Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२६) जेमतेम जोडे रे प्रात सोहामणी रे, निगुण न पाले तेह ॥११॥ म ॥ घj घणुं तुजने रे कहीयें किश्यु रे, तुं दीनदयाल ॥ कहे जिन हर्ष विचारो वालहा रे, ए दशमी ढाल ॥१शाम०॥ सर्वगाया ॥२०॥
॥दोहा॥ कमरी कहे मदालसा, सांजल कंत सजाण ॥शेठ तणी ए प्रीतडी, हानि जाण निज प्राण ॥१॥ कंत म राचे एहशु, ए में कपटी दीठ ॥ कालाशिरनो आदमी, होये उष्ट मुहामि ॥२॥ अति विश्वास न कीजिये, कंत कहूं कर जोडि ॥ एक कनक अरूकामिनी, एहश्री अनरथ कोडि ॥३॥यतः ॥ पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा, दृष्ट्वा च नव यौवनं ।। इविणं पतितं दृष्ट्रा, कस्य नो चलते मनः॥१॥ कुमर कहे सांजल प्रिये, ए नपगारी शेगा आपण ऊपर एहनी, सुनजर शीतल दृष्ट॥४॥मुह मीग जूग हिये, हुं न पतीनुं ताप॥मोठा बोलो मो रियो, साप सपूछो खाय ॥५॥ धूता होय सलद पा, कुसती होय सलऊ ॥ खारां पाणी सीयला, व हुफल होय अखऊ ॥६॥ वयण नारीनां अवगणी, निशिवासर रहे पास ॥ अवसर देखी नाखियो, सा यरमांहे तास ॥ ७ ॥ कोलाहल करी नठियो, पडियो
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