Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६४) रे, जोमिणी बल देवा रे,तेम करण बल लेवा रे, नूत फरे घसारे ॥१०॥ एम महायु६ मातो रे, वारे नहीं थातो रे, संसरातो रे, पागे कोश्न नसरे रे ॥ पुण्याइ जोरें रे, ते अधिके तोरें रे, निज पराक्रम फोरे रे, चिंते तेम करे रे ॥ ११ ॥ नृप उत्तमचरित्रो रे, बहु पुण्यविचित्रो रे, निजशत्रु रे बांध्यो,काली जीवतोरे ॥ वीरसेन लजाणो रे, मुजश्री सपडाणो रे, मुज लीधो घायो रे, जे सबलो हतो रे ॥१२॥ निज
आस मनायो रे, गेड्यो ते रायो रे, वैराग्य प्रायो रे, मन वीरसेनने रे ॥ चीशमी ढालें रे, जिनहर्ष निहाले रे, सहु टाले रे, भने निज मने रे ॥१३॥ सर्वगाथा ॥ ५२४॥
॥दोहा॥ ॥मान मलिन युं माहरूं, जो रह्यो राजमका २॥ सुखकारण जे जाणिये, ते सहु दुःख दातार ॥१॥ संपदमां आपद वसे, सुखमांहे दुःख वास ।।. रोम वसे.निज नोगमां, देह मरण आवास ॥३॥ए संसारी जीवने, बंधन ने धन दार।मूरख माने सुख करी, मधुलेपी खनवार ॥३॥ मान रहे नहीं केहर्नु, एणे संसार मझार ।। जीती कोण जाइ शके, एम न
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