Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 37
________________ ( ३७ ) णि मूली महुरा बहु प्राण्या, कीधा कोडि नपाय जी।। पण समाधि थाय नहीं किमदी, किमही विष नवि जायजी ||६|| || नगरमांदे पडहो फेराव्यो, जे कोइ विद्यावंत जी ॥ रायती कन्या जीवाडे, ते पसाय ल हंत जी || ७ ||०|| अर्ध राज कुमरी नृप आपे, कुमर सुल्यो विरतंत जी ॥ पडद बब्यो ततक्षण प्रावीने; नपगारी गुणवंत जी || || पू० || उत्तम रायसमीपें प्राव्यो तेहि नर ए होय जी ॥ श्रादर देई पासें बेसा स्यो, स्वारथ मीठो होय जी ॥ ए ॥ ५० ॥ एक स्वार्थ ने वली गुण मांडे, आदर लहे अपार जी ॥ कन्या श्रा एतिहां नपाडी, कुमर करे उपगार जी ॥ १० ॥ ॥ पू० ॥ मंत्र गली पालीशुं बांटी, कुमरी थइ सचेत 1, जी ॥ कर जोडी राजा गुण गावे, धन्य धन्य तुं कुलके त जी ॥ ११ ॥ ५० ॥ तैं नृपगार कियो मुज मोहोटो, दधुं जीवितदान जी ॥ मुज कन्याने तें जीवाडी, विद्या, तला निधान जी ||१२|| ५० ॥ तुजने शो नृपगार क रुं हुं, करुणावंत कृपाल जी ॥ ए जिनदर्ष कन्या तुज दीधी, परलो पन्नरमी ढाल जी ॥ १३ ॥ ५० ॥ ३०८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ राय विचारे चित्तमां, ए नर बे कुलवंत ॥ राज्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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