Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 51
________________ (५१) नुत्तम ते उत्तम हुवे रे, मध्यम कदिय न दूंत ॥ अगर दहे तन आपणुं रे, परिमल जग पसरंत रे ॥१०॥ ॥ ए॥तुं नरसिया सारिखो रे, हुंतो सुखड सार ॥ घासंतां घासे नहीं रे, धिक् तेहनो अवतारो रे ॥११॥ गए०॥ तुजश्री फल पाम्यु नही रे, फोकट कियो रे प्रयास ॥ सांजल हवे तुं सहु कहुं रे, सहुने थाये उल्लास रे ॥ १२ ॥ ए. ॥ अनंगसेना मन चिंतव्यु रे, अनुपम रूप सौलाग्य ॥ राय जमाइ पण सही रे, मलियो माहरे लाग्य रे ॥ १३॥ ए. ॥ जनम लगें ए माहरे रे, पाये जो जरतार ।। मानवनव सुकृता रथो रे लोगवू लोग अपारो रे ॥ १५ ॥ ए॥ मुज घरथी जाये नही रे, करिये तेह उपाय ॥ दोरो मंत्री सूत्रनो रे, बांध्यो तेहने पाय रे ॥ १५ ॥ ए. ॥ तेह नो कीघो सूवटो रे, नारी चरित्र विशाल ॥ एम जि नहर्ष राख्यो घरै रे, एकवीशमी ए ढालो रे ॥ १६ ॥ ॥ए०॥ सर्वगाया ॥ २५॥.... ॥दोहा॥ पोपट घाल्यो पांजरे, रात्रे दोरो गेड ॥ पुरुष करी सुख लोगवे, सफल करे मन कोड ॥१॥ दि वसे वली पोपट करे, निशि दिन एम करत ॥ सूडो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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