Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 23
________________ (२३) रे, वंडित जलनी वृष्टि रे ॥ प्री० ॥ शालि दाल हुस सुखडो रे, तेज रतने सुवृष्टि रे ॥७॥ प्री० ॥ वायुर तन गगर्ने धरयु रे, मृअनुकूल समीर रे ॥प्रीon मगन रतन पटकुल दे रे, देव दृष्यादिक चीर रे॥ ॥प्रीता करूणा करी प्रीतम तुमें रे, खिया लोक निहाल रे॥प्रीणापांच रतन ले करी रे, नीर तषा तुं टाल रेणाप्री॥ नदीन निज पाणी पीये रे, निजफ ल वृक्ष न खाय रे॥प्रोणा मेह न मागे सर नरे रे, पर नपगारे थाय रे ॥१०॥प्रो०॥ जे अविलंबे वेलीयां रे, आपद दे आधार रे ॥प्री०॥ शरण राखे मारतां रे, ते मोहोटा संसार रे ॥११॥ प्रीत ॥ उपगारी तम सारिखा रे, जग सरज्या किरतार रे ॥ प्रीत०॥ पर नां दुःख नाजन नणी रे, वली करवा उपगार रे ।। ॥१२॥प्रीत ॥ नारी वचन एहवां सुणी रे, ह र्षित थयो कुमार रे ॥प्रीत०॥ धन्य ए नारी सुलदा एगी रे, धन्य एहना अवतार रे ॥१३॥प्रीत०॥रा कस कुलें ए नपनी रे, एहवी दीनदयाल रे ॥प्रीत०॥ कहे जिनहर्ष सोहामणी रे, ए थ नवमी ढाल रे ॥१४॥प्रीत ॥ सर्व गाथा ॥.१९०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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