Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri Charitam
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Abhaychand Seth
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युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-चरितम् बाण खांगेन्दु वर्षीय प्रशस्तयां लिखितास्ति च । अस्य जेसिंघ इत्यान्या ख्यासत्प्रभावशालिनः ॥१६॥ रस युगांग चन्द्राब्दा त्याग कर्मचन्द्र मन्त्रिणे । पूर्णान्येकादशांगानि येन संश्रावितानि च ॥१६६।। लाभपुरेङ्क वेदाजे-लावर्षे फाल्गुनाऽर्जुने । द्वितीयाया मुपाध्याय-पदं संजातमस्य च ॥१६॥ साहिपर्षदिशास्त्रार्थे हेलया नेन धीमता। रएको निरुत्तरी चक्र पण्डितः पण्डिताग्रणीः ॥१६८।। बाणाश्वग्स चन्द्राब्दे वैशाखजुनपक्षके । त्रयोदश्यां प्रतिष्ठा भू-द्यदा शत्रञ्जयो परि ।।१६६।। श्रीजिनराजसूरीन्द्रः समन्तदा भवानभूत् । शोधिता लिखितानेन पौषध विधि वृत्तिका ॥१७०।। समग्र सैद्धान्तिक चक्रचक्रवर्ती स्व सिद्धान्त रहस्य वेत्ता । प्रदत्त सैद्धान्तिक सत्क सर्व-प्रश्नोत्तरो भून्मुनि पाठकोऽयं
॥१७१।। अस्य च ईर्या पथिका षटत्रिंशिका, स्वोपज्ञ वृत्तिः पौषध पत्रिंशिका स्वोपज्ञ बृत्तिः, पर्दूषणा षट त्रिशिका स्वोपज्ञ वृत्तिः स्थापना पत्रिंशिका स्वोपज्ञ वृत्तिः कोडा श्राविका व्रतग्रहण रासः रेखा श्राविका व्रतग्रहण रासः अष्टोत्तरी स्नात्र विधिः षड्विंशति प्रश्नोत्तर ग्रन्थः एक शतक चत्वारिंश प्रश्नोत्तरः ( विचार रत्न संग्रहः ) आदि जिनस्तवनम्, चतुर्विंशति
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