Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 33
________________ साप ।। ए कोण नारी शेठजी रे, सुरकन्या गुरा व्याप रे ॥११॥ ब० ॥ शेठ कहे स्वामी सुणोरे, चंछी लही एह ॥ नारी एहनी स्वामिनी रे, सुंदर सुगुण सनेह रे ॥ १२॥ ब॥ तुम आदेशे माहरी रे, श्राये एह कलत्र ।। बोली तास मदालसा रे, नाखे किश्यु अखत्र रे ॥ १३ ॥ब० ॥राजा आगल पापीयो रे, नांखे एह अलीक ।। राजा जो न्यायी हुवे रे, तो तु ज लावे नीक रे ॥१४॥ब० ॥ निर्लज झुं लाजे न ही रे, जपतो आलपंपाल ॥ कहे जिनहर्ष पूरी श्रे, तेरमा ढाल रसाल रे ॥१॥ब० ॥ सर्वगाया ॥७॥ ॥दोहा॥ ॥लाज करी कुमरी कहे, वयण राय अवधार ।। मुज पतिने एणे पापीयें नाख्यो समुश्मकार ॥१॥ राय सुणी को चड्यो, घाल्यो कारागार ॥ माल पां च सय पोतनो, मूक्यो निज भंडार ॥२॥ सांजल पत्नी नृप कहे, रहे तं मुज आवास ॥ पत्री मुजति लोत्तमा, रहे तुं तेहनी पास ॥३॥बेहेन तेहता हरे, सखी तणे परिवार ॥ सुखें समाधे रहे सदा, चिंता दूर निवार ॥ ५॥ दीन नणी तुं दान दे, बोडि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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