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________________ ६४ उवासगदसासु उसका नाम उपासकदशा अथवा उवासगदसा । इस नाम का अर्थ यह भी हो सकता है कि जिस प्रन्थ में दश संख्या वाले उपासकों की जीवनचर्या का वर्णन है उसका नाम उपासकदशा । इस प्रकार 'दसा' शब्द के दो अर्थ बतलाये गये हैं और नाम के अनुसार प्रस्तुत सूत्र में दश उपासकों की जीवनचर्या का वर्णन है अतः इस ग्रन्थ का नाम पूरा सार्थक है' । टिप्पणियाँ इस सूत्र की शैली समझने के लिए यहाँ पर कुछ टिप्पणियाँ दी जा रही हैं । १. प्रस्तुत सूत्र गद्यात्मक है और जहाँ किसी वस्तु का साहित्यिक दृष्टि से वर्णन करने का प्रसंग आया है उसका वर्णन वहाँ नहीं कर के उस वर्णन को अन्य सूत्र से पढ़ने के लिए वहाँ पर 'वण्णओ' ऐसा शब्द रख दिया है, जैसे- चम्पा नामं नयरी होत्था | वण्णओ || पुण्गभद्दे चेइए । वण्णओ ।। वाणियगामे नामं नयरे होत्था । वण्णओ || जियसत्तू नामं राया होत्था । वण्णओ || (देखिए कंडिका १ और ३) इनका वर्णन भपपातिक उववाइअ नाम के सूत्र में मिलता है जहाँ सूत्रकार ने इन सब का वर्णन कर दिखाया है । सूत्रकार ने बहुत से अन्य सूत्रों की भी रचना की है और सर्वत्र बारबार वर्णन न करना पड़े इस हेतु से अन्य सूत्रों में भी यथास्थान 'वण्णओ' शब्द का उपयोग किया गया है। ये वर्णन काफी लम्बे हैं । जिज्ञासु पाठक उनको औपपातिक सूत्र में से पढ़ लें । १. भगवान महावीरना दश उपासको (पं. बेचरदास जीवराज दोशी : गुजरात विद्यापाठ, अहमदाबाद, द्वितीय संस्करण, १९४८) नामक गुजराती पुस्तक में ऐतिहासिक बातें, ब्राह्मण, बौद्ध और जैन उपासकों की चर्या का तुलनात्मक अध्ययन, उवासगदसाओ का अनुवाद और उसके मुख्य शब्दों पर विवेचन दिया गया है । प्रस्तावना में काका साहेब कालेलकर का 'सत्पुरुषधर्म' नामक एक बड़ा निबन्ध भी है । विशेष जानकारी के लिए यह प्रन्थ पठनीय हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002733
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages74
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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