Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri Charitam
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Abhaychand Seth
View full book text
________________
युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-चरितम
उग्घा हा पोरिसी शास्त्रे, प्रोक्ता तथापि तन्मते । हठाद्वहु पडिपुन्ना-पोरिसी कथनं पुनः ॥१७८|| मनः कल्पित पन्यास-पदस्यस्थापनं पुनः । दोक्षादौ स्थापनं नंद्या, जिनाद्याह्वानकं विना ॥१७६।। श्रीजयवीयरायस्योक्तंगाथाद्वय मागमे । तथापि पश्चगाथानां,पठनं निजकल्पितम् ॥१८०।। श्रीजयवीयगयस्यो-चारणे मस्त काञ्जलेः । स्त्रीभ्यो निषेधनं तस्मा, त्तदुत्सूत्र चतुर्दश ॥१८।। झोली विनोष्ण नीरस्या-नयनं दीप रक्षणम् । स्वगाजीव हानित्वा-दुत्सूत्र द्वयमत्रतत् ॥१८२।। अन्यतीथि गृहीताई-न्मूर्तिपूजन वन्दनम् । यत्तद्धिकथ्यते लोको-त्तरमिथ्यात्व मागमे ॥१८॥ तथापि केशरीयादि-जिनोपयाचनोच्यते । तैर्लोकोत्तर मिथ्यात्व-तयोत्सूत्रमत्रतत्त् ।।१८४।। तत्कालीनैश्च देवेन्द्र क्षेमकीर्त्यादि सूरिभिः । श्रीजगच्चन्द्र सूरेश्च, चैत्रवालगणो कथि ।।१८।। तैर्जगच्चन्द्र देवेन्द्र विजयचन्द्र सूरयः स्वग्रन्थे देवभद्रोपा-ध्यायशिष्याः प्रकीर्तिताः १८६॥ मुनिसुन्दरसूर्यादि-पाश्चात्यैः स्वफ्टावलौ। श्रीजगच्चन्द्र सूरेश्च, प्रकल्पितस्तपागणः॥१८५॥ श्रीदेवभद्र देवेन्द्र-विजयचन्द्रसूरयः
[३३
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/9be7e736541b656c51a966d6fd30f0550ee0a20e369f11a11b8117cc8096eca2.jpg)
Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156