Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 67
________________ चालीश लक्ष रथ रूयडा, पायक चारे कोड ॥३॥ चालीश कोडि ग्रामाधिपति, शक्तिसो नहीं पार। चार राज्य सुख भोगवे, दिन दिन अधिक विस्तार ॥ ॥४॥जिन प्रासाद करावियां, कीधी तीरथ जात्र। अकरा कर सहु मेलिया, पोष्या उत्तम पात्र || बिंब जराव्यां जिनतयां, पुस्तक नवांडार ।। साहमीबडल पण कीयां, पर नपगार अपार ॥६॥ ॥ ढाल अद्यावीशमी।चूनडीनीमायभवा । .: प्राणी वाणी जिनतणी॥ए देशी॥ ॥ एम धर्म करतां अन्यदा, पाव्या-तिहां केवल धार रे ॥ वांदण काजे नृप चालियो, नलट धरिचि च अपार रे ॥ १ ॥ ए.॥ पांचे घनिगम नृप सा. चवी, वांदी बेग मुनि पास रे ।। मुनिवर दे मीग देशना, सांजलतां अंग उल्लास रे॥२॥ए॥संसा री जीव सुणो तुमो, जिन धर्म करो तुमे नायो रे ॥ संसार सायरमां बूडता, तरवानो एह उपायो रे ॥ ॥३॥ ए॥ संसार अनंत जमंतडा, मानन्नव साधो एह रे ॥ दश दृष्टांतें करि दोहिलो, चिंतामणि से रिखो जेह रे ॥४॥ ए०॥ वली श्रुत सांजल बोहिडं, सुणतां नतरे मनकाट रे ॥ सांजलतां श्रुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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