासीइवाससहस्सटिइपसु नेरइपसु नेरइयत्ताए उववन्ना ॥२५॥ तेणं कालेणं तेणं समरणं समणे भगवं महावीरे । समोसरणं जाव परिसा पडिगया ॥२५८।। 'गोयमा " इ समणे भगवं महावीरे एवं वयासो"एवं खलु, गोयमा! इहेव रायगिहे नयरे ममं अन्तेवासी महासयए नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममार. णन्तियसंलेहणाप झूसियसरीरे भत्सपाणपडियाइक्खिए कालं अणव कङ्खमाणे विहरह । तए णं तस्स महासयगस्स रेवई गाहावाणी मत्ता जाव विकडूढमाणी २ जेणेब पोसहसाला जेणेव महासयए तेणेव उवागया, मोहुम्मायजाव एवं वयासी-तहेव जाव दोच्च पि, तच्च पि एवं Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासपदसासु बयासी। तप से महासपए समणोधासप रेवईए गाहापाणीप दोच्च पि तच्च पि पंच वुत्ते समाणे आसुरत्ते ४ मोहिं पउञ्जद, २ त्ता ओहिणा आभोएइ, २ सा रेवई गाहावइणि एवं वयासी-जाव "उववज्जिहिसि" । नो खलु कप्पइ, गोयमा ! समणोवासगस्स अपच्छिम जाव झूसियसरीरस्स भत्तपाणाडयाइक्खियस्ल परो सन्तेहिं तच्चेहिं तहिपहि सम्भूपहिं अणिटेहिं अकन्तेहिं अप्पिएहिं अमणुण्णेहिं अमपामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए । तं गच्छ णं, देवाणुप्पिया! तुमं महासययं समणोवासयं एवं वयाहि -"नो खलु, देवाणुप्पिया ! कप्पह समणोवासगस्स अपच्छिम जाव भत्तपाणपडियाइक्खियस्स परो सन्तेहिं जाव वागरित्तए । तुमे य णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी सन्तेहिं ४ अणिठेहिं ५ घागरणेहिं बागरिया । तं णं तुम एयरस ठाणस्स आलोएहि जाव जहारिहं च पाच्छित्तं पडिवज्जाहि" ॥२५९।। तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' त्ति एयमÉ विणपणं पडिसुणेइ, २ ता तओ पडिणिक्खमइ, २ त्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं अणुप्पविसइ, २ त्ता जेणेव महासयगस्स समणोवासयस्स गिहे जेणेव महासयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ ॥२६॥ तर णं से महासयए समणोवासए भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, २त्ता हट्ट जाव हियए भगवं गोयम बन्दा नमंसह ॥२६॥ तए णं से भगवं गोयमे महासययं समणोवासयं एवं पयासी-"एवं खलु, देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खा भासह पण्णवेइ परवेइ-"नो खलु कप्पा, देवागुप्पिया ! समणोधासगस्स अपच्छिम जाव वागरिसर । तुमे गं, देवाणुप्पिया ! रेवई गाहावइणी सन्तेहिं जाव चाग Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमे महासयये अज्झयणे रिया । तं णं तुम, देवाणुप्पिया ! एयस्ल ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि" ॥२६२॥ तए णं से महासयए समणोवासए भगवओ गोयमस्स 'तह' ति पयमझें विणएणं पडिसुणेइ, ५ त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं च पायच्छित पडिवज्जइ ॥२६३।। तए णं से भगवं गोयमे महासयगस्स समणावासयस्स अन्तिवाओ पडिणिक्खमइ, २ ता रायगिह नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छद, २ त्ता जेणेव समणे भगवं महाधीरे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥२६॥ .. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, २ त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२६॥ तपणं से महासयप समणोवासए बहूहिं सोल जाव भावेत्ता बीर्स वासाइं समणोवासगपरियायं पाणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारण फासित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणसिए विमाणे देवत्ताए उवचन्ने । चत्तारि पलिओवमाई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिद ॥२६६॥ निक्खेवो॥ अहम महासयजमायणं समन्त ।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमे नन्दिणीपिया अज्झयणे । ।उक्खेवो॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समपणं सावत्थी मयरी । कोहए चेहए । जियसत्तू राया ॥२६॥ .. तत्थ णं सावत्थीए नयरोए नन्दिणीपिया नाम गाहावई परिवसइ अड्ढे । चनारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चतार हिरण्णकोडोओ वढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, बत्तारि वया दसगोसाहस्लिपणं वएणं । अस्सिणी भारिया ॥२६॥ सामो समोसढे । जहा आणन्दो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ॥२६९॥ तए णं से नन्दिणीपिया समणावासए जाए जाव विहरइ ॥२७०॥ तए णं तस्स नन्दिणोपियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सोलन्वयगुण जाव भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइ. ककन्ताइ । तहेव जेडं पुतं ठवेइ । धम्मपण्णत्ति । वीस वासाई परियागं । नाणतं-अरुणावे विमाणे उववाओ। महाविदेहे वासे लिज्झिहिइ ॥ २७१॥ ॥निक्खेवो। नवम नन्दिणीपियऽज्झयणं समत्तं ॥ दसमे सालिहीपिया अज्झयणे । ॥ उक्खेवो ॥ एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी । कोहए चेइए । जियमत्तू गया ।। २७२ ॥ तत्थ पं सावत्थीए नयरीए सालिहीपिया नाम गाहावई परिवसइ अइढे, दित्ते । चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाण Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमे सालिहीपिया अज्झयणे पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्वारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । फग्गुणी भारिया ॥२७३।। सामी समोसढे । जहा आणन्दो तहेव गिहिधम्भ पडिवज्जइ । जहा कामदेवो तहा जेट्टं पुत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीररस धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । नवरं-निरुवसग्गाओ एक्कारस वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियवाओ । एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवताए उववन्ने । चत्तारि पलिओवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥२४॥ दसण्ह वि पण्णरसमें संवच्छरे वट्टमाणाणं चिन्ता । दसण्ह वि वीसं वासाई समणोवासयपरियाओ ।। २७५।। एवं खलु, जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेण सत्तमस्स अङ्गस्त उवासगदसाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ॥२७६॥ दसमं सालिहीपियऽज्झयण समत्त 'वाणियगामे चम्पा दुवे य बाणारसीह नयरीए । आलभिया य पुरवरी कम्पिल्लपुरं च बोद्धव्वं ॥१॥ पोलासं रायगिह सावत्थीए पुरीए दोन्नि भवे । एए उवासगाणं नयरा खलु होन्ति बोद्धव्वा ॥२॥ सिवनन्द-भद्द-सामा धन्न-बहुल-पूस-अग्गिमित्ता य । रेवह-अस्सिणि तह फग्गुणी य भज्जाण नामाइं ॥३॥ ओहिण्णाण पिसाए माया वाहि-धण-उत्तरिज्जे य। भज्जा य सुम्वया दुवया, निरुवसग्गया दोन्नि ॥४॥ १ एताः उपासकदशा-अजगतविषयस्य संग्रहगाथाः पुस्तकान्तरे सन्ति । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દૂર उवासगदसासु अरुणे अरुणाभे खलु अरुणप्पह- अरुणकन्त - सिठ्ठे य । अरुणज्झए य छट्टे भूय-वडिले गवे कीले ॥१५॥ बाली सहि असीई सट्टो सट्ठी य सट्ठि दस सहस्ला । असिई चत्ता चत्ता एए वइयाण व सहस्सा णं ॥ ६॥ बारस अट्ठारस चडवीसं तिविहं अट्ठरसाइ नेयं । धन्नेण तिचोवीसं बारस बारस य कोडीओ ||७|| अभिणुब्वट्टणे सणाणे य 1 आभरणं धूव-पेज्जाइ ||८|| भक्खीयण-सूय- घर सागे माहुर-: -जेमण पाणे य । तम्बोले इगवीसं आणन्दाईण अभिग्गहा ॥ ९ ॥ उड्ढं सोहम्मपुरे लोलूप आहे उत्तरे हिमवन्ते । पञ्चसर तह तिदिसिं ओहिण्णाणं दसगणस्स | १० || दंसण-वय- सामाइय-पोसह-पडिमा - अबम्भ - सच्चित्ते । आरम्भ-पेस - उद्दिट्ठवज्जप समणभूप य ॥११॥ इक्कास पडिमाओ वीसं परियाओ अणसणं मासे । सोहम्मे चउपलिया महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ ॥१२॥ उल्लण- दन्तवण- फले वस्थ - विलेषण - पुप्फे ॥ उवासगदसाओ समताओ ।। } उवासगदसाणं सत्तमस्स अङ्गस्स एगो सुयक्खन्धो । दस अज्झयणा पक्कसरगा दससु चेव दिवसेषु उद्दिस्सन्ति तओ सुयखन्धो समुद्दिस्लइ । अणुष्णविज्जइ दोसु दिवसेसु । अङ्गं तहेब || Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवसगदाओ सूत्र परिचय इस पुस्तक का नाम 'उवा सगदसा' अथवा 'उबासगदसाओ' है जिसका संस्कृत 'उपासकदशा' अथवा 'उपासकदशा:' होता है । यह जैन अन ग्रन्थों में सातव अङ्ग है । जैन भागम साहित्य में कुल बारह अन है जिसमें से ग्यारहवाँ अङ्ग 'हरिवाद' हजारों वर्षों से लुप्त हो गया है । विद्यमान ग्यारह अङ्ग अपने मूल परिमाण से बहुत कम हो गये हैं । 'समवाय' नामक चतुर्थ अङ्ग के वृत्तिकार श्री अभयदेवसूर के अनुसार उवासगदसा में अग्यारह लाख बावन हजार पद थे । नन्दिसूत्र के वृत्तिकार श्री मलयगिरि भी इसका समर्थन करते हैं । प्राचीन समय में आत्मार्थी संत साधु धर्म सूत्रों को कंठस्थ करके उनका प्रतिदिन स्वाध्याय करते रहते थे, परन्तु मगध देश में भारी दुष्काळ पड़ने से उनकी स्मरण शक्ति कम हो गयी और शास्त्र विस्मृत होने लगे । ऐसे समय में उनकी रक्षा करने के लिए आचार्य स्कंदिल और आचार्य नागार्जुन ने श्रमणों के अलग-अलग सम्मेलन बुलाए और जो शास्त्र बच गये थे उनकी रक्षा की । फिर फिर ऐसी स्थिति उत्पन्न होने और उस से बचने के लिए महाप्रभावक जैनाचार्य श्री देवर्षिगणी क्षमाश्रमण ने वलभीपुर में श्रमणों का एक विशाल सम्मेलन बुलाया और जिसको जितना पाठ याद था उसे ताड़पत्र आदि पर लिखवा दिया । उस समय प्रस्तुन उवासगदसाओ केवल आठ सौ अनुष्टुपू लोक प्रमाण में ही उपलब्ध था और आज भी वह उसी आकार में हमें मिल रहा है । अचेलक -- दिगंबर जैन परम्परा में इसका नाम उपासकाध्ययन है । इसका परिमाण अग्यारह लाख सत्तर हजार पद बतलाया गया है परन्तु वर्तमान में इस परम्परा में भी इस सूत्र का परिमाण कम हो गया है । उपासक - दशा अर्थात् उपासकों की माने भगवान महावीर के गृहFeat उपासकों की दवा याने अवस्था का वर्णन जिसमें भाता है Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ उवासगदसासु उसका नाम उपासकदशा अथवा उवासगदसा । इस नाम का अर्थ यह भी हो सकता है कि जिस प्रन्थ में दश संख्या वाले उपासकों की जीवनचर्या का वर्णन है उसका नाम उपासकदशा । इस प्रकार 'दसा' शब्द के दो अर्थ बतलाये गये हैं और नाम के अनुसार प्रस्तुत सूत्र में दश उपासकों की जीवनचर्या का वर्णन है अतः इस ग्रन्थ का नाम पूरा सार्थक है' । टिप्पणियाँ इस सूत्र की शैली समझने के लिए यहाँ पर कुछ टिप्पणियाँ दी जा रही हैं । १. प्रस्तुत सूत्र गद्यात्मक है और जहाँ किसी वस्तु का साहित्यिक दृष्टि से वर्णन करने का प्रसंग आया है उसका वर्णन वहाँ नहीं कर के उस वर्णन को अन्य सूत्र से पढ़ने के लिए वहाँ पर 'वण्णओ' ऐसा शब्द रख दिया है, जैसे- चम्पा नामं नयरी होत्था | वण्णओ || पुण्गभद्दे चेइए । वण्णओ ।। वाणियगामे नामं नयरे होत्था । वण्णओ || जियसत्तू नामं राया होत्था । वण्णओ || (देखिए कंडिका १ और ३) इनका वर्णन भपपातिक उववाइअ नाम के सूत्र में मिलता है जहाँ सूत्रकार ने इन सब का वर्णन कर दिखाया है । सूत्रकार ने बहुत से अन्य सूत्रों की भी रचना की है और सर्वत्र बारबार वर्णन न करना पड़े इस हेतु से अन्य सूत्रों में भी यथास्थान 'वण्णओ' शब्द का उपयोग किया गया है। ये वर्णन काफी लम्बे हैं । जिज्ञासु पाठक उनको औपपातिक सूत्र में से पढ़ लें । १. भगवान महावीरना दश उपासको (पं. बेचरदास जीवराज दोशी : गुजरात विद्यापाठ, अहमदाबाद, द्वितीय संस्करण, १९४८) नामक गुजराती पुस्तक में ऐतिहासिक बातें, ब्राह्मण, बौद्ध और जैन उपासकों की चर्या का तुलनात्मक अध्ययन, उवासगदसाओ का अनुवाद और उसके मुख्य शब्दों पर विवेचन दिया गया है । प्रस्तावना में काका साहेब कालेलकर का 'सत्पुरुषधर्म' नामक एक बड़ा निबन्ध भी है । विशेष जानकारी के लिए यह प्रन्थ पठनीय हैं। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ट्रिप्पणियाँ २. जिस प्रकार वर्णनीय प्रसंग को जानने के लिए 'वष्णभो' शब्द का उपयोग किया गया है उसी प्रकार 'जाव' शब्द का उपयोग भी इसी हेतु से क्रिमा गया है । 'वणओ' में पूरा. वर्णन अभिहित है लेकिन 'जाव' में यह वर्णन सीमित है और इसके लिए वहाँ पर अमुक शब्द से अमुक शब्द तक ऐसा स्पष्ट बतलाया गया है, जैसे-'समोसरिए आव जम्बू' (कंडिका-२) अर्थात् 'समोसरिए' शब्द से 'जम्बू' शब्द तक का प्रसंग, इससे अधिक नहीं । उसी प्रकार 'भगवया महावीरेणं जाव संपत्ता', 'समणेण जाव संपत्तेणं (क २), 'अड्ढे आव अपरिभूए' (कं. ३), 'राईसर जाव सत्यवाहाणं', 'मेढीभूए जाव सव्वकज्जवड्ढावए' (कं. ५), 'महीण जाव सुरूवा', 'सद्द जाव पञ्चविहे' (कं. ६), 'रिद्धस्थिमिय जाव पासादिए' (कं. ७) इत्यादि अनेक ऐसे स्थल हैं जहाँ 'जाव' शब्द का निर्देश किया गया है । ये सब वर्णन भी औपपातिक सूत्र में उपलब्ध है, केवल अन्तर इतना है कि ये वर्णन 'वण्णभो' वाले वर्णनों से छोटे हैं। ३. अनेक जगह अध्याहार्य शब्द तथा अर्थ को जानने के लिए २. ३, ४, ५, ६ इत्यादि अंकों का उपयोग किया गया है उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है:-- क. जहाँ जहाँ २ अंक का उपयोग हुआ है, जैसे--निग्गच्छइ, २ ता । संपेहेइ, २ ता। पडिणिक्खमइ, २ ता। उवागच्छइ, २ त्ता। और करेइ, २ ता । (कं. ९ और १०) वहाँ क्रियापद के मूल धात्वंश में 'इत्ता' पद लगाकर निग्गच्छित्ता, संपेहित्ता, पडिणिक्खमित्ता उवागच्छित्ता और करित्ता रूप दुहराने चाहिए । ख. 'असद्दहमाणे ३' से 'असद्दहमाणे अरोएमाणे अपत्तियमाणे' पढ़ना चाहिए (कं. ११३)। ग. 'आठक्खएणं ३' से 'आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं' पढ़ना चाहिए (कं. ९.) । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसासु घ. 'पच्चक्खामि ३' से 'पच्चक्खामि मणसा वयसा कायसा' पड़ना चाहिए (कं. १६)। 6. 'लद्धा ३' से 'लद्धा पत्ता मभिसमन्नागया' पढ़ना चाहिए (के. ___च. 'सकिए ३' से 'संकिए कंखिए विइगिच्छासमावन्ने' पढ़ना चाहिए (कं. ८६)। छ. 'भसण ४' से 'असणं पाणं खाइमं साइम' पढ़ना चाहिए (कं.६६)। ज. 'आइक्खइ ४' से 'भाइक्खइ भासइ पण्णवेइ परूवेइ' पढ़ना चाहिए (कं. ७९)। झ. 'आलम्बणं ४' से 'आलम्बणं पमाणं आहारे चक्खू पढ़ना चाहिए (कं. ६६) । अ. 'आसाएमाणी ४' से 'भासाएमाणी विसाएमाणी परिभुजेमाणी परिभाएमाणी' पढ़ना चाहिए (कं. २५०) । ट. 'मुच्छिया ४' से 'मुच्छिया गिद्धा लोला अज्झोववन्ना' पढ़ना चाहिए (कं. २४२) । ठ. 'अज्झथिए ४' से 'अज्झस्थिए चिंतिए मणोगए संकप्पे' पढ़ना चाहिए (कं. ७३) । जहाँ ५ हो वहाँ 'पत्थिए' और जोड़ देना चाहिए (कं. ८)। ड. 'अपत्थियपत्थिया ४' से 'अपत्थियपत्थिया दुरंतपंतलक्षणा हीणपुण्णचा उद्दसिया हिरिसिरिधिइकित्तिपरिवज्जिया' पढ़ना चाहिए । जहाँ ५ हो वहाँ 'धम्मपुण्णसग्गमोक्ख कामया' और जोड़ देना चाहिए (कं. ९५ और १३५)। ढ. 'आसुरत्ते ४' से 'आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए' पढ़ना चाहिए (कं. १०५) । जहाँ ५ हो वहाँ मिसिमिसीयमाणे और जोड़ देना चाहिए (कं.९९)। ण. 'धम्मकैखिया ५' से 'धम्मकंखिया पुण्णकंखिया सग्गकंखिया मोक्खकंखिया धम्मपुण्ण सग्गमोक्खकंखिया' पढ़ना चाहिए (कं. ९५) । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टिप्पणियाँ ६७ त. 'धम्मपिवासिया ५' से 'धम्मपिवासिया पुण्यपिवासिया सग्गपिवासिया मोक्खपिवासिया धम्मपुण्णसग्गमोक्खपिवासिया' पढ़ना चाहिए (कं. थ. 'पुप्फ ५' से 'पुप्फेणं वत्थेणं गंधेणं मल्लेणं अलंकारेणं' पढ़ना चाहिए (कं. ६६)। द. 'सिज्झिहिइ ५' से 'सिज्झिहिइ बुज्झिहिह मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिह' पढ़ना चाहिए (कं. १४४) । घ. 'इड्ढी ६' से 'इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कारपरक्कमे 'पढ़ना चाहिए किं. ११३)। सूत्रों में 'समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी' ऐसा वाक्य आता है वहाँ ‘मिणे सु हत्थी' ऐसा पदच्छेद होना चाहिए अर्थात् जिनों में -वीतरागों में हस्ती समान । 'जिणे सुहत्थी' ऐसा प्रथमान्त रखने में 'सुहत्थी' पद का कोई विशेष अर्थ नहीं दिखता और यह विशेषण उचित अर्थ का बोध नहीं कराता क्योंकि भगवान महावीर न तो शुभार्थी है और न ही सुखार्थी जैसा कि टीकाकारों ने समझाया हैं। अतः सूत्रों में प्रयुक्त 'पुरिसवरगंधहत्थी' पद के साथ तुलना करने पर 'जिणेसु हत्थी' पदच्छेद ही संगत प्रतीत होता है (देखिए कं. ७३)।। __ अध्ययन के प्रारम्भ में 'उक्खेवो' शब्द हो वहाँ द्वितीय अध्य. यन के प्रारम्भ में दी गयी पूरो कंडिका (नं. ९१) अध्ययन की संख्या बदलकर पढ़नी चाहिए (प्रथम और द्वितीय अध्ययन को छोड़कर) । ___अध्ययन के अन्त में 'निक्खेवो' शब्द प्रयुक्त है। वहाँ पर अध्ययनों की संख्या बदलते हुए ‘एवं खलु, जम्बू ! समणेणं जाव उवासग. दसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि' इस प्रकार पढ़ना चाहिए। आजीविक सम्प्रदाय के नेता गोशाल और उनके सिद्धान्त का वर्णन भगवतोसूत्र के पन्द्रहवें शतक, सूत्रकृतांग के दूसरे श्रतस्कन्ध के छठे अध्ययन और दोघनिकाय के सामञफलसुत्त आदि में भी मिलता है । जिज्ञासु पाठक वहाँ से पढ़ सकते हैं। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत विद्या मण्डल उद्देश्य – प्राकृत भाषा और प्राकृत साहित्य के अध्ययन का विकास, उसका प्रसार तथा उसके अभ्यासियों को सहायता करना । प्रवृत्ति - पाठ्यपुस्तकों की कमी को दूर करने के लिए प्रयत्न करना, आवश्यकता पड़ने पर योग्य पुस्तकों का प्रकाशन करना और प्राकृत भाषा का अध्ययन करने वाले तेजस्वी विद्यार्थियों को उत्साहित करने के लिए छात्रवृत्ति देना । प्रकाशन १ महावीरचरियं - आयरिथसिरिगुणचंद विरइयं. छट्ठो पत्थावो २ महावीर चरित -छट्टो प्रस्ताव अनुवादक पं. श्री बेचरदास जीवराज दोशा १-०० ३ भगवतीसूत्र, शतक पन्द्रहवाँ - गोशालक अनुवादक पं. श्री रूपेन्द्रकुमार १-५०. ००-७५ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________