Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 46
________________ (४६) जोगवे, प्रीति परस्पर जाडी रे ॥ १० ॥ वा० ॥ एक दिवस जिन पूजवा, कुमर गयो मध्यान्हें रे ॥ जिन पूजा विधिशुं करी, एक चित्तें एक ध्याने रे ॥ ११ ॥ ॥ वा०॥ पुष्पमध्य दीठी तिहां, मदनमुक्ति मुख नलिका रे ॥ नघाडी तंबोलीए, सर्प डशी अंगुलिका रे॥१२॥वा०॥ध अचेत पड्यो तिहां, नत्तम कु मर ततकालो रे ॥ कहे जिनहर्ष पूरी अर, नगणीश मी ए ढालो रे ॥ १३॥वा०॥ सर्वगाथा ॥३७।। ॥दोहा॥ ॥तुजने नारी मदालसा, तणी कथा कही एह ।।तुज कुमरीजरतारनी, सुधि कही में तेह॥१॥ सत्य प्रति झा ताहरी, दे मुजने हवे राज ।। सहस्रकला कन्या सहित, माहरे एहशुं काज ॥॥ हुँ तिर्यंच सुख नो गर्बु, राज्य तणुं निशदीस ॥ सहस्रकला परणावजो, तुजने युं आशीष ॥ ३ ॥ राय कहे पंखी नगी, केम देवराए राज ॥कीर कहे नत्तम नणी, वचन तणीने लाज॥४॥देश तो लेश खरो, नहींतो जश्श मुज गण ॥वृत्ति करीश फल फूलनी, पान तुज कल्याण ॥५॥ मायावी मासस हुये, कीर कहे सुण राय ॥ काम करी पोतातगुं, मुकर जाये क्षण मांय ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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