Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 59
________________ १ . (पए) ॥ तुज विरहें व्याकुल थयो, दिवस दोहिलो जाय ॥ ॥१॥ तुजने अमे न दूहव्यो, कुवचन न कडं को ॥ रीसावी नीकली गयो, ते परतावो होय ॥२॥ राज धुरंधर तुं कुमर, तुज नपर सहु मांड ॥ निस धारां मूकी गयो, नखो गयो तुंडि ॥३॥ लोक मुखें में सांनब्यो, मोटपली वेलाकुल ॥उत्तमचरित्र राजा थयो, नाग्य युं अनुकूल ॥४॥ गाढा रली यायत श्रया, नल्लसीयां अम प्राण ॥ पण लेख दर्श श्रावजे, जेम थाये कल्याण ॥ ५ ॥ ई घरडो बूढो थयो, मुजश्रीन चाले राज ॥राज देने तुज नगी, हुँ सारं निज काज ॥६॥ ॥ ढाल पञ्चीशमी॥ कलालणी ते माहारो राजन मोहियो हो लाल ॥ ए देशी॥ ॥ कुमरजी लेख वांची मन रंगशं हो लाल, ढील मकरजे पुन ।कु०॥पाणी अपीत पधारजोहो लाल, श्राव्यां रदेशे सूत । कु०॥१॥वेहेलो अहियां या वजे हो खाल ॥कु०॥ तुजविण शूनो देशडो होला ल, तुज विस शूनुं राज्य ।कु| तुज विण शूनो हग डो हो लाल, आव्यां रदेशे लाज । कु० ॥३॥वणा कु०॥राज धुरंधर तुं सही हो लाल, तुज विण केर्बु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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