Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ (२५) तो वंरित सुख श्राय ॥३॥ म०॥ आवो आवों नाइरेनेला बेसीयें रे, नत्तमचरित्र कुमार ॥ पा गीवल मने रे तुजविण नवि गमे रे, जीवन प्राण आधार ॥४॥ म० ॥ मननी वातो रे बेशी कीज़ि ये रे, सुख दुःखनी एकांत ॥ गुणवंत पाखें रे केही गोण्ड। रे, गुणवंत शं नीरांत ॥ ५ ॥ म०॥ तुंन पगारी रे नांजे पर दुःखडा रे, तुज समो नर नहीं कोय ॥ तुज मुख दीगं रे तन मन नलसे रे, हीय९ हर्षित होय ॥६॥ म०॥ मोहनगारा रे ते मुज म न हरयु रे, तुज विरा रा रे न जाय ॥ मोहनी लगा रे तें कांश प्रेमनी रे, तुज पांखे न सुहाय ॥ ७ ॥ ॥म०॥ दिन तो कोज रे तुज मन गोण्डा रे, दिव स संहेलो रे जाय ॥ रात्र जाजे रे ताहरे स्थानकें रे, शेर कहे चित्त लाय ॥७॥ म०॥ अरज करुं बुरे तुजने एटली रे, अरज सफल कर मित्त ॥ पर नप गारी रे कर नपगारडोरे, चतुर खुशी कर चित्त । ॥ ॥ म० ॥ जे आपणने रे वांछे वालदा रे, ते हने न दीजें पूंठ ॥ तन मन दीजें रे तेहने आप गुं रे, आदर दीजे नक्कि० ॥ १० ॥ म०॥ वचन न लोपे रे नत्तम कुल तणो रे, ह दीये केम तेह ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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