Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(५४) हार निश्चे हुवे जी, एदोनो शो दोष ॥ कहे जिनदर्ष बावीशमी जी, ढालें नृप मनरोष ॥१मा न०॥
॥दोहा॥ ॥ मूकुं नहीं ए जीवता, एहनी करवी घात ॥ जाण्यो नहीं एणे एटलो, रायतलो मामात ॥ १॥ एक घर डाकण परिहरे, न करे तास विनाश || मु ज घरधी ए नवि टल्यां, बेनो करवो नाश ॥२॥ वि नय करी नृपने कहे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ महाराय नवितव्यता, करवो एह विचार ॥३॥ वांक न कां शेठनो, मालिणी नहीं कां वांक ॥ टले नही जे वि घि लख्या, सुख दुःखना शिर प्रांक ॥ ॥ ६६ चंड नागेंड नर, मोहोटा जेह मुणिंद ॥ कियां कर्म सई नोमवे, बूटे नदी नरिंद ॥५॥ किराशुं कीजें श्रामणो, किणशं कीजें रोष ॥ केहनो दोष न काढि ये, कर्मतणो ए दोष ॥६॥ ढाल त्रेवीशमी। मोरियाना गीतनी देशी॥
॥राये राणा रमे रंकुप्रा ।। ए देशी॥ ॥पाय पडी नृप तणे रे कुमार, विनति करीय समजाविया जी ॥ एदनुं कीधुं पामशे एह, शेठ मावण बे मेल्हावियां नी ॥१॥ शेग्नुं सहु धन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72