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वीरस्तुतिः।
वीरः संसारं यथा जितवान् , वयमपि तथैव तज्जयाय प्रयत्न कुर्मः । भगवन् ! बहुविधां नरकविभक्तिं च श्रुत्वा संसारादुद्विममनसः 'केनेयं नरकविभक्तिः प्रतिपादितः' इति मामपाक्षुरिति, पुनश्चैवं भूतो धर्मः
झाता-धर्मकथांग:-~~णाया-धम्म-कहासु णं णायाण नगराई, उज्जाणाई, वणखण्डा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाई, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअ-परलोइअ-इडिविसेसा, भोग परिचाया, पवनाओ, सुयपरिग्गहा, तंवोवहाणाई, परियागा, संलेहणाओ, भत्तपञ्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चाया, पुण बोहिलामो, अंतकिरिआओ, अ माधविज्जति, xxxxx छठे अगे दो सुअक्खंधा, एगूणतीसं अज्झयणा, ते समासओ दुविहा, पनत्ता, तंजहा, चरित्ता अ, कप्पिा अ, दश धम्म कहाणं वग्गा, तत्थणं एगमेगाए धम्म कहाए पंच पंच, अक्खाइयासयाई, एगमेगाइ भक्खाइआए पंच पंच उवक्खाइआसयाई, एगमेगाए उवक्खाइआए पंच पंच अक्खाइन, उवक्खाइमसयाई, एवामेव सपुवावरणं अद्धठाए भक्खाइकोडिओ, भवंतीतिअक्खायाओ, एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, संक्खेज्जाई पयसहस्साई,।
शाताधर्मकथा-इस सूत्रमें उदाहरणभूत पुरुषों के नगर, उद्यान, वनखण्ड, राजा, माता पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहिक और पारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत परिग्रह, तप, उपधान, पर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, फिर उत्तम कुल में अवतार, पुनर्जन्म, बोधिलाभ और अन्तक्रिया इत्यादि अनेक विषयोंका कथन विस्तारसे कियागया है । छठवें ज्ञाता धर्मकांगमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, जिनमें २९ अध्याय हैं, वे अध्याय चरित्र और कल्पिक मेदसे दो तरहके बताए हैं । धर्मकथाके १० वर्ग हैं। जिसकी एक-एक धर्म कयामें ५००५०० आख्यायिकाए हैं, एक एक भाख्यायिकामें ५००-५०० उपाख्यायिकाएँ हैं, एक एक उपाख्यायिकामें ५००-५०० आख्यायिकोपाख्यायिकाएँ हैं, और फिर इसी प्रकार से सपूर्वापर ( सममिलकर ) साढे तीन कोड आख्यायिकाएँ हो जाती हैं। इसमें २९ उद्देशनकाल, तथा २९ समुद्देशनकाल हैं, और संख्यात लाख पद हैं, यानी ५ लाख ७६ हजार पद हैं।