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________________ ३७ छ8 कुण्डकोलिए अज्झयणे तहा सावयधम्म पडिबज्जइ। सम्वेव वत्तव्वया जाव पडिलामेमाणे विहरइ ॥१६३ ॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अन्नया कयाइ पुवावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, २त्ता समणस्स भगचओ महावीरस्त अन्तियं धम्मपण्णति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥१६४॥ तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स पगे देवे अन्तियं पाउभवित्था ॥१६५ ॥ तएणं से देवे नाममुदं च उत्तरिच पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, २त्ता सखिखिणि अन्तलिक्खपडिवन्ने कुण्ड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी ---"हं भो ! कुण्डकोलिया! समणोवासया ! सुन्दरी णं, देवाणुप्पिया, गोसालस्स मङ्खलिपुत्तल धम्मपण्णत्ती"-"नत्थि उहाणे ई वा, केम्मे इवा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा" । "मगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उहाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, अर्णिययो सबभावा" ॥ १६६ ॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासप तं देवं एवं वयासी"जइ ण, देवा! सुन्दरी गोसालस्स मवलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नस्थि उट्ठाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा; मगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्तीअस्थि उहाणे इ वा जाव अणियया सवभावा । तुमे णं, देवा! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी, दिव्वा देवज्जुइ, दिवे देवागुभावे किण्णा लद्धे किण्णा पत्ते किण्णा अभिसमन्नागए! me(61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002733
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages74
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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