Book Title: Vikrantkauravam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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३२
विक्रांतकौरव
कुडिलविअडदाडा करालमुहुकुहरा समुत्तंभिदकक्कसहत्था दीसंति तरंता विअ दोघंटा । भअपलाइज्जत सअलजलअरणिअरा मअरा । इदो अ भ्रमलरभसभाअंतजलविहंगपरिहरिज्जंतपरिसरा दीहरपुरसकंद गब्भिणा दंति ओहित्थं णिरंतरभमंतसलिलऊरा तालूरा । इदो अ मज्जणागाअजणावतरणदूरोसा रिअसेवाला णिम्मूल्लिअजंबाला पसादपाअडपडिच्छंदिअतीरत
असज्जिदा विअ दप्पणा, जेणहव्विए हरंति हिअआई । विसत्थविहरंतपाढीणडिंभजूथा तित्था । इदो अ मन्दवायंतमंदाइणीपवणदुव्वंतपरंता सुव्वंतमहुरसारसंणिणादमणहरा अक्खिवति लोअणाइ णिअडावगासगआअवावडासीसतरंगआ तडकडुंगआ ।
राजा - ( विलोक्य निर्वर्ण्य च ) अहो स्पृहणीयता जान्हव्याः । अत्र हि । तरंगखोलव्यतिकरपरावर्तितदलं
दृशा सारंगाक्ष्यास्तुलयति विलोलं कुवलयं । स्तनौ तस्याः कार्तस्वरकलशसौभाग्यजयिनौ स्मरक्रीडादोलौ स्मरयतितरां कोकमिथुनम् ॥ २३ ॥ ( सविशेषोत्कंठम् ) ।
यच्चक्रीकरणं करेण सदयं यद्वा नखोल्लेखनं गण्डाभ्यामुपगूहनं यदसकृद्वक्रेण यत्पीडनम् । आम्राणं कुचयोर्यदुत्पुलकयोर्यच्चार्पणं नेत्रयोर्यद्वा चूचुकचुंबनं व्रजतु तद्द्रष्टुं च तां नानुमः ॥ २४ ॥ विदूषकः -- अस्स अस्थि तिस्सा दंसणोवाओ ।
१. जानव्याः रंति हृदयानि । विस्रब्धविहरत्पाठीनडिम्भयूथाः तत्र । इतश्च मंदवहन्मंदाकिनीपवनधूयमानपर्यंताः श्रूयमाणमधुरसारसनिनदमनोहरा आक्षिपंति लोचनानि निकटाव काशगतातव्यापृतशिशिरतरंगाः तटकुंजाः । २ वयस्य अस्ति तस्याः दर्शनोपायः ।
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