Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 32
________________ (३२) रतन सुप्रसादश्री रे, तट लहिये कुशलेह ॥ तिहां जो मुज प्रीतम मले रे, तो रहीयें निज गेह रे ॥शाव०॥ न मलें तो आपण बेहुरे, लेशं संजम नार ॥ वयण सुणी कुमरी इस्यां जी, हरखी चित्त मकार रे ॥३॥ ॥ ब० ॥ मानी वात मदालसा रे, कोथं अंगीकार ॥ कुमर तो हवे सनिलो रे, जेह श्रयो अधिकार रे॥ ॥४॥ ब०॥ जलनिधिमांहे कुमर पड्यो रे, मकर ग्रयो ततकाल ॥ सायर तट ते आवियो रे, धीवर नांख्यो जाल रे॥५॥ब० ॥ महामकर घरे आणि यो रे, कीधो तास विनाश || मत्स्यनदरश्री नीसयो रे, जीवित मानोलाश रे ॥ ६ ॥ ब० ॥ देखी धीवर चिंतवे रे, मोहोटो नर ने एह ।। सेवा खिजमत सहु करे रे, कुमर रहे तस गेह रे ॥ ७॥ ब०॥ हवे स मुदत्त शेउनां रे, वाहण चाल्यां जाय ॥ वायुरतन पूजा करी रे, आण्यां बे दिनमाय रे ॥७॥ ब० ॥ तिहां अजाएयां आवियां रे, मोटपल्ली वेलाकुल ।।रा जा नरवर्मा तिहां रे, जिनधर्मशुं अनुकूल रे ॥ ॥ ॥ब ।। समुदत्त लेश नेटगुं रे, लेश कुमरी साथ । रायसनायें आवीयो रे, नेव्यो अवनीनाय रे ॥ १० ॥ । ब० ॥ आदर नृपें बहु आपियुं रे, पूग्यो कुशल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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