Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ ( २० ) जीदो चढियो क्रोध अपार ॥ २ ॥ लं० ॥ जीहो भ्रम रकेतु जाखे वली, जीहो केम जाणीजें तेह || जीहो जाखे ताम निमित्तियो, जीहो सांजल नृप सुसनेद ||३|| लं० ॥ जीहो जांत्रिक जन जखवा नली, जी हो तुं गयो द्वीपमकार | जी हो तुजने जीत्यो एकले, जीहो ते नर तुं श्रवधार || || || जीहो मास एक यो तेहने, जी हो सांगली वडियो क्रोध || जीदो रा कसदल मेली करी, जीहो हावा गयो ते जोध ॥ ५ ॥ लं० ॥ जीहो आगल शुं थाशे हवे, जीहो ते जा णे जगदीश || जीहो कुमर विचारे ते सही, जीदो राक्षस तो अधीश || ६ || लं० ॥ जीहो एतो में जा एयो दवे, जीदो मुज वैरीनुं गम ॥ जीदो घाट वाट रोकी रह्यो, जीहो मुज मारेवा काम ||१|| सं० ॥जी हो कूड कपट मायावीनी, जीहो ए राक्षसनी जात ॥ जी हो जतन करी रहेवुं हां, जीहो प्रगट न करवी वा ॥ ८ ॥ सं० ॥ जीहो कुमरी ताम मदालसा, जीहो रूप कला भंडार ॥ जीहो देवभूवनथी नतरी, जीहो जाले देवकुमारि ||||| जीहो कुमररूप देखी क री, जीदो मोही कुमरी ताम । जी हो वदन कमल जोश रही, जीदो जेम दालिड़ी दाम ॥ १० ॥ लं० ॥ जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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