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( ए) पर नजमाल रे ॥ जिनदर्ष दीधी मुनिदेशना, अशा वीशमी ए ढाल रे ॥१४ाएगासर्वगाया॥५६॥
॥दोहा॥ ॥दीधी एणि परे देशना, सांजबी सहुको लोक ॥ परम प्रमोद श्रयो दवे, रवि दर्शन जेम कोक ॥१॥ राजा पूजे मुनि प्रते, विनय करी कर जोड ।नगवन् केणे कम करी, पामी संपड़ कोड ॥२॥ सायर माहे केम पड्यो, मैनकघर रह्यो केम ॥ शुक या ग णिका घर रह्यो, कहो मुजने अयो जेम ॥ ३॥ केवल झानी मुनि कहे, सांजल राय सुजाण || कीधां कर्म न टिथे, लोमवियें निस्वाण ॥४॥जे जेहवां कीजें कर्म, तेथी फल प्रापत्त । पूरवनव सुण्य ताहरो, ल हि संपत्त विपत्त ॥५॥ ॥ ढाल गणत्रीशमी । पात जिगंद
जुहारिये ।। ए देशी॥ ॥सुश राजा केवली कदे, हिमवंत भूमि सुविशा लो रे ॥ सुदत्तग्रामा नामें नलो, धनधान्य समृद्धि रसालो रे ॥१॥ सु० ॥ धनदत्त कौटुंबिक वसे, ते चार वधू जरतारो रे । पहिला व्य इतुं घएं, कालें गयो धनविस्तारो रे ॥॥॥ दारिनो पासोथ
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