Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 68
________________ (६७) हियडा तणा, उघडे अज्ञान कपाट रे॥५॥ ए०॥ सहहणा पण दोहिली, जीवने प्रावतां जाण रे ।। जेम जल न रहे काचे घडे, तेम श्री जिनवरनी वाणं रे॥६॥ए०॥ वीर्य फोरवयूँ दोहिल, संजमने वि षय सुजाण रे ॥ ए चार अंग दोहिलां, पामीने करो प्रमाण रे ॥ ७ ॥ ए०॥ एतो धर्मवेलाएं जी वने, आलस आवे बहु नाति रे ॥ प्रारंन वेलायें जागतो, निशदिन करवानी खांति रे॥णा ए०॥ जे जीव दणे बोले मृषा, ले अदत्त अब्रह्मशुं चित्त रे ॥ परिग्रह मेले बहु नातिनो, दुर्गतिशुं तेहने प्रीत रे ॥ ॥ए॥ ए०॥ दूर करी तेरे काठिया, क्रोधादिक चार कषाय रे ॥ किंपी पाचेंडिना नोगने, जिनधर्म सोहे लो थाय रे॥१०॥ एकोण मात पिता केहनी सुता, केहना सुत केहनी नार रे॥उर्गति जातांण जीव ने, कोई नही राखणहार रे ॥११॥एणासहु कोइ स्वा रथर्नु संगुं, स्वारथ पाले सहु नेह रे ।। जबही स्वारथ पहोंचे नही, तो तुरत दिखावे द रे ॥१॥ ए०॥ मूरख कहे माहरों माहरो, ए धन ए घर परिवार रे॥ परनव जाये जीव एकलो, पण कोय न जाये लार रे १३ ॥ ए० ॥ तो खोटो ममता मूकीने, करो धर्म A . in Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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