Book Title: Vikrantkauravam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 179
________________ प्रार्थनायें। १ इस ग्रन्थमालाका प्रत्येक ग्रन्थ लागतकी कीमतपर बेचा जाता है। ग्रन्थोंका उद्धार और प्रचार करना ही इसका उद्देश्य हैं । अतः प्रत्येक धर्मात्माको इसकी सहायता करना चाहिए और अपने मित्रोंसे कराना चाहिए। २ ग्रन्थमालाके लिए जो फण्ड हुआ है वह बहुत ही थोड़ा अर्थात् लगभग चार हजार रुपया है पर यह काम इतना बड़ा है कि इसके लिए कमसे कम ५० हजारका फण्ड ज़रूर होना चाहिए । इसलिए इसके फण्डकी रकम बढ़ानेकी ओर प्रत्येक धनीका लक्ष्य रहना चाहिए। __३ धर्मात्माओंको इसके प्रत्येक ग्रन्थकी कमसे कम २५ प्रतियोंके स्थायी ग्राहक बन जाना चाहिए । यदि पच्चीस पच्चीस प्रतियाँ लेनेवाले सिर्फ २० और दश दश प्रतियाँ लेनेवाले सिर्फ ५० ही ग्राहक इसके जम जायँ, तो इसके द्वारा सैंकडों ग्रन्थोंका उद्धार सहज ही हो सकता है । ग्रन्थोंकी कीमत बहुतही कम होती है, इस कारण उनकी दश पच्चीस प्रतियाँ खरीद लेना साधारण गृहस्थोंके लिए भी कुछ कठिन नहीं है। ___४ कमसे कम २५० प्रतियाँ खरीदने वालोंका फोटो और स्मरण पत्र इसके ग्रन्थोंमें लगाया जा सकता है, अतः इस ओर भी धनियोंको ध्यान देना चाहिए। ऐसा करनेसे धर्म और कीर्ति दोनोंकी साधना हो सकती है। ५ ब्याह शादी, जन्मोत्सव, प्रतिष्ठा, आदि प्रत्येक आनन्द कार्योंमें दान करते समय प्रत्येक जैनीको इस संस्थाका स्मरण रखना चाहिए और शक्तिके अनुसार जितनी बन सके उतनी सहायता इसकी करना चाहिए। हीराबाग पो. गिरगाँव-बम्बई ] [प्रार्थी-नाथूराम प्रेमी-मंत्री ।

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