Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ (२४) ॥दोहा॥ ॥ नारी वयण सुणी करी, प्रमुदित श्र कुमार ।। कूआर्थनें बांधियु, नीररतन तेणि वार ॥१॥ मेघवृ ष्टि हु तुरत, सदनस्यां जलपात्र॥ लोक खुशी सहु को थयां, शीतल कीधां गात्र ॥॥ पांचे रतन प्र नावथी, विविध किया नपगार ॥ लोक सहु सेवा क रे, गुण मोहोटो संसार ॥३॥ गुण पूजाए लोक मां, गुणने आदर थाय ॥ राजा परजा गुणयकी, स हुको लागे पाय ॥४॥ समुझत्त दी नयण, नारी रतन एक दीस ॥ कामें व्यामोहित अयो, ऐऐ रूप जगदीश ॥५॥ ॥ ढाल दशमी॥ करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ए देशी ॥ ॥ मनमांदे पापी रेशेठ एम चिंतवे रे, एहनी ना रीरे होयं ॥ तो हं जाणं रेनव सफलो भयो रे, म ज सरिखो नहीं कोय ॥१॥ मनमा०॥ एहवी ना री रे पुण्ये पामिये रे, के तूठे जगदीश ॥ पुण्यविण न मिले रे एहवी गोरडी रे, जाणुं विशवावीश ॥ ॥॥म०॥ दाय नपायें रे ए लेवो सही रे, ए वि ण रह्यं न जाय ॥ एहवी नारी रे जो हुं नोगQ रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72