Book Title: Vichar Pothi Author(s): Vinoba, Kundar B Diwan Publisher: Sasta Sahitya Mandal View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय मूल मराठीका यह हिंदी अनुवाद है। मूल विचारपोथी कोई पंद्रह साल पहले ही लिखी गई। तबसे उसकी कितनी ही नकलें हुई। अन्यभाषी भाइयोंने भी नकलें कर ली और हिन्दी-अनुवादकी मांग की। पर जहां मूल ही नहीं छप सका, वहां उसका अनुवाद कैसे प्रकाशित हो सकता था ! लेकिन अब वह मांग सफल हो रही है। ___अनुवाद कर तो लिया, लेकिन काम आसान नहीं था। विचार सूत्ररूपमें भले ही न हों, पर सूत्रवत् जरूर हैं । और फिर वे स्व-संवेद्य भाषा में उतरे हैं। इसलिए उनका अनुवाद करना, वाचक जान सकते हैं, कितना कठिन है ! मराठीकी तथा ग्रंथकारकी विशेषताओंके कारण भी कुछ कठिनाई बढ़ गई है। फिर भी मूलका यथातथ्य अनुवाद करनेकी पूरी कोशिश की गई है। हमारे पुरातन ऋषि किसी तत्त्वको विस्तारसे तथा संक्षेपसे लिखने में सिद्धहस्त दीख पड़ते हैं। उनमेंसे जो तत्त्वको लौकिक भाषामें विस्तारसे समझाते थे, वे व्यास कहलाये, और जो तत्त्वको परिमित अक्षरोंमें तथा शास्त्रीय ढंगसे लिखते थे, वे सूत्रकार कहलाये। ये दोनों प्रवत्तियां परस्पर-पूरक हैं। दोनोंकी आवश्यकता होती है। पुराणशैली जनताके लिए और सूत्र-शैली विचारकोंके लिए। विचारकोंको मनन, चिन्तन, अनुशीलनके लिए लंबा-चौड़ा ग्रंथ उपयुक्त नहीं होता। 'स्वल्पं सुष्टु मितं मधु' सूत्र-ग्रथन ही उनके लिए उपयुक्त है। इस ओर आजके साहित्यका ध्यान कम दीखता है। शायद 'विचार-पोथी' इस दिशामें मार्ग-दर्शक साबित हो । वाचाऋण-परिहार नामवाली मूल मराठी विचारपोथीकी प्रस्तावना विनोबाने १६४२ की जेल-यात्राके पहले ही लिख दी थी। पर वह किसी कारण न दी जा सकी। वह पहली ही बार हिंदी-अनुवाद में जा रही है । आशा करता हूं, विचार-पोथीकी यह हिंदी-प्रावत्ति हिंदी भाषावाले चिन्तन-शील सज्जनोंकी साहाय्यकारी होगी। -कुन्दर दिवाण For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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