Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 27
________________ (२७) समुश्मकार ॥ मित्र सनेही माहरो, उत्तमचरित्र कु मार ॥॥ जाएयुं तुरत मदालसा, ए पापीनां काम॥ नाख्यो जलमां मुजपति, रोवण लाग ताम ॥ए॥ ॥ ढाल अग्यारमी॥तावननी देशी॥ ॥परम सनेही वालम माहरो रे, पातमनो आ धार ॥ मुज अबलाने मूकी एकला रे, सायरमा निर धार ॥१॥ प०॥ हुं कता कहेती इण नीचनो रे, म करीश तुं विश्वास ।। माहरूं कर्तुं न मान्युं नाह ला रे, तो फल पाम्यां तास ॥२॥ प० ॥ ते न कनोले जाण्युं सहु रे, धवटुं तेटलुं दूध ॥ पण कप टी, कपट नलख्युं नहीं रे, हिय९ जास अशुः ॥ ३ ॥ प० ॥ धूतारा तो मुह मीग होये रे, पण हियडामां पाप ||९ करतां ते बोहे नहीं रे, उप जावे संताप ॥ ५ ॥ ५० ॥ मुख दीवाली होली हि यडले रे, एहवा उर्जन होय ॥ पग पग नाखे पापी पासला रे, रखे पतीजो कोय ॥५॥५०॥ आशा बेदी माहरी पापीय रे,कीधी निपट निराश ॥जीवन विण हुं जीवं केही परें रे, नाखे प्रबल निःश्वास ॥६॥ ॥ प० ॥ जाणे पावसजलधर नबस्यो रे, नयण न खंडे धार ॥ पियु पियु चातक ज्यु प्रमदा करे रे, जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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