Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ ( 6 ) ॥ कु० ॥तुं जगबंधव जगधणी, तुं जग दीन दया लो रे ॥ तुं जगतारक जगपति, करुणावंत कृपालो रे॥ ॥कु०॥ श्री जिनराज जुहारीने, आयो सा यर तीरो रे ॥ एणे अवसर व्यवहारियो, कुबेरदत्त स धीरो रे ॥ए । कु०॥ नूरि वाहण तेणें पूरियां, म गधदीप नणी आयो रे ॥ अष्टादश जोजन सयां, से सुन्नट सखायो रे ॥१०॥ कु०॥कुमर नमरप ण कौतुकी, कुबेरदत्त संघातो रे ॥ वाहण बेगे जो यवा, वारिधि ख्याल विख्यातो रे ॥११॥कु०॥ वाह ण चाल्यां शुक्न दिने, शकुन ले श्रीकारो रे । केट लेक दिवसें गये, खूट्यो वारि विचारो रे ॥ १२ ॥ ॥ कु० ॥ शून्य दीप जलकारणें, लोकें वाहण ढोयां रे । सहु नतरिया महाजश्री, जलनां स्थानक जोयां रे॥ १३ ॥ कु०॥ लोक संग्रह जलनो करे, हवे ते णे हीप मकारो रे ॥ ब्रमरकेतु राक्षस रहे, निर्दय क्रूर अपारो रे ॥ १४ ॥ कु० ॥ सहससेती परिव यो, आव्यो तिहां कृतांतो रे ॥ फाल्या लोक सह तेणे, या मनमानयत्रांतो रे ॥१५॥ कु०॥ के नर फाख्या काखमां, के नर माल्या हाथो रे॥केश पगमांहे चांपी रह्यो, नाग के अनाथो रे ॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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