Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ (३४ ) सयल खदाद । किणही तट लागो होशे, तो निर त करशे तुज नाह ॥५॥ ॥ ढाल चनदमी। हो मतवाले साजनां॥ ए देशी। ॥सुखे रहे कुमरीतिहां, मननी बीक सह नागी से ॥राय मानी पुत्री कर, पुण्यदशा तस जागी॥ ॥१॥सु॥पंच रतन सुपसायथी, तिहां दान नि रंतर आपे रे॥श्रीजिनधर्म करें सदा, सहुने जिनधर्म थापे रे ॥शासु०॥ सतीजनोचित कन्यका,ले नियम मले नहीं सां रे॥ त्यांसुधीनूयें सुयवं, स्नानादिक न करवू कां रे ॥३॥ सु०॥नारे वस्त्र न पहेरवां, पहेलं नहीं फूलसुगंधो रे ॥ अंगविलेपण नवि करूं, तंबोल तजं प्रतिबंधो रे ॥॥०॥ स्वादिम में तजवं सही,नीलां फल लक्षण नवि करवां रे ॥नियम ली यो सहु शाकनो, दूध दही मही परिहरवां रे ॥५॥ ॥ सु० ॥ सूस सहूं सुखडी तणुं, साकर गुड खांड न खावे रे॥ पायस सरस न जीमवृं, जिमवा कार्जे न विजवि रे॥६॥तुणा एक जुक्त नित्य जमीवु, कारण विण किहांये न जावू रे ॥गोखें पण नवि बेस, लो क स्थिति चित्त न लावू रे ॥ ७॥ सु०॥ सरस कथा करवी नहीं, गाथा काव्य श्लोक सरागी रे ॥ कानें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72